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सामाजिक न्याय

सरकारी विद्यालय में शौचालयों पर CAG सर्वेक्षण

  • 24 Sep 2020
  • 7 min read

प्रीलिम्स के लिये 

नियंत्रक और महालेखा परीक्षक, स्वच्छ विद्यालय अभियान, शिक्षा का अधिकार अधिनियम

मेन्स के लिये

सरकारी विद्यालयों के बुनियादी ढाँचे से संबंधित मुद्दे 

चर्चा  में क्यों?

भारत के नियंत्रक और महालेखापरीक्षक (Comptroller and Auditor General- CAG) द्वारा संसद में प्रस्तुत एक रिपोर्ट के अनुसार, सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों द्वारा शिक्षा के अधिकार के हिस्से के रूप में सरकारी विद्यालयों में निर्मित 1.4 लाख शौचालयों में से लगभग 40 प्रतिशत अस्तित्त्वहीन (Non-Existent), आंशिक रूप से निर्मित और अप्रयुक्त हैं। 

प्रमुख बिंदु

  • आँकड़ों के अनुसार, देश भर में तकरीबन 10.8 लाख सरकारी विद्यालय हैं, जहाँ सार्वजनिक क्षेत्र के केंद्रीय उद्यमों (CPSEs) की सहायता से कुल 1.4 लाख शौचालय बनाए गए हैं। 
  • भारत के नियंत्रक और महालेखापरीक्षक (CAG) ने अपनी रिपोर्ट में 15 राज्यों के 2,695 सरकारी विद्यालयों के शौचालयों का सर्वेक्षण किया है।

प्रमुख निष्कर्ष

  • संसद में प्रस्तुत नियंत्रक और महालेखापरीक्षक (CAG) ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि देश भर के सरकारी विद्यालयों में निर्मित 70 प्रतिशत से अधिक शौचालयों में पानी की सुविधा उपलब्ध नहीं है, वहीं 75 प्रतिशत शौचालयों में निर्धारित मानकों का सही ढंग से पालन नहीं किया गया है। 
  • रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘स्वच्छ विद्यालय अभियान’ के तहत सार्वजनिक क्षेत्र के केंद्रीय उद्यमों द्वारा पहचाने गए ऐसे कुल 83 शौचालय हैं, जिनका निर्माण अभी तक नहीं किया गया है। 
    • वहीं अन्य 200 शौचालयों का निर्माण तो पूरा हो गया है, किंतु वे अभी भी अस्तित्त्वहीन हैं, जबकि 86 शौचालय ऐसे हैं जिनका निर्माण केवल आंशिक रूप से किया गया है। 
  • रिपोर्ट के अनुसार, 691 शौचालय ऐसे हैं, जिन्हें पानी की कमी, टूट-फूट या अन्य कारणों से उपयोग में नहीं लाया जा रहा है। 
  • सर्वेक्षण में शामिल किये गए 1,967 विद्यालयों में से 99 विद्यालयों में किसी भी प्रकार का शौचालय नहीं है, जबकि 436 विद्यालयों में केवल एक शौचालय है, जिसका अर्थ है कि 27 प्रतिशत स्कूलों में लड़कों और लड़कियों के लिये अलग-अलग शौचालय उपलब्ध कराने का लक्ष्य पूरा नहीं हुआ है। 
  • सर्वेक्षण के दौरान पाया गया कि जहाँ 72 प्रतिशत विद्यालयों में स्वच्छ पानी की उपलब्धता नहीं है, वहीं 55 प्रतिशत में हाथ धोने की कोई सुविधा नहीं थी। 
  • सर्वेक्षण के अनुसार, सरकारी विद्यालयों में 75 प्रतिशत शौचालय ऐसे हैं जहाँ दिन में कम-से-कम एक बार अनिवार्य सफाई के मानक का पालन नहीं किया जा रहा है। 

स्वच्छ विद्यालय अभियान के बारे में

  • स्वच्छ विद्यालय अभियान को सितंबर 2014 में मानव संसाधन विकास मंत्रालय (अब शिक्षा मंत्रालय) द्वारा लॉन्च किया गया था। 
  • इसका उद्देश्य शिक्षा के अधिकार (RTE) अधिनियम के जनादेश को पूरा करना है, जिसके अनुसार सभी विद्यालयों में लड़कों और लड़कियों के लिये अलग-अलग शौचालय होने चाहिये। 
  • छात्रों के व्यवहार को बदलने के लिये स्वच्छ विद्यालय अभियान के तहत यह निर्धारित किया गया है कि सार्वजनिक क्षेत्र के केंद्रीय उद्यम (CPSE) स्वच्छ पानी और हाथ धोने की सुविधा के साथ सरकारी विद्यालयों में शौचालयों का निर्माण करेंगे और तकरीबन तीन से पाँच वर्ष तक उनका रख-रखाव करेंगे।

विद्यालयों में शौचालयों का महत्त्व

  • गौरतलब है कि शिक्षा के अधिकार अधिनियम में यह अनिवार्य किया गया है कि सभी बच्चों को प्रत्येक दिन कम-से-कम छह घंटे विद्यालय में बिताने होंगे। इतनी लंबी अवधि के लिये विद्यालय में रुकने के लिये शौचालय काफी महत्त्वपूर्ण हैं।
    • अधिनियम में यह निर्धारित किया गया है कि सभी विद्यालयों में लड़कों और लड़कियों के लिये अलग-अलग शौचालय होने अनिवार्य हैं। 
  • विद्यालय में पानी, स्वच्छता और स्वच्छता सुविधाओं का प्रावधान एक स्वस्थ वातावरण के निर्माण में सहायता करता है और विद्यालय के बच्चों को बीमारी से बचाता है।
    • विदित हो कि स्कूल में मिड-डे मील खाने से पूर्व साबुन से हाथ धोने से काफी आसानी से बीमारियों के संचरण को रोका जा सकता है।
  • कई सामाजिक कार्यकर्त्ता मानते हैं कि लड़कियों के लिये अलग शौचालय का अभाव ही उनके विद्यालय छोड़ना का एक बड़ा कारण है। विद्यालय में लड़कियों के लिये एक अलग शौचालय होने से विद्यालय में नामांकन दर में काफी वृद्धि होती है।

आगे की राह

  • विद्यालयों में बुनियादी सुविधाओं के विकास से संबंधित इस तरह के कार्यक्रमों की सफलता के लिये नियमित निगरानी काफी महत्त्वपूर्ण है।
  • फंड, सफाई, स्वच्छता प्रशिक्षण और शौचालयों के रखरखाव आदि के अलावा जवाबदेही तय करने के मुद्दे पर ध्यान दिया जाना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू

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