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सरोगेसी विधेयक (नियमन), 2016 में आधिकारिक संशोधन

  • 22 Mar 2018
  • 8 min read

चर्चा में क्यों?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सरोगेसी (नियमन) विधेयक, 2016 में आधिकारिक संशोधन हेतु स्‍वीकृति दी है। सरोगेसी (नियमन) विधेयक, 2016 में भारत में राष्‍ट्रीय स्‍तर पर राष्‍ट्रीय सरोगेसी बोर्ड, राज्‍यों और केंद्रशासित प्रदेशों में राज्‍य सरोगेसी बोर्ड तथा उचित प्राधिकरण स्‍थापित करके सरोगेसी को नियमों के दायरे में लाने का प्रस्‍ताव किया गया है।

प्रमुख बिंदु

  • प्रस्‍तावित विधेयक में सरोगेसी का कारगर नियमन, वाणिज्यिक सरोगेसी निषेध तथा प्रजनन क्षमता से वंचित भारतीय दंपतियों को परोपकारी सरोगेसी की अनुमति सुनिश्चित की गई है।
  • इस विधेयक के संसद द्वारा पारित होने के बाद राष्‍ट्रीय सरोगेसी बोर्ड का गठन किया जाएगा। केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचना जारी किये जाने के तीन महीने के भीतर राज्‍य और केंद्रशासित प्रदेश राज्‍य सरोगेसी बोर्ड और राज्‍य का उचित प्राधिकरण गठित करेंगे।

इसका प्रभाव क्या होगा?

  • इन संशोधनों के प्रभावी होने पर यह अधिनियम देश में सरोगेसी (किराए की कोख) सेवाओं का नियमन करेगा, सरोगेसी में अनैतिक व्‍यवहारों को नियंत्रित करेगा, किराए की कोख का वाणिज्यिकीकरण रोकेगा और सरोगेसी से माँ बनने वाली महिलाओं एवं सरोगेसी से पैदा होने वाले बच्‍चों का संभावित शोषण रोकेगा।
  • वाणिज्यिक सरोगेसी निषेध में मानव भ्रूण तथा युग्‍मक की खरीद और बिक्री जैसे पक्षों को शामिल किया गया है।
  • इसके अतिरिक्त प्रजनन क्षमता से वंचित दंपति की आवश्‍यकता को पूरा करने के लिये निश्चित शर्तों को पूरा करने पर तथा विशेष उद्देश्‍यों के लिये नैतिक सरोगेसी की भी अनुमति दी जाएगी।
  • इससे नैतिक सरोगेसी सुविधा के इच्‍छुक प्रजनन क्षमता से वंचित विवाहित दंपतियों को लाभ होगा।
  • इसके अतिरिक्‍त सरोगेसी से माता बनने वाली महिलाओं और सरोगेसी से जन्‍म लेने वाले बच्‍चों के अधिकारों की भी रक्षा की जाएगी।
  • यह विधेयक जम्‍मू और कश्‍मीर राज्‍य को छोड़कर पूरे भारत में लागू होगा।

पृष्‍ठभूमि

  • विभिन्‍न देशों से दं‍पति भारत आते हैं और भारत सरोगेसी केंद्र के रूप में उभरा है। लेकिन अनैतिक व्‍यवहारों, सरोगेसी प्रक्रिया से माता बनने वाली महिलाओं का शोषण, सरोगेसी प्रक्रिया से जन्‍म लेने वाले बच्‍चों का परित्‍याग और मानव भ्रूण तथा युग्‍मक लेने में बिचौलियों की धोखाधड़ी की घटनाएँ चिंताजनक हैं।
  • भारत के विधि आयोग की 228वीं रिपोर्ट में वाणिज्यिक सरोगेसी के निषेध और उचित विधायी कार्य द्वारा नैतिक परोपकारी सरोगेसी की अनुमति की सिफारिश की गई है।
  • सरोगेसी (नियमन) विधेयक 21 नवंबर, 2016 को लोकसभा में पेश किया गया, जिसे 12 जनवरी, 2017 को स्‍वास्‍थ्‍य एवं परिवार कल्‍याण मंत्रालय द्वारा संसद की स्‍थायी समिति को भेजा गया।
  • संसद की स्‍थायी समिति द्वारा हितधारकों, केंद्र सरकार के मंत्रालय/विभागों, स्‍वयंसेवी संगठनों, चिकित्‍सा क्षेत्र के पेशेवर लोगों, वकीलों, शोधकर्त्ताओं, प्रवर्तक अभिभावकों तथा सरोगेसी से माता बनने वाली महिलाओं के साथ विचार-विमर्श किया गया और उनके सुझाव प्राप्‍त किये गए।
  • स्‍वास्‍थ्‍य एवं परिवार कल्‍याण मंत्रालय से संबंधित संसद की स्‍थायी समिति की 102वीं रिपोर्ट राज्‍यसभा और लोकसभा में एक साथ 10 अगस्‍त, 2017 को पटल पर रखी गई।

