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कॉलेजियम की कार्यप्रणाली में पारदर्शिता लाने का प्रयास

  • 07 Oct 2017
  • 6 min read

चर्चा में क्यों?

  • न्यायपालिका में कॉलेजियम व्यवस्था को लेकर प्रायः सवाल उठते रहे हैं, लेकिन न्यायपालिका की 'स्वतंत्रता' का हवाला देकर हमेशा से इसका बचाव किया जाता रहा है। हालाँकि अब पहली बार तय किया गया है कि कॉलेजियम के फैसलों को सार्वजनिक किया जाएगा।
  • विदित हो कि कॉलेजियम व्यवस्था ने अपने फैसले शीर्ष अदालत की वेबसाइट पर अपलोड करने का फैसला किया है। कॉलेजियम व्यवस्था की कार्यवाही में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के उद्देश्य से उसके फैसलों को वेबसाइट पर अपलोड किया जाएगा।

क्या है कॉलेजियम व्यवस्था?

  • देश की अदालतों में जजों की नियुक्ति की प्रणाली को कॉलेजियम व्यवस्था कहा जाता है।
  • कॉलेजियम व्यवस्था के अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के नेतृत्व में बनी वरिष्ठ जजों की समिति जजों के नाम तथा नियुक्ति का फैसला करती है।
  • सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालय में जजों की नियुक्ति तथा तबादलों का फैसला भी कॉलेजियम ही करता है। उच्च न्यायालय के कौन से जज पदोन्नत होकर सर्वोच्च न्यायालय जाएंगे यह फैसला भी कॉलेजियम ही करता है।
  • उल्लेखनीय है कि कॉलेजियम व्य‍वस्था का उल्लेख न तो मूल संविधान में है और न ही उसके किसी संशोधित प्रावधान में। वर्तमान में कॉलेजियम व्यवस्था के अध्यक्ष चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा हैं और जस्टिस जे. चेलामेश्वरम, जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस मदन बी. लोकूर और जस्टिस कुरियन जोसेफ इसके सदस्य हैं।

कॉलेजियम व्यवस्था को लेकर क्यों है विवाद?

  • दरअसल, कॉलेजियम पाँच लोगों का समूह है और इन पाँच लोगों में शामिल हैं भारत के मुख्य न्यायाधीश और सर्वोच्च न्यायालय के चार वरिष्ठ न्यायाधीश। कॉलेजियम के द्वारा जजों के नियुक्ति का प्रावधान संविधान में कहीं नहीं है।
  • कॉलेजियम व्यवस्था को लेकर विवाद इसलिये है क्योंकि यह व्यवस्था नियुक्ति का सूत्रधार और नियुक्तिकर्त्ता दोनों स्वयं ही है। इस व्यवस्था में कार्यपालिका की भूमिका बिल्कुल नहीं है या है भी तो बस मामूली।

कॉलेजियम में सुधार के प्रयास

  • गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति और तबादले के लिये राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम बनाया था।
  • उल्लेखनीय है कि न्यायाधीशों की नियुक्ति करने वाले इस आयोग की अध्यक्षता भारत के मुख्य न्यायाधीश को करनी थी। इसके अलावा, सर्वोच्च न्यायालय के दो वरिष्ठ न्यायाधीश, केन्द्रीय विधि मंत्री और दो जानी-मानी हस्तियाँ भी इस आयोग का हिस्सा थीं।
  • आयोग में जानी-मानी दो हस्तियों का चयन तीन सदस्यीय समिति को करना था, जिसमें प्रधानमंत्री, मुख्य न्यायाधीश और लोकसभा में नेता विपक्ष या सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता शामिल थे।
  • आयोग से संबंधित एक दिलचस्प बात यह थी कि अगर आयोग के दो सदस्य किसी नियुक्ति पर सहमत नहीं हुए तो आयोग उस व्यक्ति की नियुक्ति की सिफारिश नहीं करेगा।

निष्कर्ष

  • राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई और वर्ष 2015 में न्यायालय ने इस अधिनियम को यह कहते हुए असंवैधानिक करार दिया कि ‘राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग’ अपने वर्तमान स्वरूप में न्यायपालिका के कामकाज में एक हस्तक्षेप मात्र है।
  • गौरतलब है कि शीर्ष न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली में व्यापक पारदर्शिता लाने की बात हमेशा से हो रही है, लेकिन दुर्भाग्य यह है कि अभी तक इस दिशा में कोई उल्लेखनीय प्रगति नहीं हुई है और शीर्ष न्यायालयों में न्यायाधीशों के बहुत से पद रिक्त हैं।
  • वर्तमान प्रयास से यह संभव है कि कॉलेजियम की गोपनीयता को लेकर जो विवाद होते रहे हैं उन पर विराम लग जाए। फिर भी कॉलेजियम में व्याप्त विसंगतियों को दूर करने के लिये यह पर्याप्त नहीं है।
  • न्यायाधीशों की नियुक्ति में नियंत्रण और संतुलन की व्यवस्था बनाए रखने के लिये यह आवश्यक है कि न्यायपालिका को ही न्यायिक नियुक्तियों का सर्वेसर्वा न बनने दिया जाए।
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