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हर 20 सालों में दोगुनी हो जाएगी कैंसर की दर

  • 05 Aug 2019
  • 5 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में टाटा मेडिकल सेंटर द्वारा किये गए एक अध्ययन में यह सामने आया है कि उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और ओडिशा जैसे राज्यों में आने वाले 10-20 वर्षों में काफी बड़ी संख्या में कैंसर के मामले सामने आएंगे।

प्रमुख बिंदु

  • कैंसर पर आधारित यह अध्ययन मोहनदास के. मल्लथ (टाटा मेडिकल सेंटर, कोलकाता) और रॉबर्ट स्मिथ (किंग्स कॉलेज, लंदन के छात्र) द्वारा संयुक्त रूप से किया गया था।
  • अध्ययन के अनुसार, इन राज्यों में पहले से ही स्वास्थ्य सुविधाओं की मांग और पूर्ति में काफी बड़ा अंतर है। यदि इसके समाधान के लिये तत्काल कुछ बड़े कदम नहीं उठाए गए तो इन राज्यों को बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
  • अध्ययन के प्रमुख शोधकर्त्ता के. मल्लथ के अनुसार, इस अध्ययन को करने के पीछे एक बड़ा कारण यह था कि वे इस गलतफहमी में थे कि भारत में कैंसर की महामारी का प्रमुख कारण पश्चिमी जीवन शैली अर्थात् आधुनिक जीवन शैली है और वे इस समस्या की तह तक जाना चाहते थे।
  • इस अध्ययन के लिये दोनों शोधकर्त्ताओं ने लंदन के दो पुस्तकालयों (ब्रिटिश लाइब्रेरी और वेलकम कलेक्शन लाइब्रेरी) में बीते दो दशकों में कैंसर पर प्रकाशित सभी अध्ययनों की जाँच की थी।
  • अध्ययन के अनुसार, जैसे-जैसे भारतीयों की जीवन प्रत्याशा में वृद्धि हो रही है वैसे-वैसे कैंसर के मामलों में भी वृद्धि हो रही है। यह संख्या यदि इसी तरह बढ़ती रही तो हर बीस साल में कैंसर के मामलों दोगुने होते जाएंगे।
  • उदाहरण के लिये, यदि तम्बाकू को पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया जाए, तो भारतीयों की जीवन प्रत्याशा 10 वर्ष और बढ़ जाएगी, जिससे देश में कैंसर के मामलों में भी वृद्धि होगी।
  • स्वास्थ्य विशेषज्ञ इसे महामारी विज्ञान संक्रमण स्तर (Epidemiological Transition Levels- ETL) कहते हैं। भारत के कई राज्य ETL के अलग-अलग चरण में हैं, जैसे- केरल में ETL का स्तर सबसे अधिक है और उत्तर प्रदेश में ETL का स्तर सबसे कम। ज्ञातव्य है कि उच्च ETL वाले राज्यों में विकास सूचकांक काफी अच्छा होता है और कैंसर की दर भी।
  • हालाँकि उच्च ETL वाले राज्यों में कैंसर की दर अधिक होती है, परंतु इन राज्यों में बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं के कारण कैंसर से होने वाली मृत्यु दर आनुपातिक रूप से कम है।

इससे लड़ने के लिये क्या कर सकते हैं?

  • शोधकर्त्ताओं के अनुसार, सरकार को जल्द-से-जल्द कैंसर से संघर्ष करने के लिये कुछ महत्त्वपूर्ण कदम उठाने होंगे। यदि इस संदर्भ में केंद्र और राज्य अपने दायित्वों को लेकर भ्रमित होंगे तो इससे रोगियों को ही कष्ट सहना पड़ेगा।
  • सरकार को कैंसर के रोकथाम और देखभाल संबंधी कार्यक्रमों को चलने के लिये निजी अस्पतालों पर निर्भर नहीं रहना चाहिये, क्योंकि एक आम आदमी के लिये निजी अस्पतालों में इलाज करना काफी खर्चीला होता है।
  • आरंभिक तौर पर केंद्र सरकार को कैंसर पर भोरे कमेटी और मुदलियार कमेटी की सिफ़ारिशों को लागू करना चाहिये।
  • दोनों ही कमेटियों की सिफारिशों में सभी मेडिकल कॉलेजों में एक बहु-विषयक कैंसर उपचार इकाई (Multidisciplinary Cancer Treatment Unit) का निर्माण और सभी राज्यों में केरल के तिरुवनंतपुरम में स्थापित क्षेत्रीय कैंसर केंद्र जैसे एक अलग कैंसर अस्पताल की स्थापना करना शामिल है।

स्रोत: द हिंदू (बिज़नेस लाइन)

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