फिलीपींस को ब्रह्मोस का निर्यात | 03 Feb 2022
प्रिलिम्स के लिये:ब्रह्मोस मिसाइल, दक्षिण चीन सागर। मेन्स के लिये:रक्षा प्रौद्योगिकी, रक्षा निर्यात। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में फिलीपींस ने ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल के तट आधारित एंटी-शिप संस्करण की आपूर्ति के लिये ब्रह्मोस एयरोस्पेस प्राइवेट लिमिटेड के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं। यह इस मिसाइल के लिये पहला निर्यात ऑर्डर है, जो भारत और रूस का संयुक्त उत्पाद है।
- दक्षिण चीन सागर में विवादित द्वीपों को लेकर चीन के साथ तनाव के बीच फिलीपींस इस मिसाइल को शामिल करना चाहता है।
- कई देशों ने ब्रह्मोस मिसाइल हासिल करने में दिलचस्पी दिखाई है। उदाहरण के लिये इंडोनेशिया और थाईलैंड के साथ चर्चा उन्नत चरणों में है।
ब्रह्मोस मिसाइल की विशेषताएँ:
- ब्रह्मोस रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (The Defence Research and Development Organisation) तथा रूस के NPOM का एक संयुक्त उद्यम है।
- इसका नाम भारत की ब्रह्मपुत्र नदी और रूस की मोस्कवा नदी के नाम पर रखा गया है।
- यह दो चरणों वाली (पहले चरण में ठोस प्रणोदक इंजन और दूसरे में तरल रैमजेट) मिसाइल है।
- यह एक मल्टीप्लेटफॉर्म मिसाइल है यानी इसे ज़मीन, हवा और समुद्र तथा बहु क्षमता वाली मिसाइल से सटीकता के साथ लॉन्च किया जा सकता है, जो किसी भी मौसम में दिन और रात में काम करती है।
- यह ‘फायर एंड फॉरगेट्स’ सिद्धांत पर कार्य करती है यानी लॉन्च के बाद इसे मार्गदर्शन की आवश्यकता नहीं होती।
- ब्रह्मोस सबसे तेज़ क्रूज़ मिसाइलों में से एक है, यह वर्तमान में मैक 2.8 की गति के साथ कार्य करती है, जो कि ध्वनि की गति से लगभग 3 गुना अधिक है।
- हाल ही में ब्रह्मोस के एक उन्नत संस्करण (विस्तारित रेंज सी-टू-सी वेरिएंट) का परीक्षण किया गया था।
- भारत द्वारा जून 2016 में मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था (Missile Technology Control Regime-MTCR) में शामिल होने बाद इसकी रेंज को अगले चरण में 450 किमी. तथा 600 किमी. तक विस्तारित करने की योजना है।
- ब्रह्मोस मिसाइल को शुरुआत में 290 किमी. की रेंज के साथ विकसित किया गया था।
मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था (MTCR) क्या है?
- यह मिसाइल और मानव रहित हवाई वाहन प्रौद्योगिकी के प्रसार को रोकने हेतु 35 देशों के बीच एक अनौपचारिक एवं स्वैच्छिक साझेदारी है, जो 500 किलोग्राम से अधिक पेलोड को 300. से अधिक दूरी तक ले जाने में सक्षम है।
- उन सदस्यों को ऐसी मिसाइलों और यूएवी प्रणालियों की आपूर्ति करने से रोका जाता है जो गैर-सदस्यों की एमटीसीआर द्वारा नियंत्रित होते हैं।
- ये निर्णय सभी सदस्यों की सहमति से लिये जाते हैं।
- यह सदस्य देशों का एक गैर-संधि संघ है, जिसमें मिसाइल प्रणालियों हेतु सूचना साझा करने, राष्ट्रीय नियंत्रण कानूनों और निर्यात नीतियों तथा इन मिसाइल प्रणालियों की ऐसी महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों के हस्तांतरण को सीमित करने के लिये एक नियम-आधारित विनियमन तंत्र के बारे में कुछ दिशा-निर्देश हैं।
- इसकी स्थापना अप्रैल 1987 में G-7 देशों- यूएसए, यूके, फ्राँस, जर्मनी, कनाडा, इटली और जापान द्वारा की गई थी।
भारत के रक्षा निर्यात की स्थिति क्या है?
- रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिये रक्षा निर्यात सरकार के अभियान का एक स्तंभ है।
- 30 से अधिक भारतीय रक्षा कंपनियों ने इटली, मालदीव, श्रीलंका, रूस, फ्राँस, नेपाल, मॉरीशस, इज़रायल, मिस्र, संयुक्त अरब अमीरात, भूटान, इथियोपिया, सऊदी अरब, फिलीपींस, पोलैंड, चिली और स्पेन आदि देशों को हथियारों एवं उपकरणों का निर्यात किया है।
- निर्यात में व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरणों, रक्षा इलेक्ट्रॉनिक्स सिस्टम, इंजीनियरिंग यांत्रिक उपकरण, अपतटीय गश्ती जहाज़, उन्नत हल्के हेलीकॉप्टर, एवियोनिक्स सूट, रेडियो सिस्टम एवं रडार सिस्टम शामिल हैं।
- हालाँकि भारत का रक्षा निर्यात अभी भी अपेक्षित सीमा तक नहीं पहुँचा है।
- स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) ने वर्ष 2015-2019 के लिये प्रमुख हथियार निर्यातकों की सूची में भारत को 23वें स्थान पर रखा है।
- भारत अभी भी वैश्विक हथियारों का केवल 0.17% हिस्सा निर्यात करता है।
- रक्षा निर्यात में भारत के निराशाजनक प्रदर्शन का कारण यह है कि भारत के रक्षा मंत्रालय के पास अब तक निर्यात हेतु कोई समर्पित एजेंसी नहीं है।
- निर्यात का विषय अलग-अलग निगमों पर छोड़ दिया जाता है, जैसे- ‘ब्रह्मोस’ या ‘रक्षा सार्वजनिक शिपयार्ड’ और अन्य उपक्रम।
- इस संदर्भ में KPMG रिपोर्ट 'डिफेंस एक्सपोर्ट्स: अनटैप्ड पोटेंशियल' शीर्षक से एक विशेष "डिफेंस एक्सपोर्ट हेल्प डेस्क" की स्थापना के पहले चरण की सिफारिश की गई है।
- रिपोर्ट में कहा गया है कि हेल्प-डेस्क से मिले इनपुट के आधार पर भारतीय कंपनियाँ निर्यात हेतु सरकारी मशीनरी के साथ काम कर सकती हैं।
- यदि भारत पड़ोस के देशों को बड़ी सैन्य प्रणाली प्रदान करने में सफल होता है, तो यह न केवल रक्षा निर्यात को बढ़ावा देगा, बल्कि चीन के प्रभाव का मुकाबला करने के लिये एक रणनीतिक कदम भी होगा, क्योंकि वह पाकिस्तान, बांग्लादेश और म्याँमार सहित एशिया में कई देशों को रक्षा उत्पाद प्रदान करता है।