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भारतीय अर्थव्यवस्था

‘जलीय कृषि’ में ‘केज कल्चर’

  • 29 Jan 2022
  • 7 min read

प्रिलिम्स के लिये:

‘जलीय कृषि’ में केज कल्चर, मत्स्य पालन क्षेत्र से संबंधित पहलें।

मेन्स के लिये:

‘जलीय कृषि’ के तहत ‘केज कल्चर’ का महत्त्व और संबद्ध चुनौतियाँ, नीली क्रांति।

चर्चा में क्यों?

मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय ने ‘आज़ादी का अमृत महोत्सव’ के हिस्से के रूप में "केज एक्वाकल्चर इन रिज़र्वायर: स्लीपिंग जाइंट्स" विषय पर एक वेबिनार का आयोजन किया।

प्रमुख बिंदु

  • परिचय:
    • ‘केज एक्वाकल्चर’ के तहत मौजूदा जल संसाधनों के भीतर ही मत्स्यपालन शामिल होता है, जबकि यह एक केज/पिंजरे के माध्यम से संलग्न होता है जो पानी के मुक्त प्रवाह की अनुमति देता है।
    • यह एक जलकृषि उत्पादन प्रणाली है, जो फ्लोटिंग फ्रेम, जाल और मूरिंग सिस्टम (रस्सी, बोया, लंगर आदि के साथ) से बनी होती है, जिसमें बड़ी संख्या में मछलियों को पकड़ने और पालने के लिये एक गोल या चौकोर आकार का तैरता हुआ जाल शामिल होता है और इसे जलाशय, नदी, झील या समुद्र में स्थापित किया जा सकता है।
    • ‘केज एक्वाकल्चर’ के तहत प्राकृतिक धाराओं का उपयोग करने के लिये इसे इस तरह से तैनात किया जाता है, जो मछली को ऑक्सीजन तथा अन्य उपयुक्त प्राकृतिक स्थितियाँ प्रदान करते हैं।
  • ‘केज कल्चर’ के कारण:
    • मछली की बढ़ती खपत, जंगली मछलियों के घटते स्टॉक और खराब कृषि अर्थव्यवस्था जैसे कारकों ने ‘केज कल्चर’ में मछली उत्पादन में रुचि बढ़ा दी है।
    • कई छोटे या सीमित संसाधन वाले किसान पारंपरिक कृषि फसलों के विकल्प तलाश रहे हैं।
    • केज कल्चर प्रणाली में प्राप्त होने वाले उच्च उत्पादन को देखते हुए यह भारत में समग्र मछली उत्पादन को बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
  • महत्त्व:
    • भूमि पर मत्स्य पालन की बाधाओं को दूर करता है
    • यह मौजूदा जल निकायों में मत्स्य पालन की सबसे बड़ी बाधाओं में से एक अर्थात् ऑक्सीजन युक्त जल के निरंतर प्रवाह की आवश्यकता को दूर करती है।
    • कम-से-कम कार्बन उत्सर्जन
    • ‘केज कल्चर’ एक कम प्रभाव वाली कृषि पद्धति है जिसमें उच्च रिटर्न और कम-से-कम कार्बन उत्सर्जन गतिविधि होती है।
  • विस्तार के अवसर:
    • एक्वाकल्चर तेज़ी से विस्तार करने वाला उद्योग प्रतीत होता है और यह छोटे पैमाने पर भी अवसर प्रदान करता है।
  • भारत की लंबी तटरेखा का बेहतर उपयोग:
    • भारत की लंबी तटरेखा के किनारे स्थित तटीय राज्यों में उपलब्ध विशाल लवणीय जल के क्षेत्र और अन्य कम उपयोग वाले जल निकायों का बेहतर उपयोग ‘केज कल्चर’ को अपनाकर किया जा सकता है।
  • वैकल्पिक आय स्रोत प्रदान करता है:
    • चूँकि निवेश कम होता है और इसके लिये बहुत कम/बिलकुल भी भूमि क्षेत्र की आवश्यकता नहीं होती है, कृषि का यह तरीका छोटे पैमाने के मछुआरों के लिये एक वैकल्पिक आय स्रोत के रूप में आदर्श है।
    • इसे एक घरेलू/महिला गतिविधि के रूप में लिया जा सकता है क्योंकि इसमें शामिल श्रम न्यूनतम है और इसे एक छोटे परिवार द्वारा प्रबंधित किया जा सकता है।
    • केज और उसके सहायक उपकरण का डिज़ाइन किसान की व्यक्तिगत आवश्यकताओं के अनुसार तैयार किया जा सकता है।
  • चुनौतियाँ:
    • केज में बंद मछलियों को दिया जाने वाला चारा पोषक तत्त्वों से भरपूर होना चाहिये और ताज़ा रखा जाना चाहिये।
    • लो डीज़ाॅल्व ऑक्सीजन सिंड्रोम (LODOS) एक सबसे बड़ी समस्या है और इसके लिये यांत्रिक वातन (mechanical aeration) की आवश्यकता हो सकती है।
    • नेट केज फाउलिंग।
    • बर्बरता या अवैध शिकार एक संभावित समस्या है।
    • नेविगेशन संबंधी मुद्दे।
    • अप्रयुक्त भोजन और मल के संचय से जल प्रदूषण के साथ-साथ सुपोषण भी होगा।
    • जल गुणवत्ता मानकों में परिवर्तन।
    • स्थानीय समुदाय के भीतर संघर्ष।
    • जलीय स्तनधारियों और पक्षियों द्वारा पूर्वानुमान।
    • पलायन।
    • पिंजरों में जलीय जीवों की भीड़भाड़।

मत्स्य पालन से संबंधित पहलें:

आगे की राह:

  • किसानों हेतु अच्छा रिटर्न सुनिश्चित करने के लिये संभावित बाज़ारों सहित जलाशयों में एक मज़बूत पिंजरा संवर्द्धन प्रणाली (Robust Cage Culture System) की आवश्यकता है।
  • राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के वैज्ञानिकों तथा मात्स्यिकी विभागों को मत्स्य किसानों को प्रेरित करने और लाभ बढ़ाने, इनपुट लागत में कमी लाने, प्रजातियों के विविधीकरण एवं जलाशयों में पिंजड़े (केज) के माध्यम से खेती प्रणालियों द्वारा उत्पादन व उत्पादकता को बढ़ाने के लिये नवीन तरीकों के साथ-साथ नीतियों को विकसित करने की आवश्यकता है।
  • देश के जलाशयों में अच्छी प्रबंधन प्रथाओं का पालन कर और सहायक सेवाएँ प्रदान करके पिंजड़े (केज) की जलीय कृषि को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।

स्रोत: पी.आई.बी.

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