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आंतरिक सुरक्षा

असम का बोडो समुदाय

  • 19 Feb 2020
  • 7 min read

प्रीलिम्स के लिये:

बोडो समुदाय, बोडो समझौता

मेन्स के लिये:

बोडो समझौते से संबंधित मुद्दे, असम में व्याप्त चुनौतियाँ, प्रभाव एवं समाधान, असम में व्याप्त संघर्ष से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में बोडो क्षेत्रीय परिषद् (Bodo Territorial Council- BTC) ने 27 जनवरी, 2020 को हुए बोडो समझौते का विरोध किया है।

  • साथ ही समझौते में निहित पहाड़ी क्षेत्र के बोडो समुदाय को जनजातीय दर्जा दिये जाने के प्रावधान का असम के कार्बी समुदाय ने भी विरोध किया है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • भारत के पूर्वोत्तर राज्य असम में दशकों से चले आ रहे आतंरिक संघर्ष पर विराम लगाने के लिये 27 जनवरी, 2020 को केंद्रीय गृहमंत्री की उपस्थिति में राजधानी दिल्ली में भारत सरकार, असम राज्य सरकार एवं बोडो समुदाय के बीच एक महत्त्वपूर्ण त्रिपक्षीय समझौता हुआ।
  • विभिन्न गैर बोडो समुदायों ने हाल ही में हुए बोडो समझौते का विरोध किया है तथा इस समझौते को राजनीति से प्रेरित एवं अहितकर बताया है।

बोडो समझौते के विरोध के कारण

  • बोडो समझौते को मानने से इनकार करते हुए BTC चीफ ने तर्क दिया है कि यह समझौता केवल BTC का नाम परिवर्तित कर बोडोलैंड प्रादेशिक क्षेत्र (Bodoland Territorial Region- BTR) करता है।
  • समझौते के संदर्भ में कहा गया कि नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोरोलैंड (National Democratic Front of Boroland- NDFB) एवं ऑल बोडो स्टूडेंट्स यूनियन (All Bodo Students Union- ABSU) ने अपनी राजनीतिक महत्त्वाकांक्षा के चलते यह समझौता किया है।
  • इस समझौते के विपक्ष में तर्क देते हुए कहा गया है कि यह समझौता नाम में बदलाव के अतिरिक्त और कोई लाभ प्रदान नहीं करता है। इसलिये हम इस समझौते को स्वीकार नहीं कर सकते तथा BTR नाम का उपयोग भी नहीं करेंगे।
  • इसके अतिरिक्त गैर-बोडो समुदाय ने इस समझौते को अशांति कारक एवं एकतरफा समझौता बताया। उनका कहना है कि इस समझौते में बोडोलैंड में रहने वाले केवल बोडो समुदाय के लिये अधिकारों एवं नीतियों का प्रावधान किया गया है, इसमें गैर बोडो समुदायों के लिये कोई प्रावधान नहीं है जिससे गैर-बोडो समुदायों के अधिकारों का हनन होगा।

प्रभाव:

  • इससे बोडो समुदाय एवं गैर-बोडो समुदायों के बीच संघर्ष में वृद्धि हो सकती है जिससे बोडोलैंड क्षेत्र में अस्थिरता उत्पन्न होगी तथा दोनों के हित प्रभावित हो सकते हैं।
  • हालिया बोडो समझौते से जहाँ समस्या खत्म होती नज़र आ रही थी, इन संघर्षों के कारण यह समस्या यथावत बनी रह सकती है।
  • आपसी संघर्षों के कारण क्षेत्रीय आर्थिक हित प्रभावित होंगे तथा विकास की प्रक्रिया में बाधा आएगी।

समाधान:

  • बोडोलैंड क्षेत्र में निवास करने वाले सभी समुदायों को विश्वास में लेना चाहिये तथा उन सभी के हितों को ध्यान में रखकर नीतियों का निर्माण एवं क्रियान्वयन किया जाना चाहिये।
  • आपसी संघर्ष के निवारण एवं क्षेत्रीय विकास के लिये राजनीतिक हितों से ऊपर उठकर कार्य किया जाना चाहिये।
  • किसी भी प्रकार के समझौते में सभी हितधारकों को शामिल कर व्यापक विचार-विमर्श के माध्यम से और सभी पक्षों को ध्यान में रखते हुए इस समस्या के निवारण का प्रयास किया जाना चाहिये।

पहाड़ी बोडो समुदाय को ST का दर्जा दिये जाने के विरोध का कारण

  • असम के पहाड़ी क्षेत्रों में निवास करने वाले कार्बी समुदाय ने बोडो समझौते के तहत पहाड़ी बोडो समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिये जाने का विरोध किया है।
  • कार्बी समुदाय का मानना है कि पहाड़ी बोडो समुदाय को जनजातीय दर्जा दिये जाने से बोडो समुदाय के साथ पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले कार्बियों की पहचान का संकट उत्पन्न हो जाएगा।
  • ध्यातव्य है कि असम के मैदानी क्षेत्र में 14 और पहाड़ी क्षेत्र में 15 जनजाति समुदाय रहते हैं तथा असम में 16 अनुसूचित जाति समुदाय भी हैं।
  • कार्बी समुदाय का कहना है कि बोडो समुदाय की प्राथमिक मांग अलग राज्य की थी अतः उनको जनजातीय दर्जा दिये जाने का कोई औचित्य नहीं है।

प्रभाव:

  • यह विरोध असम के पहाड़ी क्षेत्रों में कार्बी-बोडो समुदायों के बीच नृजातीय संघर्ष का कारण बन सकता है।
  • इससे पृथक राज्य की मांग पुनः उठ सकती है जो क्षेत्रीय संप्रभुता के लिये एक बड़ा खतरा होगा।

समाधान:

  • नृजातीय संघर्ष को कम करने के लिये कार्बी एवं बोडो समुदायों के हितों को ध्यान में रखकर नीतियाँ बनाई जानी चाहिये।
  • बोडो समुदाय को जनजातीय दर्जा दिये जाने से संबंधित कार्बी समुदाय की चिंताओं का निराकरण किया जाना चाहिये ताकि दोनों समुदायों की पहचान एवं हित प्रभावित न हों।

आगे की राह

  • असम में व्याप्त विभिन्न प्रकार की क्षेत्रीय, नृजातीय, भाषायी चुनौतियों से निपटने के लिये राज्य एवं केंद्र दोनों स्तर पर व्यापक प्रयास किये जाने की आवश्यकता है।
  • उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों में उनकी भाषा एवं संस्कृति को नुकसान पहुँचाए बिना विकासात्मक गतिविधियों के माध्यम से इन क्षेत्रों में व्याप्त संघर्ष को कम करने का प्रयास करना चाहिये।
  • इन क्षेत्रों में निवास करने वाले लोगों को मुख्यधारा में लाया जाना चाहिये तथा राष्ट्र के विकास से संबंधित मुद्दों पर इनकी भागीदारी सुनिश्चित की जानी चाहिये।

स्रोत: द हिंदू

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