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मवेशी व्यापार प्रतिबंध नियमों को संसद के समक्ष नहीं रखा गया

  • 05 Aug 2017
  • 3 min read

संदर्भ
सूचना के अधिकार के तहत दायर एक याचिका के उत्तर में लोकसभा सचिवालय ने बताया है कि केंद्र ने मवेशी व्यापार प्रतिबंध नियमों को संसद के समक्ष रखने की प्रक्रिया का पालन नहीं किया है।

प्रमुख बिंदु 

  • लोकसभा सचिवालय ने सूचना के अधिकार के उत्तर में बताया है कि मवेशी व्यापार प्रतिबंध नियमों को लागू करने से पहले संसद में नहीं रखा गया था, जबकि उसे लागू करने से पहले सरकार को ऐसा करना चाहिये था।

क्या कहती है धारा 38ए

  • क्रूरता अधिनियम, 1960 (Prevention of Cruelty Act, 1960) की धारा 38ए कहती है कि इस अधिनियम के तहत केंद्र द्वारा बनाए गए किसी भी नियम को शीघ्र ही संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष रखा जाना चाहिये।
  • ऐसा कोई भी नियम 30 दिनों के लिये संसद में रखा जाएगा। 
  • संसद के दोनों सदनों द्वारा यदि इसमें किसी तरह के संशोधन की सिफारिश की जाती है तो उसे नियमों में शामिल किया जाना चाहिये, अन्यथा उनका कोई प्रभाव नहीं होगा।
  • लोकसभा सचिवालय द्वारा 27 जुलाई, 2017 को दिये गए उत्तर में यह स्पष्ट कहा गया है कि पशुओं से संबंधित इन नियमों को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा सदन के पटल पर नहीं रखा गया था। 
  • जबकि संसदीय कार्यवाही प्रक्रिया मैनुअल के अध्याय 11 में कहा गया है कि संबंधित मंत्रालयों द्वारा बनाए गए सभी नियम एवं कानून संसद के अनुमोदन के पश्चात् ही लागू  किया जाना चाहिये।
  • क्रूरता अधिनियम, 1960 की धारा 38ए  के अनुसार भी इस अधिनियम के तहत केंद्र द्वारा बनाए गए किसी भी नियम को शीघ्र ही संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष रखा जाना चाहिये।
  • पर्यावरण और वन मंत्रालय, जो कि पशुधन बाज़ार नियमन नियम की एक नोडल एजेंसी है, ने 16 जनवरी, 2017 को इस विषय पर नियम बनाया था तथा इस पर 30 दिनों के अंदर सार्वजनिक राय माँगा था।  
  • अंतिम नियम अर्थात, पशु क्रूरता रोकथाम (पशुधन बाज़ार नियमन) नियम, 2017 को 26 मई, 2017 को अधिसूचित किया गया था। 
  • गौरतलब है कि पशु क्रूरता रोकथाम (पशुधन बाज़ार नियमन) नियम, 2017 को 23 मई, 2017 को अधिसूचित किया गया था। इस नियम में बताया गया था कि पशुओं को केवल कृषि उद्देश्यों के लिये मवेशी बाज़ारों में ही बेचा जा सकता है।
  • अतः निष्कर्ष यह है कि किसी भी कानून को संसद के पटल पर रखा जाना चाहिये क्योंकि देश के कानून पर संसद का नियंत्रण होना परम आवश्यक है।
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