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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

गैर-संचारी बीमारियों का बढ़ता बोझ

  • 15 Nov 2017
  • 8 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में लैंसेट जर्नल में प्रकाशित 'इंडिया स्टेट लेवल डिसीज़ बर्डन' (India State Level Disease Burden) रिपोर्ट को ग्लोबल बर्डन ऑफ डिसीज़ (Global Burden of Disease - GBD) अध्ययन, 2016 के भाग के रूप में तैयार किया गया है। इस रिपोर्ट में यह पाया गया कि भारत के हर राज्य में संक्रामक रोगों की अपेक्षा गैर-संचारी रोगों और चोटों का बोझ अधिक है। 

अध्ययन में शामिल प्रमुख बातें

  • इस अध्ययन में वर्ष 1990 से 2016 तक देश के लगभग सभी राज्यों में 83 जोखिम कारकों को आधार बनाया गया। इसके अंतर्गत कई प्रकार के स्रोतों से एकत्रित डेता का अध्ययन करने के पश्चात् यह पाया गया कि इस समयावधि में राज्यों में तकरीबन 333 रोगों एवं चोटों के कारण राज्यों पर अतिरिक्त बोझ पड़ा है। 
  • तकनीकी वैज्ञानिक पत्र के साथ जारी की गई इस रिपोर्ट में प्रत्‍येक राज्‍य की स्‍वास्‍थ्‍य स्थिति एवं विभिन्‍न राज्यों के बीच स्वास्थ्य असमानताओं पर भी व्यवस्थित अंतर्दृष्टि डाली गई है।
  • पिछले दो दशकों में भारत में अस्वस्थ आहार, उच्च रक्तचाप और रक्त शर्करा के कारण गैर-संक्रमित बीमारियों के योगदान में दोगुना वृद्धि हुई है। 
  • इसके अतिरिक्त उच्च प्रदूषण स्तर एवं तम्बाकू तथा धूम्रपान जैसे नशीले पदार्थों के इस्तेमाल के कारण यह स्थिति और भी खराब हो गई है।
  • यहाँ गौर करने वाली बात यह है कि सभी राज्यों की स्थिति एक जैसी नहीं है। प्रत्येक राज्य में भिन्न-भिन्न कारक उत्तरदायी हैं। उदाहरण के तौर प दिल्ली एवं महाराष्ट्र जैसे शहरों में औद्योगिक गतिविधियाँ अधिक होने के कारण प्रदूषण का योगदान अधिक होता है।
  • यह अनुमान पिछले 25 वर्षों में भारत में मौजूद सभी अभिज्ञेय महामारियों के संबंध में प्राप्त आँकड़ों के विश्लेषण पर आधारित हैं। 
  • राज्य स्तर पर बीमारियों के बोझ संबंधी प्रथम व्यापक डेटा प्रदान करने वाली इस रिपोर्ट के अंतर्गत जोखिम कारकों के अनुमानों सहित भारत के प्रत्येक राज्य में स्वास्थ्य स्थितियों के प्रति रुझानों का वर्णन किया गया है। 
  • इससे राज्यों में व्याप्त स्वास्थ्य असमानताओं को कम करने की दृष्टि से स्वास्थ्य योजना को और अधिक बेहतर बनाने तथा कुछ अत्यंत महत्त्वपूर्ण एवं संवेदनशील पक्षों पर अधिक ध्यान केंद्रित करने में भी सहायता मिलेगी।

उद्देश्य 

  • वस्तुतः इस रिपोर्ट को तैयार करने का प्रमुख उद्देश्य देश में बेहतर स्वास्थ्य व्यवस्था हेतु एक खुले-प्रवेश सुनिश्चित करने के साथ-साथ सार्वजनिक स्तर पर एक बेहतर ज्ञान आधार विकसित करना है। ज्ञान आधारित एक ऐसी व्यवस्था का विकास करना, जिसके अंतर्गत बीमारियों के बोझ संबंधी संभावित समग्र रुझानों के माध्यम से देश के प्रत्येक राज्य में स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिये मौलिक एवं दीर्घकालिक योगदान करने की क्षमता विद्यमान हो। 
  • इसका लाभ यह होगा कि इससे स्वास्थ्य के संदर्भ में नीति निर्माताओं द्वारा लिये जाने वाले निर्णयों में जोखिम कारकों के साथ-साथ इनके समाधान के संबंध में भी उचित कार्यवाही की जा सकेगी।

वर्तमान स्थिति क्या है?

  • वर्तमान में किसी भी भारतीय राज्य में अधिकतम आयु संभाव्‍यता और न्‍यूनतम आयु संभाव्‍यता के बीच का अंतर 11 वर्ष है। 
  • इसके अतिरिक्त उच्चतम शिशु मृत्यु दर एवं सबसे कम शिशु मृत्यु दर के राज्यों के बीच का अंतर 4 गुना है। स्पष्ट रूप से यह न केवल हमारी नीतिगत कमज़ोरियों को रेखांकित करता है बल्कि स्वास्थ्य के संबंध में सरकार के अपेक्षित व्यवहार की ओर भी इशारा करता है।
  • विकास के संदर्भ में समान स्तर के अन्‍य देशों की तुलना में भारत में कई स्वास्थ्य सूचकांकों की स्थिति बेहद दयनीय है।  

जीवन प्रत्याशा में वृद्धि

  • रिपोर्ट के अनुसार, 1990 से 2016 तक देश में जन्म के समय जीवन प्रत्याशा में क्रमश: 59.7 वर्ष (महिलाओं) और 58.3 वर्ष (पुरुषों) की वृद्धि हुई है। 
  • यदि महिलाओं एवं पुरुषों की आयु के संबंध में बात करें तो यह क्रमश: 70.3 वर्ष (महिलाओं के लिये) और 66.9 वर्ष (पुरुषों के लिये) की वृद्धि हुई है। 
  • इसके बावजूद इसमें असमानताओं का दौर अभी भी जारी है। उत्तर प्रदेश राज्य में महिलाओं की जीवन प्रत्याशा 66.8 वर्ष है जोकि राष्ट्रीय औसत से तो नीचे है ही साथ ही केरल राज्य (78.7 वर्ष) की तुलना में भी 12 साल कम है। 
  • इसी प्रकार केरल में पुरुषों की जीवन प्रत्याशा 73.8 वर्ष की है, लेकिन असम में पुरुषों की जीवन प्रत्याशा 63.6 वर्ष है। 
  • इस अध्ययन में यह पाया गया कि हालाँकि प्रत्येक राज्य में 5 साल तक की आयु वाले बच्चों की मृत्यु दर में अवश्य सुधार हुआ था, तथापि अभी भी देश के सभी राज्यों में सुधार की दर में चार गुने का अंतर व्याप्त है, जो स्पष्ट रूप से देश में विद्यमान स्वास्थ्य असमानताओं की ओर संकेत करता है।

निष्कर्ष

 स्पष्ट रूप से हमें अपनी अगली पीढ़ी को शारीरिक एवं मानसिक रूप से अधिक सक्षम एवं स्वस्थ बनाने के लिये कुपोषण के कारण होने वाले उच्‍च रोगों के बोझ से जल्‍द ही निपटना होगा, ताकि हम पूरी सक्षमता से देश के सभी नागरिकों के व्यक्तिगत विकास के साथ-साथ राष्‍ट्र के विकास को भी सुनिश्चित कर सकें। वस्तुतः सामाजिक और आर्थिक विकास के आधार पर देश की समस्त आबादी हेतु बेहतर स्वास्थ्य हासिल करना भारत सरकार का महत्त्वपूर्ण लक्ष्य होना चाहिये।

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