मांसभक्षी पौधों के लिये कार्बन-डाइऑक्साइड का महत्त्व | 02 Nov 2017

संदर्भ

हाल ही में जवाहरलाल नेहरू उष्णकटिबंधीय वनस्पति उद्यान और अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने इस बात इस तथ्य को प्रमाणित कर दिया है कि कुछ मांसभक्षी पौधे कीटों और चींटियों को अपने शिकार के जाल में फँसाने के लिये कार्बन-डाइऑक्साइड का उपयोग करते हैं। दरअसल, पहले ऐसा माना जाता था कि मांसभक्षी पौधों (Carnivorous plants) में ऐसी कई विशेषताएँ (जैसे-पराग, गंध, रंग, पराबैंगनी प्रतिदीप्ति आदि)  पाई जाती हैं जिनका उपयोग वे शिकार को लुभाने और उन पर आक्रमण करने के लिये करते हैं।   

प्रमुख बिंदु

  • संस्थान में फाइटोकैमिस्ट्री और फार्माकोलॉजी विभाग द्वारा किये गए एक अध्ययन में यह पाया गया है कि भारतीय पिचर प्लांट नेपेंथेस खासियाना (Nepenthes khasiana) शिकार को आकर्षित करने और पाचन प्रक्रिया में सहायता के लिये इस गैस का उपयोग करता है।
  • शोध टीम ने दर्शाया कि इस पौधे के बंद पिचर (pitcher) में कार्बन-डाइऑक्साइड का आधिक्य होता है।  इस गैस का सांद्रण 2,500 से 5,000 पीपीएम (पार्ट्स पर मिलियन) होता है, जो कि पृथ्वी के वायुमंडल में मौजूद इस गैस के सांद्रण से लगभग 10 गुना अधिक है।
  • नेपेंथेस के खुले पिचर कीटों को आकर्षित करने के लिये कार्बन-डाइऑक्साइड का निरंतर उत्सर्जन करते हैं। अम्लीय पिचर द्रव में उच्च मात्रा में कार्बन-डाइऑक्साइड घुली होती है जो पाचक एंजाइमों की इष्टतम गतिविधियों को सुनिश्चित करती है। 
  • नेपेंथेस कुल के मांसभक्षी पौधे पत्तियों में विकसित पिचर के माध्यम से कीड़ों पर कब्ज़ा करके अपने पोषक तत्त्वों की कमी को पूरा करते हैं।  ये पिचर उनके लिये एक जैवीय जाल के रूप में कार्य करते हैं। कार्बन-डाइऑक्साइड एक ‘संवेदी क्यू’ (sensory cue) है और अधिकांश कीड़े इनके अच्छे ग्राही (receptors) होते हैं।
  • अध्ययन में पाया गया है कि पिचर्स के अंदर कार्बन-डाइऑक्साइड का अत्यधिक उत्पादन गुहाओं (cavity) के भीतर चलने वाली ऊतकों की श्वसन (respiration of tissues) प्रक्रिया द्वारा किया जाता है।   
  • पिचर खुलते ही कार्बन-डाइऑक्साइड का उत्सर्जन होता है और पकड़ा गया शिकार पिचर द्रव में एंटीफंगल यौगिकों (antifungal compounds) के सांद्रण को बिखेर देता है।  इससे पौधों को किसी प्रकार का संक्रमण नहीं होता। पिचर में कार्बन-डाइऑक्साइड  का उच्च सांद्रण और पिचर द्रव में घुली कार्बन-डाइऑक्साइड जकड़े गए शिकार के लिये एक प्रशान्तक (tranquilliser) के रूप में कार्य कर सकती है।
  • नेपेंथेस पिचर्स का उपयोग प्राकृतिक मॉडल के रूप किया जा सकता है क्योंकि इनमें भी पृथ्वी पर मौजूद कार्बन-डाइऑक्साइड के समान ही इसका उच्च सांद्रण इसका उच्च सांद्रण पाया जाता है। वर्ष 2013 में एक पेपर प्रकशित हुआ जिसमें ये बताया गया था कि नेपेंथेस और अन्य मांसभक्षी पौधों द्वारा अपने जाल में कीड़ों को फँसाने के लिये पराबैंगनी प्रतिदीप्ति का किया जाता है।

मांसभक्षी पौधे

  • मांसभक्षी पौधों को ऐसे पौधों के रूप में परिभाषित किया जाता है, जो शिकार को आकर्षित करते हैं, पकड़ते हैं, पचाते हैं और उनके शरीर के रस को अवशोषित कर लेते हैं।   इस प्रक्रिया को  मांसाहारी सिंड्रोम कहा जाता है। प्रमुख मांसभक्षी पौधों में सनड्यू (sundews), पिचर प्लांट (pitcher plants), बटरवोर्ट्स (butterworts), ब्लैडरवोर्ट्स (bladderworts) और विशिष्ट वीनस फ्लाईट्रैप (Venus's-flytrap) को शामिल किया जाता है।
  • अब तक 150 से अधिक कीटों की पहचान इनके शिकार के रूप में की गई है, परन्तु ये एराचेंड्स (मकड़ियाँ), मोलस्का (घोंघे और स्लग), केंचुओं और छोटी हड्डी वाले जानवर (जैसे छोटी मछलियाँ, उभयचर, रेंगने वाले जीव, चूहा और पक्षी) को भी पकड़ लेते हैं।
  • ये ऐसे स्थानों पर उगते हैं, जहाँ की मिट्टी में पोषक तत्त्वों पोषक तत्त्वों (मुख्यतः नाइट्रोजन,फॉस्फोरस और पोटैशियम) का अभाव पाया जाता है।