सिंगुर में तितलियाँ बनी आकर्षण का केंद्र | 23 Oct 2017

संदर्भ

सिंगुर पश्चिम बंगाल के हुगली ज़िले में एक ग्रामीण ब्लॉक है, जिसमें भूमि अधिग्रहण संबंधी विवाद उपजते रहते हैं। हाल ही में भारतीय जंतु सर्वेक्षण के शोधकर्त्ताओं द्वारा किये गए एक अध्ययन में पहली बार यह पाया गया है कि इस ब्लॉक में तितलियों की 69 प्रजातियाँ पाई जाती हैं। तितलियों की ये कुल 69 प्रजातियाँ 54 पीढ़ियों (genera) और पाँच कुलों से संबंधित हैं। इन पाँच कुलों में निम्फैलीडाई (Nymphalidae) सर्वाधिक प्रभावशाली कुल है जिसमें तितलियों की कुल 22 प्रजातियाँ हैं।  इसके पश्चात् लाइकैनीडाई (Lycaenidae) का स्थान आता है, जिसमें कुल 19 प्रजातियाँ शामिल हैं। 

प्रमुख बिंदु

  • सिंगुर में पाई गई ये पाँच प्रजातियाँ दुर्लभ हैं और इन्हें वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 द्वारा संरक्षण प्रदान किया गया है। इनमें ट्री फ्लिटर (Tree Flitter), स्ट्रिपड एलबैट्रॉस (Striped Albatross), पी ब्लू (Pea Blue), कॉमन इंडियन क्रो (Common Indian Crow) और डेनैड एगफ्लाई (Danaid Eggfly) को शामिल किया गया है। यहाँ पाई गई तितलियों की अन्य प्रजातियों के नाम ज़ेबरा ब्लू (Zebra Blue), कॉमन बैंडेड पीकॉक (Common Banded Peacock) और इंडियन स्काइपर (Indian Skipper) हैं।
  • यह अध्ययन मार्च 2015 से लेकर नवंबर 2016 तक किया गया था तथा इस दौरान अधिकांश तितलियों का अवलोकन प्रातः 8 बजे से दोपहर तक किया गया था।
  • सिंगुर में तितलियों की 69 प्रजातियों की मौजूदगी इस ओर संकेत करती है कि इस क्षेत्र की ‘तितली विविधता’(butterfly diversity) उच्च है। यह इनका प्रारंभिक अध्ययन है। यहाँ ध्यान देने योग्य है कि सिंगुर न केवल तितलियों की विविधता में धनी है बल्कि यहाँ मेढकों और पक्षियों की भी कई प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
  • शोधकर्त्ताओं द्वारा इस ब्लॉक के धान और सब्ज़ियों के खेतों में तितलियों को पाया गया था। इसके अतिरिक्त इन्हें रेलवे लाइन और राष्ट्रीय राजमार्गों के आस-पास की झाड़ियों और घासों में भी पाया गया था।
  • सिंगुर में वन भूमि नहीं है और यह क्षेत्र चावल, आलू और सब्ज़ियों की खेती के लिये जाना जाता है।
  • कुछ वर्ष पूर्व यहाँ टाटा नैनो प्लांट के निर्माण के लिये किसानों की 997 एकड़ भूमि का अधिग्रहण कर लिया गया था और तब से लेकर यहाँ के किसान अपनी भूमि को वापस पाने के लिये सरकार के विरुद्ध संघर्ष कर रहे थे। यहाँ के कृषक समुदाय का कहना है कि यद्यपि वे केवल अपनी भूमि वापस पाने के लिये संघर्ष कर रहे थे, परन्तु अब उन्हें इस बात का एहसास होता है कि उनका ये संघर्ष बेवज़ह नहीं था, क्योंकि इससे सिंगुर का वातावरण अच्छा हुआ है और उन्हें विभिन्न प्रजातियों की तितलियों का अवलोकन करने का अवसर प्राप्त हुआ है।