दक्षिण एशिया के साथ सहयोग में बढ़ोतरी | 20 Feb 2021
चर्चा में क्यों?
हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सुझाव दिया कि भारत समेत दक्षिण एशिया के तमाम देशों को डॉक्टरों और नर्सों के लिये एक विशेष वीज़ा योजना शुरू करनी चाहिये, ताकि स्वास्थ्यकर्मी आपात स्थिति में जल्द-से-जल्द अन्य देशों में यात्रा कर सकें।
- प्रधानमंत्री द्वारा यह सुझाव ‘कोविड-19 मैनेजमेंट: एक्सपीरियंस, गुड प्रैक्टिसेज़ एंड वे फॉरवर्ड’ विषय पर आयोजित कार्यशाला के दौरान दिया गया, जिसमें पाकिस्तान सहित भारत के सभी पड़ोसी देश शामिल थे।
- कार्यशाला में दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) के आठ सदस्यों और मॉरीशस तथा सेशल्स ने हिस्सा लिया।
- सार्क में निम्नलिखित सदस्य देश शामिल हैं: अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, भारत, मालदीव, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका।
प्रमुख बिंदु
कार्यशाला में भारत द्वारा प्रस्तावित उपाय:
- डॉक्टरों और नर्सों के लिये एक विशेष वीज़ा योजना बनाना।
- विभिन्न देशों के नागरिक उड्डयन मंत्रालयों को चिकित्सा आकस्मिकताओं के लिये एक क्षेत्रीय वायु एम्बुलेंस समझौते पर विचार करना चाहिये।
- कोरोना वायरस के टीकों की प्रभावशीलता के बारे में आँकड़ों के एकत्रीकरण, संकलन और अध्ययन के लिये एक क्षेत्रीय मंच बनाया जाना चाहिये।
- भविष्य में महामारियों को रोकने के लिये प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देते हुए एक क्षेत्रीय नेटवर्क का निर्माण करना।
- सफल सार्वजनिक स्वास्थ्य नीतियों और योजनाओं को साझा करना।
- भारत की आयुष्मान भारत और जन आरोग्य योजना इस लिहाज़ से उपयोगी केस-स्टडी हो सकती हैं।
अन्य बिंदु
- पाकिस्तान जिसने भारत से अभी तक वैक्सीन की मांग नहीं की है, को छोड़कर इस कार्यशाला में हिस्सा लेने वाले सभी देशों ने महामारी के बीच वैक्सीन, दवाओं और उपकरणों की आपूर्ति के लिये भारत को धन्यवाद दिया।
- दक्षिण एशिया उन पहले क्षेत्रों में से एक है, जिन्होंने कोरोना वायरस को एक खतरे के रूप में मान्यता दी है और उससे लड़ने के लिये प्रतिबद्धता जाहिर की है।
- हाल ही में दक्षिण एशियाई देशों ने एक ‘कोविड-19 आपातकालीन प्रतिक्रिया कोष’ स्थापित किया है।
- यह क्षेत्र कई सामान्य चुनौतियों जैसे- जलवायु परिवर्तन, प्राकृतिक आपदा, गरीबी, अशिक्षा और सामाजिक तथा लैंगिक असंतुलन आदि साझा करता है और साथ ही दक्षिण एशिया के विभिन्न देशों के बीच सांस्कृतिक और पारंपरिक जुड़ाव भी है।
महत्त्व
- इस कार्यशाला के दौरान पाकिस्तान सहित सभी सार्क सदस्यों की भागीदारी ने दक्षिण एशियाई देशों के बीच मौजूद विभिन्न मुद्दों को हल करने और दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार क्षेत्र (SAFTA) जैसे क्षेत्रीय विकास सहयोग पहल को फिर से शुरू करने का अवसर प्रदान किया है।
सार्क से संबंधित मुद्दे
- सर्वसम्मति का अभाव
- सार्क सदस्य देशों द्वारा सर्वसम्मति से निर्णय लेना अभी भी काफी चुनौतीपूर्ण विषय है। उदाहरण के लिये वर्ष 2014 में काठमांडू में आयोजित 18वें सार्क सम्मेलन के दौरान हस्ताक्षरित सार्क मोटर वाहन समझौता (MVA) पाकिस्तान की अस्वीकृति के कारण प्रभावी नहीं हो सका था।
- देशों के बीच संघर्ष
- कई छोटे देशों और बाहरी अभिकर्त्ताओं का मानना है कि भारत-पाकिस्तान के बीच संघर्ष ने सार्क की स्थिति को कमज़ोर किया है।
- पाकिस्तान ने आतंकवाद को अपनी विदेश नीति के साधन के रूप में विकसित करने से इस क्षेत्र की सामान्य गतिविधियों को भी मुश्किल बना दिया है। यही कारण है कि भारत ने उरी आतंकी हमले के बाद वर्ष 2016 में पाकिस्तान में आयोजित होने वाले शिखर सम्मेलन से स्वयं को अलग कर लिया था।
- इसके अलावा डूरंड रेखा को लेकर पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच मौजूद विवाद भी सार्क की मौजूदा स्थिति को प्रभावित कर रहा है।
- भारत का वर्चस्व
- सार्क के अन्य देशों की तुलना में भारत की आर्थिक स्थिति के परिणामस्वरूप प्रायः कई आलोचक यह मानते रहे हैं कि भारत इस संगठन में एक रणनीतिक साझेदार के बजाय एक बड़े भाई की भूमिका निभा रहा है।
आगे की राह
- भारत को दक्षिण एशियाई देशों के साथ अपने सहयोग में वृद्धि करनी चाहिये, उदाहरण के लिये हाल ही में भारत ने सार्क ‘कोविड-19 आपातकालीन प्रतिक्रिया कोष’ में 10 मिलियन डॉलर का योगदान दिया और सार्क क्षेत्र में विभिन्न देशों को वैक्सीन की आपूर्ति की है।
- सार्क के सदस्य देशों के बीच विश्वास निर्माण उपायों (CDM) को बढ़ावा देकर संगठन का पुनरुद्धार करना, भारत की ‘नेबरहुड फर्स्ट’ नीति के लिये काफी महत्त्वपूर्ण हो सकता है, साथ ही ये उपाय ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ (BRI) के माध्यम से चीन द्वारा किये जा रहे क्षेत्रीय रणनीतिक अतिक्रमण की चुनौती से निपटने में भी सहायता करेंगे।