भारतीय इतिहास
स्वामी दयानंद सरस्वती जयंती
- 15 Feb 2025
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प्रारंभिक परीक्षा के लिये:महर्षि दयानंद सरस्वती जयंती, आर्य समाज मुख्य परीक्षा के लिये :महर्षि दयानंद सरस्वती और उनका योगदान, महत्त्वपूर्ण व्यक्तित्व, आर्य समाज के मार्गदर्शक सिद्धांत। |
स्रोत: पी.आई.बी
प्रधानमंत्री ने 12 फरवरी 2025 को स्वामी दयानंद सरस्वती (1824-1883) की 201 वीं जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। वे एक महान विचारक, प्रखर राष्ट्रवादी और आर्य समाज के संस्थापक थे।
महर्षि दयानंद सरस्वती कौन थे?
- परिचय:
- महर्षि दयानंद सरस्वती, 19 वीं सदी के एक प्रमुख समाज सुधारक, दार्शनिक और धार्मिक नेता थे।
- जन्म एवं प्रारंभिक जीवन:
- उनका जन्म 12 फरवरी, 1824 को गुजरात के टंकारा में एक पारंपरिक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनका नाम मूल शंकर तिवारी था। उनके माता-पिता यशोदाबाई और लालजी तिवारी समर्पित हिंदू थे।
- छोटी उम्र में ही उनमें आध्यात्मिक ज्ञान के प्रति गहरी रुचि विकसित हो गई और उन्होंने मूर्ति पूजा, अनुष्ठानों और अंधविश्वासों पर प्रश्न उठाए।
- 19 वर्ष की उम्र में सांसारिक जीवन त्यागकर, वे सत्य की खोज में लगभग 15 वर्षों (1845-1860) तक एक तपस्वी के रूप में भ्रमण करते रहे।
- उन्होंने मथुरा में स्वामी विरजानंद से शिक्षा प्राप्त की, जिन्होंने उन्हें हिंदू धर्म से भ्रष्ट प्रथाओं को समाप्त करने तथा वेदों के सच्चे अर्थ को पुनर्स्थापित करने के लिये काम करने का आग्रह किया।
- दर्शन और सामाजिक सुधार:
- उन्होंने मूर्ति पूजा, अस्पृश्यता, जाति-आधारित भेदभाव, बहुविवा, बाल विवाह और लैंगिक असमानता का विरोध किया।
- वह एक वर्गविहीन और जातिविहीन समाज में विश्वास करते थे जहाँ जाति जन्म के बजाय योग्यता पर आधारित होती थी।
- उन्होंने महिला शिक्षा, विधवा पुनर्विवाह, दलित वर्गों के उत्थान, पुनः धर्म परिवर्तन के लिये शुद्धि आंदोलन तथा सती प्रथा और बाल विवाह उन्मूलन की पुरज़ोर वकालत की।
- उन्होंने "वेदों की ओर लौटो" पर ज़ोर देते हुए तर्क दिया कि सच्चा हिंदू धर्म वेदों में निहित है, जो तर्कसंगतता, समानता और सामाजिक न्याय को कायम रखते हैं।
- उनके विचार उनकी मौलिक कृति सत्यार्थ प्रकाश में संकलित हैं, जिसमें उन्होंने भ्रूण हत्या और दहेज जैसी सामाजिक बुराइयों की आलोचना की तथा वैदिक ज्ञान की वकालत की।
- शैक्षिक योगदान:
- उन्होंने ब्रिटिश औपनिवेशिक शिक्षा प्रणाली का विरोध करते हुए आधुनिक, वैज्ञानिक तथा वैदिक शिक्षा की वकालत की।
- वर्ष 1886 में इन्होने गुरुकुलों, बालिका गुरुकुलों और दयानंद एंग्लो-वैदिक (DAV) स्कूलों और कॉलेजों की स्थापना को प्रेरित किया, जिसमें महात्मा हंसराज के नेतृत्व में लाहौर में पहला DAV स्कूल स्थापित किया गया।
- राष्ट्रवादी आंदोलन में भूमिका:
- वह वर्ष 1876 में "स्वराज" का आह्वान करने वाले पहले व्यक्ति थे, जिसका प्रभाव बाद के नेताओं जैसे बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय और महात्मा गांधी पर पड़ा।
- उन्होंने स्वदेशी (आर्थिक आत्मनिर्भरता) अपनाने एवं गौरक्षा के साथ हिन्दी को राष्ट्र भाषा के रूप में बढ़ावा दिया।
- विरासत:
- स्वामी दयानंद सरस्वती को सामाजिक-धार्मिक सुधार के प्रयासों के कारण समाज के रूढ़िवादी वर्गों से प्रतिरोध का सामना करना पड़ा। हालाँकि, उन्होंने आर्य समाज और DAV स्कूलों जैसी संस्थाओं के माध्यम से एक स्थायी विरासत छोड़ी, जिसका समाज पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा।
आर्य समाज क्या है?
- परिचय:
- आर्य समाज (कुलीनों का समाज) एक हिंदू सुधार आंदोलन है जिसके तहत वेदों को ज्ञान एवं सत्य के अंतिम स्रोत के रूप में बढ़ावा दिया गया।
- इसकी स्थापना स्वामी दयानंद सरस्वती ने वर्ष 1875 में की थी।
- मूल मान्यता और सिद्धांत:
- वेदों की प्रधानता पर ज़ोर दिया गया है तथा मूर्ति पूजा, पुरोहिती अनुष्ठान, पशु बलि, सामाजिक कुरीतियों और अंधविश्वासों को अस्वीकार किया गया।
- कर्म (कर्मों का नियम), संसार (पुनर्जन्म का चक्र) और गाय की पवित्रता पर बल दिया गया।
- वैदिक अग्नि अनुष्ठान (हवन/यज्ञ) और संस्कारों को बढ़ावा दिया गया।
- सामाजिक सुधार और योगदान:
- महिला शिक्षा, अंतर्जातीय विवाह और विधवा पुनर्विवाह का समर्थन किया।
- स्कूल, अनाथालय और विधवा आश्रम स्थापित किये गये।
- अकाल राहत और चिकित्सा सहायता में महत्त्वपूर्ण निभाई।
- अन्य धर्मों को अपनाने वाले लोगों को पुनः धर्मांतरित करने के लिये शुद्धि आंदोलन का नेतृत्व किया।
प्रश्न. 19वीं शताब्दी के प्रमुख सामाजिक और धार्मिक सुधार आंदोलन कौन-से थे? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सी घटना सबसे पहले हुई? (2018) (a) स्वामी दयानंद ने आर्य समाज की स्थापना की। उत्तर: (b) |