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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

कार्बन क्वांटम डॉट्स

  • 20 Jun 2019
  • 5 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में असम के वैज्ञानिकों की टीम ने एक रासायनिक प्रक्रिया विकसित की है जिसके द्वारा खराब कोयले को बायोमेडिकल ’डॉट’ के रूप में बदला जा सकता है। इसके माध्यम से कैंसर कोशिकाओं (Cancer cell) का पता लगाने में सहायता मिलती है।

  • वैज्ञानिकों ने इस रासायनिक प्रविधि के पेटेंट हेतु आवेदन किया है, जो सस्ते, प्रचुर मात्रा में उपलब्ध, निम्न-गुणवत्ता और उच्च-सल्फर वाले कोयले से कार्बन क्वांटम डॉट्स (Carbon Quantum Dots-CQDs) बनाने में सहायक है।

प्रमुख बिंदु

  • CQDs कार्बन-आधारित अतिसूक्ष्म पदार्थ (Nanomaterials) हैं। जिनका आकार 10 नैनोमीटर या इससे भी कम होता है।
  • वैज्ञानिकों के अनुसार, कार्बन-आधारित नैनोमैटेरियल (Carbon-based nanomaterials) का उपयोग जैव-इमेजिंग के लिये नैदानिक ​​उपकरणों के रूप में किया जाता है तथा इनका प्रयोग विशेष रूप से कैंसर कोशिकाओं का पता लगाने, रासायनिक संवेदन और ऑप्टो-इलेक्ट्रॉनिक्स (Opto-Electronics) में किया जाता है।
  • जापान और अमेरिका की कई केमिकल कंपनियाँ इन CQDs का उत्पादन कर रही हैं। असम के वैज्ञानिकों ने फ्लोरोसेंट कार्बन नैनोमैटेरियल्स को CQDs की आयातित लागत से अत्यधिक कम कीमत (आयात लागत का 1/20 भाग) पर विकसित किया है।
  • वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद-उत्तर पूर्व विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थान (Council of Scientific & Industrial Research-North East Institute of Science and Technology-CSIR-NEIST) के वैज्ञानिकों की टीम द्वारा किये गए अध्ययन को जर्नल ऑफ़ फ़ोटोकेमिस्ट्री एंड फ़ोटोबायोलॉजी (Journal of Photochemistry and Photobiology) में प्रकाशित किया गया। प्रकाशित अनुसंधान के अनुसार, CQDs में उच्च-स्थिरता (High-Stability), उत्तम-चालकता (Good-Conductivity) , कम-विषाक्तता (Low-Toxicity), पर्यावरण-मित्र (Environmental Friendliness) और अच्छे ऑप्टिकल गुण (Optical Properties) भी पाए जाते हैं।
  • विशेषज्ञों का मानना है कि इस प्रणाली में स्रोत के रूप में प्रयुक्त होने वाला कोयला प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होता है और इस निम्न गुणवत्ता वाले कोयले का प्रयोग बिजली उत्पादन के लिये भी नहीं किया जा सकता हैं।
  • CSIR-NEIST तकनीक द्वारा प्रतिदिन लगभग 1 लीटर CQDs का उत्पादन किया जा सकता है जिसमें आने वाला खर्च इसके आयात की लागत से भी कम होता है।
  • वैज्ञानिकों के अनुसार, इस प्रविधि के अन्य लाभ ये हैं कि यह पर्यावरण के अनुकूल अभिकर्मकों के रूप में कार्य करता है तथा इसमें पानी का कम प्रयोग होता हैं। इस प्रक्रिया को एक प्रबंधनीय आपूर्ति श्रृंखला के साथ पुनर्चक्रित (Recycle) किया जा सकता है।

वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद-उत्तर पूर्व विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थान

(Council of Scientific & Industrial Research-North East Institute of Science and Technology-CSIR-NEIST)

  • इसकी स्थापना वर्ष 1961 में जोरहाट में वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) की बहु-विषयक प्रयोगशाला के रूप में हुई थी।
  • इसकी अनुसंधान एवं विकास गतिविधियों का प्रमुख उद्देश्य स्वदेशी तकनीक द्वारा भारत की अपार प्राकृतिक संपदा का महत्तम उपयोग करना है।
  • विगत वर्षों में, प्रयोगशाला ने एग्रोटेक्नोलाजी, जैविक और तेल क्षेत्र रसायन के क्षेत्रों में 100 से अधिक प्रौद्योगिकियाँ विकसित की हैं, जिनमें से लगभग 40% प्रौद्योगिकियों ने विभिन्न उद्योगों की स्थापना करने एवं उनकी व्यावसायिक सफलता में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

स्रोत: द हिंदू

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