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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

बी.ओ.आर.आई. द्वारा दुर्लभ पांडुलिपियों का डिजिटलिकरण

  • 15 Apr 2017
  • 5 min read

संदर्भ
गौरतलब है कि संस्कृत और इससे संबद्ध भाषाओं जैसे-पालि और प्राकृत में लिखी गई मूल्यवान पाण्डुलिपियों को शीघ्र ही भावी पीढ़ी के लिये संरक्षित किया जाएगा| भंडारकर ओरिएंटल शोध संस्थान (Bhandarkar Oriental Research Institute - BORI) द्वारा इस संबंध में एक ई-पुस्तकालय शुरू किया जा रहा है, जिसके माध्यम से भारतीय विद्या की इस बहुमूल्य निधि के डिजिटलिकृत प्रारूप की शुरुआत की जा रही है|

संस्थान का परिचय

  • इस संस्थान का नाम प्रसिद्ध भारतीय विद्वान रामकृष्ण गोपाल भंडारकर के नाम पर रखा गया है| इसकी स्थापना वर्ष 1917 में हुई थी और यह संस्थान शहर की कीमती ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक धरोहर को सँजोए रखने के कारण अत्यंत महत्त्वपूर्ण संस्थान है|
  • उल्लेखनीय है कि बी.ओ.आर.आई. द्वारा “वाल्स हाउस” (walls house ) को भी सम्मानित किया जा चुका है| “वाल्स हाउस” दक्षिण एशिया की दुर्लभ पाण्डुलिपियों के सबसे बड़े और बहुमूल्य समूहों में से एक है|

पाण्डुलिपियों का डिजिटलीकरण

  • ध्यातव्य है कि इस कार्य के लिये इस संस्थान द्वारा विशेष रूप से एक उच्च क्षमता वाले जर्मन स्कैनर जयूत्स्चेल (Zeutschel) को 15 लाख रूपए में ख़रीदा गया है| 
  • वस्तुतः इनके पुनर्संग्रहण की प्रक्रिया काफी श्रमसाध्य होगी, जिसके आगामी पाँच वर्षों तक जारी रहने की संभावना है|
  • हालाँकि इस स्कैनिंग प्रक्रिया के कारण पाण्डुलिपियों (जिनमें से कुछ पाण्डुलियाँ तो सहस्राब्दी पुरानी हैं) में कुछ महत्त्वपूर्ण परिवर्तन होने की भी संभावना है|
  • वर्तमान में, इस प्रक्रिया के अंतर्गत 12,000 दुर्लभ पाण्डुलिपियों और पुस्तकों को स्कैन किया जा रहा है|

पैन इंडिया पाण्डुलिपि संग्रहण परियोजना

  • सर्वप्रथम वर्ष 1860 की मध्यावधि में बम्बई सरकार ने एक पैन इण्डिया पाण्डुलिपि संग्रहण प्रोजेक्ट (pan-Indian manuscript collection project) की शुरुआत की थी, जिसके तहत प्रख्यात विद्वान जैसे आर.जी.भंडारकर और जर्मन विद्वान जोहान्न जॉर्ज बुह्लेर (Johann Georg Buhler) एवं लोरेन्ज फ्फ्रेंज़ किल्होर्न (Lorenz Franz Kielhorn) के द्वारा कई हज़ार पांडुलिपियों का संग्रहण किया गया| 
  • इस बहुमूल्य निधि का डिजिटलिकरण सर्वप्रथम मुंबई के एल्फिनस्टोन कॉलेज (Mumbai’s Elphinstone College) में किया गया था, जिसके पश्चात् इसे अच्छी संरक्षण सुविधाओं हेतु पुणे के दक्कन कॉलेज में स्थानांतरित कर दिया गया|

महाभारत का 19वाँ खंड

  • ध्यातव्य है कि वर्ष 1918 में पाण्डुलिपियों के सरकारी संग्रह को स्थायी तौर पर बी.ओ.आर.आई. में रखा गया था तथा बम्बई प्रान्त के तत्कालीन गवर्नर लार्ड विलिंगटन और इस संस्थान के प्रथम अध्यक्ष के द्वारा इसके स्थानांतरण को प्राधिकृत किया गया|
  • इस वृहद स्तरीय प्रकाशन में महाभारत के 19वें खंड को संस्करण भी शामिल किया गया था, जिसका संग्रहण तकरीबन 1,260 पाण्डुलिपियों की महत्त्वपूर्ण सामग्री से किया गया था|

वर्तमान की स्थिति

  • वर्ष 2003 में पाण्डुलिपियों के राष्ट्रीय मिशन (National Mission for Manuscripts -NAMAMI) के द्वारा बी.ओ.आर.आई. को देश में पाण्डुलिपियों के 32 स्रोतों एवं संरक्षण केन्द्रों में से एक माना गया है|
  • परंतु, वर्त्मान में पाण्डुलिपियों का डिजिटल संग्रह करने की यह पहल एक गंभीर वितीय संकट से जूझ रही है| हालाँकि इस दिशा में वर्ष 2011 से ही सूक्ष्म स्तर पर प्रयास आरंभ किये जा चुके हैं तथापि डिजिटलिकरण की प्रकिया में तेजी, इसके लिये संशोधित बजट परिव्यय को केंद्र से स्वीकृति मिलने के पश्चात् ही दृष्टिगत हो सकेगी|
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