अंतर्राष्ट्रीय संबंध
क्या मानसिक रूप से मंद वयस्क को नाबालिक माना जा सकता है?
- 22 Jul 2017
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संदर्भ
उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि "मानसिक रूप से मंद" (mentally retarded) वयस्क को बालक नहीं माना जा सकता है तथा उसे बाल यौन अपराध संरक्षण अधिनियम, 2012 (Prevention of Children from Sexual Offences Act, 2012) के तहत सुरक्षा नहीं दी जा सकती है।
प्रमुख बिंदु
- यह बात उच्चतम न्यायालय ने एक ऐसे केस की सुनवाई के दौरान कही जिसमें एक यौन पीड़िता जिसकी जैविक आयु 38 वर्ष है परन्तु उसके मानसिक रूप से कमज़ोर होने के कारण मेडिकल रिपोर्ट में उसकी मानसिक आयु को छह वर्ष के बालक के बराबर बताया गया है।
- इस केस में पीड़िता की माँ ने सर्वोच्च न्यायालय से गुहार लगाई है कि पोस्को कानून की धारा (2) में ‘बालक’ (child) की जो परिभाषा दी गई है, न्यायालय उसमें सुधार करे अथवा विस्तृत करे, ताकि “मानसिक रूप से मंद या बौद्धिक रूप से बेहद चुनौतीपूर्ण” वयस्कों को भी उसमें शामिल किया जा सके। तभी इस अधिनियम का उद्देश्य पूरा होगा।
- पीड़िता की माँ ने अपनी याचिका में कहा है कि पोस्को कानून के तहत न्याय पाने के लिये जैविक आयु को ही केवल पैमाना या मानक नहीं माना जाना चाहिये। यदि कोई वयस्क है, परन्तु अपनी मानसिक कमज़ोरी के कारण यह समझ पाने में असमर्थ हो कि उसके साथ क्या हो रहा है तो वह भी एक बालक के बराबर ही है।
विधायिका की भूमिका अदा नहीं की जा सकती
- इस केस में फैसला देते समय सर्वोच्च न्यायालय के दोनों जजों, जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस रोहिंटन फली नरीमन की पीठ ने अपने अलग-अलग निर्णय में सहमति व्यक्त की कि वे विधायिका की भूमिका अदा नहीं कर सकते हैं।
- उन्होंने कहा कि जज केवल कानून की व्याख्या कर सकते हैं, कानून बना नहीं सकते। कानून बनाने का अधिकार उनके पास नहीं, बल्कि विधायिका के पास है।
- न्यायालय केवल यह देख सकता है कि कानून कैसा बनाया गया है, परन्तु कानून कैसा होना चाहिए, यह तय करने का अधिकार न्यायपालिका के पास नहीं है।
जैविक आयु एवं मानसिक आयु में अंतर
- जैविक आयु मनुष्य की वास्तविक या प्राकृतिक आयु को कहते हैं। यह मनुष्य के जन्म के साथ-साथ बढ़ती चली जाती है। इसे किसी प्रकार से घटाया या घटा हुआ नहीं माना जा सकता है, जबकि मानसिक आयु का संबंध व्यक्ति की मानसिक परिपक्वता से है एवं इसे उसकी परिपक्वता के अनुसार चिकित्सा विशेषज्ञों द्वारा तय किया जा सकता है।
क्या है बाल यौन अपराध संरक्षण अधिनियम, 2012
- इस अधिनियम के अनुसार “बालक” से ऐसा कोई व्यक्ति अभिप्रेत है जिसकी आयु अठारह वर्ष से कम है।
- इसका विस्तार जम्मू-कश्मीर राज्य के सिवाय सम्पूर्ण भारत पर है।
- यह अधिनियम 14 नवंबर, 2012 से लागू है।
- यह अधिनियम अठारह वर्ष से कम आयु के बच्चों को किसी भी तरह के यौन अपराधों से सुरक्षा एवं न्याय प्रदान करता है।
- इसके तहत किसी पुलिस अधिकारी, लोक सेवक, रिमांड गृह, संरक्षण या प्रेक्षण गृह, जेल, अस्पताल या शैक्षिक संस्था में स्टाफ के किसी सदस्य द्वारा किसी बच्चे के साथ यौन दुराचार किये जाने को गंभीर अपराध माना गया है।
- यह अधिनियम "मानसिक विकलांगता" की घटना को तो पहचानता है, लेकिन अपने दायरे को केवल नाबालिगों की मानसिक विकलांगता तक ही सीमित करता है।