भारतीय अर्थव्यवस्था
कानून का निर्माण और निरसन
- 27 Jan 2021
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चर्चा में क्यों?
किसानों ने तीन विवादास्पद कृषि कानूनों को एक से डेढ़ वर्ष तक टालने के सरकार के प्रस्ताव को खारिज कर दिया है। किसान ज़ोर देकर कृषि कानूनों को निरस्त करने की मांग कर रहे हैं।
- ज्ञात हो कि बीते कुछ वर्षों में संसद ने कई कानूनों को निरस्त किया है और ऐसे भी कई कानून हैं, जो पारित होने के बावजूद कई वर्षों तक लागू नहीं किये गए।
प्रमुख बिंदु
कानून लाना/निरस्त करना
- संसद के पास देश के लिये कानून बनाने और उसे निरस्त करने अथवा समाप्त करने की शक्ति है। (यदि कोई कानून असंवैधानिक है तो न्यायपालिका के पास भी उस कानून को समाप्त करने की शक्ति है।)
- विधेयक एक प्रकार का प्रस्तावित मसौदा होता है, जिसका लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदनों से पारित होना आवश्यक है और केवल राष्ट्रपति की स्वीकृति के बाद ही कोई विधेयक अधिनियम बनता है।
- कानून के संबंध निरसन का अर्थ किसी विशिष्ट कानून को रद्द करने अथवा उसे समाप्त करने से है। कानून द्वारा निर्धारित प्रक्रिया का पालन करते हुए किसी भी अधिनियम को पूर्णतः अथवा आंशिक रूप से समाप्त अथवा निरस्त किया जा सकता है।
राष्ट्रपति की स्वीकृति
- संविधान के अनुच्छेद 111 के मुताबिक, राष्ट्रपति या तो विधेयक पर हस्ताक्षर कर सकता है या अपनी स्वीकृति को सुरक्षित रख सकता है।
- यदि राष्ट्रपति विधेयक पर अपनी सहमति देता है तो विधेयक को संसद के समक्ष पुनर्विचार के लिये प्रस्तुत किया जाएगा और यदि संसद एक बार पुनः इस विधेयक को पारित कर राष्ट्रपति के पास भेजती है तो राष्ट्रपति के पास उस विधेयक को मंज़ूरी देने के अतिरिक्त कोई अन्य विकल्प नहीं होगा।
- इस तरह राष्ट्रपति के पास ‘निलंबनकारी वीटो’ की शक्ति होती है।
कानून का परिचालन
- नियम एवं विनियम: संसद सरकार को किसी भी अधिनियम के कुशल क्रियान्वयन के लिये नियम एवं विनियम बनाने का दायित्व देती है।
- सरकार के पास न केवल नियम बनाने की शक्ति है, बल्कि वह स्वयं द्वारा बनाए गए नियम और विनियम को समाप्त कर सकती है।
- यदि सरकार नियम एवं विनियम नहीं बनाती है तो वह पूरा अधिनियम अथवा उस अधिनियम का कुछ विशिष्ट हिस्सा लागू नहीं होगा।
- वर्ष 1988 का बेनामी लेन-देन अधिनियम इस तथ्य का प्रत्यक्ष उदाहरण है, जो कि विनियमों के अभाव में लागू नहीं हो सका था।
- समयावधि: संसद की सिफारिश के मुताबिक, सरकार को कानून पारित होने के बाद छः माह के भीतर नियम बनाने होते हैं।
- संसदीय समिति के मुताबिक, विभिन्न मंत्रालयों द्वारा इन सिफारिशों का उल्लंघन किया जा रहा है।
राष्ट्रपति की वीटो शक्तियाँ
- प्रकार: राष्ट्रपति के पास मुख्यतः तीन प्रकार की वीटो शक्तियाँ होती हैं- (1) आत्यंतिक वीटो, (2) निलंबनकारी वीटो और (3) पॉकेट वीटो
- अपवाद: संविधान संशोधन विधेयक को लेकर राष्ट्रपति के पास कोई भी वीटो शक्ति नहीं है।
- आत्यंतिक वीटो
- अर्थ: इसका संबंध राष्ट्रपति की उस शक्ति से है जिसमें वह संसद द्वारा पारित किसी विधेयक को अपने पास सुरक्षित रखता है। इस प्रकार वह विधेयक समाप्त हो जाता है और वह अधिनियम नहीं बन पाता है।
- इसे प्रायः निम्नलिखित दो स्थितियों में प्रयोग किया जाता है:
- जब संसद द्वारा पारित विधेयक एक गैर-सरकारी विधेयक अथवा निजी विधेयक हो।
- जब विधेयक पर राष्ट्रपति की अनुमति मिलने से पूर्व ही मंत्रिमंडल द्वारा त्यागपत्र दे दिया जाए और नया मंत्रिमंडल राष्ट्रपति को विधेयक पर सहमति न देने की सलाह दे।
- निलंबनकारी वीटो
- अर्थ: राष्ट्रपति इस वीटो का प्रयोग तब करता है जब वह किसी विधेयक को संसद के पुनर्विचार हेतु लौटा देता है।
- यदि संसद उस विधेयक को पुनः किसी संशोधन के बिना अथवा संशोधन के साथ पारित कर राष्ट्रपति के पास भेजती है तो राष्ट्रपति उस पर अपनी स्वीकृति देने के लिये बाध्य है।
- अपवाद: राष्ट्रपति द्वारा धन विधेयक के संबंध में ‘निलंबनकारी वीटो’ की शक्ति का प्रयोग नहीं किया जा सकता है।
- अर्थ: राष्ट्रपति इस वीटो का प्रयोग तब करता है जब वह किसी विधेयक को संसद के पुनर्विचार हेतु लौटा देता है।
- पॉकेट वीटो
- अर्थ: इस मामले में राष्ट्रपति संसद द्वारा पारित विधेयक पर न तो अपनी सहमति देता है, न उसे अस्वीकृत करता है और न ही लौटता है, किंतु एक अनिश्चितकाल के लिये विधेयक को लंबित कर सकता है।
- अमेरिकी राष्ट्रपति जिसे 10 दिनों के भीतर विधेयक को वापस भेजना होता है, के विपरीत भारतीय राष्ट्रपति के समक्ष कोई बाध्यकारी समयसीमा नहीं है।
- अर्थ: इस मामले में राष्ट्रपति संसद द्वारा पारित विधेयक पर न तो अपनी सहमति देता है, न उसे अस्वीकृत करता है और न ही लौटता है, किंतु एक अनिश्चितकाल के लिये विधेयक को लंबित कर सकता है।
- राज्य विधेयकों पर वीटो
- राज्यपाल के पास राष्ट्रपति के विचार के लिये राज्य विधानमंडल द्वारा पारित कुछ विशिष्ट प्रकार के विधेयकों को आरक्षित करने का अधिकार है।
- राष्ट्रपति न केवल पहली बार बल्कि दूसरी बार भी राज्य विधानमंडल द्वारा पारित विधेयकों पर अस्वीकृति प्रकट कर सकता है।
- इस तरह राज्य विधेयकों के मामले में राष्ट्रपति को आत्यंतिक वीटो की शक्ति प्राप्त होती है, न कि निलंबनकारी वीटो की शक्ति।
- इसके अलावा राष्ट्रपति द्वारा राज्य विधेयकों के संबंध में भी पॉकेट वीटो की शक्ति का प्रयोग किया जा सकता है।