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ब्लैक कार्बन का ग्लेशियरों पर प्रभाव

  • 07 Jun 2021
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

ब्लैक कार्बन, ग्लेशियर, हिमालय, काराकोरम,  हिंदूकुश

मेन्स के लिये:

ब्लैक कार्बन और इससे ग्लेशियरों पर पड़ने वाले प्रभाव

चर्चा में क्यों?

"हिमालय के ग्लेशियर: जलवायु परिवर्तन, ब्लैक कार्बन और क्षेत्रीय लचीलापन" शीर्षक वाली एक रिपोर्ट में कहा गया है कि ये ग्लेशियर ‘वैश्विक औसत बर्फ द्रव्यमान’ की तुलना में तेज़ी से पिघल रहे हैं। हालाँकि ब्लैक कार्बन से संबंधित मज़बूत नीति ग्लेशियरों के पिघलने की प्रक्रिया को तेज़ी से रोक सकती है।

  • यह अनुसंधान रिपोर्ट विश्व बैंक द्वारा जारी की गई है और इसमें हिमालय, काराकोरम और हिंदूकुश (HKHK) पर्वत शृंखलाएँ शामिल हैं।

ब्लैक कार्बन (BC):

  • ब्लैक कार्बन एक तरह का एयरोसोल है। 
    • एक एयरोसोल हवा में सूक्ष्म ठोस कणों या तरल बूँदों का निलंबन होता है।
  • एयरोसोल (जैसे ब्राउन कार्बन, सल्फेट्स) में ब्लैक कार्बन को जलवायु परिवर्तन के लिये दूसरे सबसे महत्त्वपूर्ण मानवजनित एजेंट और वायु प्रदूषण के कारण होने वाले प्रतिकूल प्रभावों को समझने हेतु प्राथमिक एजेंट के रूप में मान्यता दी गई है।
  • यह गैस और डीज़ल इंजन, कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों तथा जीवाश्म ईंधन को जलाने वाले अन्य स्रोतों से उत्सर्जित होता है। इसमें पार्टिकुलेट मैटर या PM का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा होता है, जो एक वायु प्रदूषक है।

HKHK पर्वत क्षेत्र:

  • HKHK क्षेत्र आठ देशों में फैला है; अफगानिस्तान, पाकिस्तान, भारत, नेपाल, चीन, भूटान, बांग्लादेश और म्याँमार और सहित इस क्षेत्र में  एवरेस्ट और K2 जैसे दुनिया के कुछ सबसे ऊँची पर्वत श्रेणियाँ भी शमिल हैं।
  • HKHK पर्वतीय क्षेत्र के ग्लेशियर गंगा, यांग्त्ज़ी, इरावदी और मेकांग सहित नदी प्रणालियों से संबंधित हैं।
    • ग्लेशियरों से निकलने वाला पानी कृषि का पोषण करता है, जिस पर लगभग 2 अरब लोग निर्भर हैं।
  • HKHK क्षेत्र को चीन के तिआनशान पर्वत के साथ तीसरे ध्रुव के रूप में भी जाना जाता है, यहाँ उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव के बाद सबसे अधिक बर्फ है।  

प्रमुख बिंदु:

  • BC एक अल्पकालिक प्रदूषक है जो कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) के बाद ग्रह को गर्म करने में दूसरा सबसे बड़ा योगदानकर्त्ता है।
    • अन्य ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के विपरीत BC जल्दी से धुल जाता है और अगर इसका उत्सर्जन बंद हो जाता है तो इसे वातावरण से समाप्त किया जा सकता है।
    • ऐतिहासिक कार्बन उत्सर्जन के विपरीत यह अधिक स्थानीय प्रभाव वाला एक स्थानीय स्रोत भी है।

हिमालयी क्षेत्र में ब्लैक कार्बन का स्रोत:

