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सामाजिक न्याय

दिल्ली उच्च न्यायालय का ‘जीरो पेंडेंसी प्रोजेक्ट’

  • 10 May 2019
  • 4 min read

चर्चा में क्यों ?

हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय की प्रायोगिक परियोजना रिपोर्ट प्रस्तुत की गई जिसमें कहा गया कि न्यायालय में लंबित सभी मुकदमों को एक वर्ष में निपटाने हेतु वर्तमान न्यायाधीशों की संख्या में बढ़ोतरी करने की आवश्यकता है।

अल्प विश्वसनीय संस्था (Less Credible System)

  • ज़ीरो पेंडेंसी कोर्ट प्रोजेक्ट (Zero Pendency Courts Project) अपनी तरह की एकलौती ऐसी योजना है जिससे विभिन्न प्रकार के मामलों हेतु समयसीमा तथा न्यायाधीशों की संख्या निश्चित करने में सहायता मिलेगी।
  • रिपोर्ट के अनुसार, न्यायालय की न्यायिक प्रक्रिया में लगातार देरी होने से पक्षकारों को निर्णय मिलने में दशकों लग जाते हैं जिससे न्यायालय के प्रति विश्वास में कमी आने लगती है।
  • प्रतिवर्ष मुकदमों की बढ़ती संख्या के कारण न्यायपालिका पर लंबित मुकदमों का बोझ तीव्र दर से बढ़ रहा है। अतः इस समस्या से उभरने के लिये शीघ्र ही कोई व्यवस्थित योजना बनानी होगी।
  • वर्ष 2016 में यह अनुमान लगाया गया कि भारत में न्यायिक देरी और इससे संबंधित रख-रखाव में सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product- GDP) का 1.5% खर्च होता है।
  • दिल्ली उच्च न्यायालय ने न्यायिक प्रक्रिया और नियत समय पर निर्णय देने से संबंधित अध्ययन के लिये अपने कुछ अधीनस्थ न्यायालयों में जनवरी 2017 में पायलट प्रोजेक्ट की शुरुआत की।

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  • प्रोजेक्ट का प्राथमिक लक्ष्य लंबित मुकदमों को निस्तारित करने के पश्चात् मुकदमों के दायर होने की दर ज्ञात करना है।
  • रिपोर्ट में बताया गया कि दिल्ली में आपराधिक मुकदमों की संख्या, सिविल मुकदमों से बहुत अधिक है।
  • 20 मार्च, 2019 तक 5.5 लाख आपराधिक मुकदमे और 1.8 लाख सिविल मुकदमे दिल्ली के अधीनस्थ न्यायालयों में लंबित हैं।
  • यह भी उल्लेखनीय है कि किसी मुकदमें का निर्णय करने में सबसे अधिक समय लगता है और काफी समय मुकदमों को सुनने और लिखने एवं उससे संबंधित नियमों को खोजने आदि में खराब होता है। इसलिये निर्णय देने में काफी देरी होती है।

विलंब का कारण

  • इस रिपोर्ट के मुताबिक, सबूतों का अभाव भी मामलों में देरी के मूल कारणों में से एक है।
  • चूँकि साक्ष्य किसी भी मुकदमें का आधार होते हैं, अतः इनको एकत्रित करने में जितनी देरी होती है उसका सीधा प्रभाव वाद की न्यायिक प्रक्रिया पर पड़ता है। इसके साथ ही बाहरी पक्षकारों को सम्मन जारी करने में देरी होती है।
  • इसके अतिरिक्त अधिवक्ताओं और पक्षकारों द्वारा मुकदमें के हर स्तर पर अनावश्यक रूप से कार्यवाही को प्रभावित किया जाता है।
  • दूरस्थ क्षेत्रों के निवासी पक्षकारों को सम्मन जारी करने में भी देरी होती है इसलिये न्यायिक प्रक्रिया में अधिक विलंब होता है।
  • इस रिपोर्ट में कहा गया है कि न्यायाधीशों की कमी के कारण कार्य का बोझ बढ़ जाता है।
  • अतः लंबित मुकदमों के निश्चित समय में निस्तारण हेतु न्यायाधीशों की संख्या में वृद्धि करने की ज़रूरत है और वर्तमान न्यायाधीशों की संख्या 143 से 186 करने की आवश्यकता है।

स्रोत- द हिंदू

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