विरोध प्रदर्शन के अधिकार पर उच्चतम न्यायालय का निर्णय | 08 Oct 2020
प्रिलिम्स के लिये:मौलिक अधिकार, अनुच्छेद-19 मेन्स के लिये:लोकतंत्र और असहमति का अधिकार, भारतीय लोकतंत्र में उच्चतम न्यायालय की भूमिका |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने एक मामले की सुनवाई के दौरान स्पष्ट किया कि विरोध प्रदर्शन करने के लिये सार्वजनिक मार्गों या स्थलों पर पर कब्ज़ा नहीं किया जा सकता।
प्रमुख बिंदु:
- उच्चतम न्यायालय की तीन सदस्यीय पीठ ने नागरिकता संशोधन अधिनियम के विरोध में दिल्ली के शाहीन बाग में प्रदर्शनकारियों द्वारा सार्वजनिक सड़क पर कब्ज़ा करने की घटना को अस्वीकरणीय बताया।
- उच्चतम न्यायालय ने कहा कि शाहीन बाग में आयोजित प्रदर्शन सार्वजनिक मार्ग की नाकाबंदी थी, जिससे यात्रियों को भारी असुविधा का सामना करना पड़ा।
पृष्ठभूमि:
- उच्चतम न्यायालय का यह फैसला एक याचिका की सुनवाई के दौरान आया है, जिसमें राजधानी दिल्ली के शाहीन बाग में प्रदर्शनकारियों को हटाए जाने की मांग की गई थी।
- गौरतलब है कि दिल्ली के शाहीन बाग इलाके में दिसंबर 2019 से मार्च 2020 के बीच नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 के खिलाफ धरना प्रदर्शन का आयोजन किया गया था।
- 14 जनवरी, 2020 को इस मामले में दायर एक याचिका की सुनवाई करते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने कोई विशेष आदेश दिये बिना मामले को बंद कर दिया।
- दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि दिल्ली पुलिस के पास किसी भी विरोध या आंदोलन की स्थिति में जनता के हित को देखते हुए यातायात को नियंत्रित करने के लिये सभी शक्तियाँ और अधिकार हैं।
नेतृत्त्व का अभाव:
- उच्चतम न्यायालय ने कहा कि देश में COVID-19 महामारी की शुरुआत के बाद भी प्रदर्शनकारी प्रदर्शन स्थल पर बने रहे। न्यायालय के अनुसार, इस बात की भी संभावना अधिक है कि प्रदर्शनकारियों को COVID-19 की गंभीरता का अनुमान नहीं था।
- उच्चतम न्यायालय ने इस विरोध प्रदर्शन में नेतृत्त्व के अभाव को रेखांकित किया, साथ ही न्यायालय ने इसे आधुनिक समय में आमतौर पर डिजिटल मीडिया से उत्पन्न होने वाले नेतृत्वविहीन असंतोष का उदाहरण बताया।
- किसी नेतृत्व के अभाव और कई समूहों की उपस्थिति में इस प्रदर्शन में कई प्रभावकारी लोग खड़े हो गए और प्रदर्शन का कोई एक उद्देश्य नहीं रह गया था।
- उच्चतम न्यायालय ने ऐसे बड़े प्रदर्शनों में सोशल मीडिया और तकनीकी की भूमिका तथा इसके दुष्प्रभावों को भी रेखांकित किया।
- वर्तमान में डिज़िटल इंफ्रास्ट्रक्चर के उपयोग के माध्यम से बहुत ही कम समय में किसी आंदोलन को अत्यधिक बड़ा बनाया जा सकता है, इसके कारण अक्सर कई नेतृत्त्वविहीन आंदोलन आवश्यक सेंसरशिप से बच जाते हैं।
- उच्चतम न्यायालय ने सोशल मीडिया चैनलों के माध्यम से ध्रुवीकृत वातावरण के निर्माण जैसे खतरों पर चिंता व्यक्त की।
अधिकारों की सीमाएँ:
- उच्चतम न्यायालय ने कहा कि मौलिक अधिकार समाज से अलग नहीं हैं, विरोधकर्त्ताओं के अधिकारों का यात्रियों के अधिकारों के साथ संतुलन आवश्यक है। दोनों को परस्पर सम्मान के साथ रहना होगा।
- उच्चतम न्यायालय ने कहा कि वह याचिकाकर्त्ताओं (जिन्होंने प्रदर्शनकारियों के बचाव में मामले में हस्तक्षेप करने की मांग की थी) की दलील को नहीं स्वीकार सकता कि वे जब भी विरोध करना चाहें,एक अनिश्चित संख्या में लोग इकट्ठा हो सकते हैं।