  • कुल ब्लैक कार्बन में उद्योग (मुख्य रूप से ईंट भट्टे) और ठोस ईंधन जलने से क्षेत्रीय मानवजनित BC के उत्सर्जन का  45-66% हिस्सा शामिल होता है, इसके बाद ऑन-रोड डीज़ल ईंधन (7-18%) और खुले में ईंधन जलाने से (3% से कम) ब्लैक कार्बन का उत्सर्जन होता है।

BC भंडारण का प्रभाव:

  • यह ग्लेशियर के पिघलने की गति को दो तरह से तेज़ करने का कार्य करता है:
    • सूर्य के प्रकाश की सतह परावर्तन को कम करके।
    • हवा का तापमान बढ़ाकर।

हिमाच्छादन की दर को कम करके:

  • HKHK ग्लेशियरों के पीछे खिसकने की दर पश्चिम में 0.3 मीटर प्रतिवर्ष और पूर्व में 1.0 मीटर प्रतिवर्ष होने का अनुमान है।
  • BC को कम करने के लिये मौजूदा नीतियों का पूर्ण कार्यान्वयन इसमें 23% की कमी कर सकता है लेकिन नई नीतियों को लागू करने और देशों के बीच क्षेत्रीय सहयोग के माध्यम से उन्हें शामिल करने से अधिक लाभ प्राप्त हो सकता है।
    • सतत् हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र हेतु राष्ट्रीय मिशन (NMSHE) भारत में अपनाई गई ऐसी ही एक नीति है। यह जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPCC) के तहत आठ मिशनों में से एक है।
  • BC के जमाव को वर्तमान में व्यवहार्य नीतियों के माध्यम से मौजूदा स्तरों से अतिरिक्त 50% तक कम किया जा सकता है।

ग्लेशियर पिघलने के कारण:

  • ग्लेशियर के पिघलने से अचानक बाढ़, भूस्खलन, मिट्टी का कटाव और हिमनद झील से उत्पन्न बाढ़ (GLOF) संबंधी समस्याएँ सामने आती हैं।
  • अल्पावधि में पिघले हुए पानी की अधिक मात्रा नीचे की ओर घटते भूजल की जगह ले सकती है। लेकिन लंबे समय में पानी की उपलब्धता कम होने से पानी की किल्लत बढ़ जाएगी।

उठाए गए कदम:

  • हिमालय पर रसोई चूल्हे, डीज़ल इंजन और खुले में जलने से ब्लैक कार्बन उत्सर्जन को कम करने का सबसे बड़ा प्रभाव होगा और यह विकिरण बल को काफी कम कर सकता है तथा हिमालयी ग्लेशियर तंत्र के एक बड़े हिस्से को बनाए रखने में मदद कर सकता है।
    • विकिरण बल वैश्विक ऊर्जा संतुलन को प्रभावित करने और जलवायु परिवर्तन में योगदान करने के लिये एक मज़बूर एजेंट (जैसे- ग्रीनहाउस गैसों, एयरोसोल, क्लाउड और सतही एल्बीदडो) में परिवर्तन के परिणामस्वरूप ऊर्जा संतुलन में परिवर्तन का एक उपाय है।

क्षेत्रीय सरकारों के प्रयास:

  • दक्षता के लिये बेसिन आधारित विनियमन और मूल्य संकेतों (एक विशेष कार्रवाई) के उपयोग पर ज़ोर देते हुए जल प्रबंधन नीतियों की समीक्षा करना।
  • जल प्रवाह और इसकी उपलब्धता में परिवर्तन को प्रतिबिंबित करने के लिये जलविद्युत की सावधानीपूर्वक योजना तैयार करना।
  • प्रमाणित प्रौद्योगिकियों के माध्यम से ईंट भट्ठों की दक्षता बढ़ाना।
  • इस क्षेत्र से संबंधित अधिक-से-अधिक ज्ञान का साझाकरण भी होना चाहिये।

स्रोत-द हिंदू

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