सरोगेसी क्या है?

  • सरोगेसी एक महिला और एक दंपति के बीच का एक समझौता है, जो अपनी स्वयं की संतान चाहता है।
  • सामान्य शब्दों में सरोगेसी का अर्थ है कि शिशु के जन्म तक एक महिला की ‘किराए की कोख’। प्रायः सरोगेसी की मदद तब ली जाती है जब किसी दंपति को बच्चे को जन्‍म देने में कठिनाई आ रही हो।
  • बार-बार गर्भपात हो रहा हो या फिर बार-बार आईवीएफ तकनीक असफल हो रही हो। जो महिला किसी और दंपति के बच्चे को अपनी कोख से जन्‍म देने को तैयार हो जाती है उसे ‘सरोगेट मदर’ कहा जाता है।
  • भारत में सरोगेसी का खर्चा अन्य देशों से कई गुना कम है और साथ ही भारत में ऐसी बहुत सी महिलाएँ उपलब्ध हैं जो सरोगेट मदर बनने को आसानी से तैयार हो जाती हैं।
  • गर्भवती होने से लेकर डिलीवरी तक महिलाओं की अच्छी तरह से देखभाल तो होती ही है, साथ ही उन्हें अच्छी-खासी धनराशि भी दी जाती है।
  • सरोगेसी की सुविधा कुछ विशेष एजेंसियों द्वारा उपलब्ध करवाई जाती है। इन एजेंसियों को आर्ट क्लीनिक कहा जाता है, जो इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) के दिशा-निर्देशों पर अमल करती हैं।

सरोगेसी बिल, 2016

  • वर्ष 2002 से लागू सरोगेसी बिल के बाद सरोगेसी पर रोक लगाने का प्रावधान था, लेकिन यह प्रतिबंध केवल विदेशी सरोगेसी पर लगाया गया था। पहले कुछ अस्पताल ऐसी महिलाओं के संपर्क में रहते थे, जो पैसे लेकर किसी और के बच्चे को जन्म देने के लिये तैयार होती हैं।
  • इस व्यापारिक धंधे को नियंत्रण में लाने के लिये केंद्र सरकार ने सरोगेसी का नया बिल पेश किया था, जिसके अनुसार सरोगेट मदर को पहले से ही शादीशुदा होना और एक बच्चे की माँ होना भी ज़रूरी था।
  • सरोगेट मदर बच्चे को जन्म देने के बाद उसके संपर्क में रह सकती थी। साथ ही अविवाहित दंपति, एकल माता-पिता, लिव-इन पार्टनर और समलैंगिक लोगों को सरोगेसी सेवाएँ न देने का प्रस्ताव था। 
  • 2016 के बिल के अनुसार, दंपति के लिये ख़ुद को प्रसव के लिये अक्षम साबित करना और भारतीय होना अनिवार्य था। सरोगेट माँ को दंपति का करीबी रिश्तेदार होना भी ज़रूरी था।
  • दंपति की शादी को कम-से-कम 5 साल पूरे हुए हों और पत्नी की उम्र 25 से 50 साल तथा पति की उम्र 26 से 65 तय की गई थी। स्वास्थ्य को प्राथमिकता देते हुए सरोगेट मदर की उम्र 25 से 35 साल तय की गई थी।
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