- इस प्रकार के विरोध प्रदर्शन के लिये सार्वजनिक मार्ग (संबंधित मामले में या कई और भी) पर कब्ज़ा पूर्णरूप से अस्वीकार्य है और प्रशासन को ऐसे मामलों में अतिक्रमण या अवरोध हटाने के लिये आवश्यक कार्रवाई करनी चाहिये।
प्रशासन और उच्च न्यायालय की भूमिका पर प्रश्न:
- उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि दिल्ली उच्च न्यायालय को मामले को ऐसे ही न छोड़ते हुए याचिका प्राप्त करने के बाद सकारात्मक हस्तक्षेप करना चाहिये था, साथ ही प्रशासन को भी प्रदर्शनकारियों से बात करनी चाहिये थी।
- उच्चतम न्यायालय ने कहा कि यह पूरी तरह से प्रशासन की ज़िम्मेदारी है कि वह सार्वजनिक स्थानों पर अतिक्रमण को रोके और इसके लिये उसे न्यायालय द्वारा उपयुक्त आदेश पारित करने की प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिये।
लोकतंत्र और असहमति:
(Democracy and Dissent)
- उच्चतम न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा कि लोकतंत्र और असहमति साथ-साथ चलते हैं, परंतु असहमति व्यक्त करने वाले विरोध प्रदर्शन सिर्फ निर्धारित स्थानों पर ही होने चाहिये।
- स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भारतीयों में विरोध और असंतोष व्यक्त करने के बीज बोए गए थे। परंतु औपनिवेशिक शासन के खिलाफ असंतोष को स्व-शासित लोकतंत्र में असंतोष के साथ नहीं जोड़ा जा सकता है।
- संविधान के तहत सभी को विरोध और असंतोष व्यक्त करने का अधिकार प्राप्त है परंतु इसके साथ कुछ कर्तव्यों के प्रति हमारे कुछ दायित्व भी हैं।
- संविधान के अनुच्छेद-19 के तहत नागरिकों को दो महत्त्वपूर्ण अधिकार प्रदान किये गए हैं-
- अनुच्छेद-19 (1)(a) के तहत बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार।
- अनुच्छेद-19 (1)(b) के तहत बिना हथियार किसी स्थान पर शांतिपूर्वक इकट्ठा होने का अधिकार।
- ये अधिकार एक साथ मिलकर नागरिकों को शांति से इकट्ठा होने और राज्य की कार्रवाई या निष्क्रियता के खिलाफ विरोध करने में सक्षम बनाते हैं।
- उच्चतम न्यायालय ने कहा कि लोकतंत्र में बोलने की स्वतंत्रता और शांतिपूर्ण विरोध के अधिकार को बहुमूल्य माना जाता है। अतः इन्हें प्रोत्साहित और सम्मानित किया जाना चाहिये।
- परंतु ये अधिकार संप्रभुता, अखंडता और सार्वजनिक व्यवस्था के हित के लिये लगाए गए उचित प्रतिबंधों के अधीन भी हैं [अनुच्छेद-19(2) के तहत]।
पूर्व के मामले:
- उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली के जंतर-मंतर पर प्रदर्शनों से संबंधित ‘मज़दूर किसान शक्ति संगठन बनाम भारत संघ’ के अपने 2018 के फैसले और एक अन्य मामले का भी उल्लेख किया।
- उच्चतम न्यायालय ने अपने निर्णय में प्रदर्शनकारियों और स्थानीय लोगों के हितों को लेकर संतुलन स्थापित करने का प्रयास किया तथा पुलिस को शांतिपूर्ण विरोध और प्रदर्शनों के लिये क्षेत्र के सीमित उपयोग हेतु एक उचित तंत्र तैयार करने एवं इसके लिये अन्य मापदंड निर्धारित करने का निर्देश दिया।
- उच्चतम न्यायालय ने सरकारों को नागरिकों के ‘बोलने की स्वतंत्रता और शांतिपूर्ण विरोध के अधिकार’ को प्रोत्साहित तथा सम्मानित करने का सुझाव दिया।