बूंदी स्थापत्य कला | 28 Oct 2020

प्रिलिम्स के लिये

बूंदी, ‘देखो अपना देश’ वेबिनार शृंखला

मेन्स के लिये

बूंदी की वास्तुकला विरासत

चर्चा में क्यों?

पर्यटन मंत्रालय ने 24 अक्तूबर, 2020 को ‘बूंदी: आर्किटेक्चरल हेरिटेज ऑफ ए फॉरगोटेन राजपूत कैपिटल’ शीर्षक से ‘देखो अपना देश’ वेबिनार शृंखला का आयोजन किया, जो राजस्थान के बूंदी ज़िले पर केंद्रित थी।

उद्देश्य:

  • मध्ययुगीन भारत के प्रमुख शक्ति केंद्रों के आस-पास स्थित छोटे ऐतिहासिक शहर वर्तमान में गुमनामी की दशा में हैं।
  • भारत के विशाल भूगोल में विस्तृत छोटे शहरों और कस्बों की ओर पर्यटकों का ध्यान काफी कम गया है, ऐसे में पर्यटकों को इन क्षेत्रों के बारे में अवगत कराना काफी आवश्यक है, ताकि आम लोग इन क्षेत्रों के ऐतिहासिक महत्त्व को जान सकें और एक पर्यटन स्थल के तौर पर इनका विकास हो सके।

‘देखो अपना देश’ वेबिनार शृंखला

  • भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय ने 14 अप्रैल, 2020 से ‘देखो अपना देश’ (Dekho Apna Desh) वेबिनार शृंखला शुरू की है।
  • इस वेबिनार शृंखला का उद्देश्य भारत के कई गंतव्यों के बारे में जानकारी देने के साथ ही अतुल्य भारत की संस्कृति एवं विरासत की गहरी एवं विस्तृत जानकारी प्रदान करना है।

बूंदी

  • बूंदी, हाडा राजपूत (Hada Rajput) प्रांत की पूर्ववर्ती राजधानी है जिसे दक्षिण-पूर्वी राजस्थान में पहले हाडौती के नाम से जाना जाता था।
  • बूंदी को सीढ़ीदार बावड़ी का शहर, नीला शहर और छोटी काशी के रूप में भी जाना जाता है। प्राचीन समय में बूंदी के आसपास का क्षेत्र स्पष्ट रूप से विभिन्न स्थानीय जनजातियों का निवास स्थल था, जिनमें परिहार जनजाति, मीणा आदि प्रमुख थे।
  • बाद में इस क्षेत्र पर राव देव द्वारा शासन किया गया, जिन्होंने 1242 में बूंदी पर कब्ज़ा कर लिया और आसपास के क्षेत्र का नाम बदलकर हाडौती या हरोती रख दिया।

बूंदी में दरवाज़ों को इस प्रकार वर्गीकृत किया जा सकता है:

  1. तारागढ़ का प्रवेश द्वार, सबसे पुराना दरवाज़ा।
  2. चारदीवारी के चार शहर।
  3. बाहरी शहर की दीवार का दरवाज़ा।
  4. चारदीवारी वाले शहर की प्रमुख सड़कों पर दरवाज़ा।
  5. छोटा दरवाज़ा।

कोतवाली दरवाज़ा और नगर पोल सदर बाज़ार की दीवार शहर के भीतर बनाए गए थे।

वास्तुकला

  • बूंदी के भीतर और आसपास सौ से अधिक मंदिरों की उपस्थिति के कारण इसे छोटी काशी के रूप में जाना जाता था।
  • बूंदी के विकास के शुरुआती चरण में निर्मित मंदिरों में शास्त्रीय नागर शैली प्रचलित थी, जबकि बाद के चरणों में शास्त्रीय नागर शैली के साथ पारंपरिक हवेली के स्थापत्य के मिश्रण से मंदिर की नई अवधारणा सामने आई।
  • यहाँ के जैन मंदिरों ने एक अंतर्मुखी रूप में मंदिर स्थापत्य की तीसरी शैली को विकसित किया, जिसमें विशिष्ट जैन मंदिर की विशेषताओं जैसे- प्रवेश द्वार पर सर्पीय तोरण द्वार, बड़े घनाकार अपारदर्शी पत्थर और गर्भगृह पर नागर शैली के शिकारे के साथ केंद्रीय प्रांगण को जोड़ा गया था।
  • ऊँचे स्थान वाले मंदिरों के रूप में मंदिर स्थापत्य की एक चौथी शैली भी सामने आई।

बूंदी की वास्तुकला विरासत को छह प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है:

1. गढ़ (किला)

  • तारागढ़

2. गढ़ महल (रॉयल पैलेस)

  • भज महल
  • चतरा महल
  • उम्मेद महल

3. बावड़ी

  • खोज दरवाज़ा की बावड़ी
  • भलवाड़ी बावरी

4. कुंड (स्टेप्ड टैंक)

  • धाभाई जी का कुंड
  • नगर कुंड और सागर कुंड
  • रानी कुंड

5. सागर महल (लेक पैलेस)

  • मोती महल
  • सुख महल
  • शिकार बुर्ज

6. छतरी (सेनटैफ)

  • 84 खंभों वाली छतरी
  • तारागढ़ किला: तारागढ़ किले का निर्माण राव राजा बैर सिंह ने 1454 फीट ऊँची पहाड़ी पर वर्ष1354 में करवाया था।
    • मंडपों की घुमावदार छतों, मंदिर के स्तंभों और हाथियों की अधिकता तथा कमल की आकृति के साथ यह महल राजपूत शैली का एक प्रमुख उदाहरण है।
  • सुख महल: यह एक छोटा दो मंज़िला महल है जिसे शासकों द्वारा गर्मियों के मौसम में प्रयोग किया जाता था। जैतसागर झील के तट पर स्थित इस महल का निर्माण राव राजा विष्णु सिंह ने वर्ष 1773 में किया था।
  • रानीजी की बावड़ी: रानीजी की बावड़ी, रानी नाथावती द्वारा निर्मित एक प्रसिद्ध सीढ़ीदार बावड़ी है। यह बहुमंजिला बावड़ी गजराज की उत्कृष्ट नक्काशी को प्रदर्शित करती है।

स्रोत: पी.आई.बी