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जैव विविधता और पर्यावरण

PEDA द्वारा पराली का प्रबंधन

  • 11 Sep 2020
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये: 

बायोमास ऊर्जा, बायो-सीएनजी, बायो-एथेनॉल 

मेन्स के लिये: 

पराली अपशिष्ट प्रबंधन के विकल्प 

चर्चा में क्यों?

पराली जलाने की समस्या पंजाब सरकार को लंबे समय से परेशान कर रही है। पंजाब सरकार की ‘पंजाब एनर्जी डवलपमेंट एजेंसी’ (PEDA) विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के साथ मिलकर पराली उपयोग के लिये विकल्पों की तलाश कर इस समस्या को हल करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। 

प्रमुख बिंदु:

बायोमास बिजली संयंत्रों की स्थापना 

  • विगत तीन दशकों से नवीकरणीय ऊर्जा के संवर्द्धन और विकास की दिशा में राज्य नोडल एजेंसी के रूप में PEDA ने 11 बायोमास बिजली संयंत्र स्थापित किये हैं, जिनके माध्यम से  97.50 मेगावाट (MW) बिजली उत्पन्न की जा रही है।
  • इन संयंत्रों में 8.80 लाख मीट्रिक टन धान की पराली (पंजाब में उत्पन्न कुल 20 मिलियन टन धान की पराली का 5 प्रतिशत से भी कम) का उपयोग वार्षिक रूप से बिजली उत्पन्न करने में किया जाता है। इनमें से अधिकांश संयंत्र 4-18 मेगावाट के हैं, जो वार्षिक रूप से 36,000 से 1,62,000 मीट्रिक टन अपशिष्ट का उपयोग कर रहे हैं।
  • 14 मेगावाट क्षमता वाली दो बायोमास विद्युत परियोजनाएँ जून 2021 से क्रियान्वित किये जाने की प्रक्रिया में है। इन्हें प्रतिवर्ष 1.26 लाख मीट्रिक टन धान की पराली की आवश्यकता होगी। 
  • अपेक्षाकृत कम कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन और कोयले जैसे जीवाश्म ईंधन को प्रतिस्थापित करने के कारण ये परियोजनाएँ पर्यावरण के अनुकूल हैं।

बायोमास बिजली संयत्रों  के अलावा अन्य प्रयास

  • बायोमास परियोजनाओं के अलावा, जैव-सीएनजी (BIO-CNG) की आठ परियोजनाएँ राज्य में क्रियान्वित किये जाने की प्रक्रिया में हैं। इन परियोजनाओं में से अधिकांश वर्ष 2021-22 में शुरू की जाएंगी। इनको वार्षिक रूप से लगभग 3 लाख मीट्रिक टन धान की पराली की आवश्यकता होगी।
  • स्टार्ट-अप की अवधारणा के तहत पंजाब में धान की पराली का उपयोग करने की बहुत संभावनाएँ है। PEDA भारत की सबसे बड़ी सीएनजी परियोजना स्थापित करने जा रही है, जो प्रतिदिन 8,000 मीटर क्यूब बायोगैस (33.23 टन जैव-सीएनजी के बराबर) का उत्पादन करेगी। संगरूर ज़िले  की लेहरगागा तहसील में परियोजना का काम चल रहा है। मार्च 2021 तक इस परियोजना के शुरू होने के पश्चात् परियोजना के लिये प्रति वर्ष 1.10 लाख मीट्रिक टन धान की पराली की आवश्यकता होगी।
  • बठिंडा के तलवंडी साबो में स्थित 100 KL (किलो लीटर) की एक बायो-एथेनॉल परियोजना के लिये वार्षिक रूप से 2 लाख मीट्रिक टन धान की पराली की आवश्यकता होगी। वर्तमान में इंस्टीट्यूट ऑफ केमिकल टेक्नोलॉजी (ICT), मुंबई के साथ तकनीकी मुद्दों की वजह से HPCL द्वारा इसे रोका गया है।
  • इन सभी परियोजनाओं के शुरू होने के पश्चात् पंजाब 1.5 मिलियन टन पराली (कुल पराली उत्पादन का लगभग 7 प्रतिशत) का उपयोग करने में सक्षम होगा। डीज़ल और पेट्रोल के सम्मिश्रण के पश्चात् वाहनों में इथेनॉल का उपयोग किया जा सकता है।
  • प्लाई और पेंट उद्योग में भी पराली के उपयोग की बहुत संभावनाएँ है। पराली को जलाने की बजाय उद्योगों में बेचने से किसानों को बहुत लाभ हो सकता है। मृदा की उपजाऊ परत को संरक्षित करने और पंजाब के ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षित बेरोज़गार युवाओं के लिये रोज़गार के अवसर सृजित करना आदि इसके अन्य लाभ हैं।

बायोमास ऊर्जा

  • बायोमास ऊर्जा जीवित या मृतजीवों/वनस्पतियों से उत्पन्न ऊर्जा है। ऊर्जा के लिये  उपयोग की जाने वाली सबसे आम बायोमास सामग्री पौधे हैं। 
  • बायोमास को जलाकर या बिजली में परिवर्तित कर ऊष्मा/ऊर्जा के रूप में उपयोग किया जा सकता है।

जैव-सीएनजी 

  • जैव-सीएनजी में लगभग 92-98% मीथेन और केवल 2-8% कार्बन डाइऑक्साइड होती है। जैव-सीएनजी का कैलोरी मान बायोगैस की तुलना में 167% अधिक है। 
  • कम उत्सर्जन के कारण अधिक पर्यावरण अनुकूल होने से ऑटोमोबाइल और बिजली उत्पादन के लिये सीएनजी एक आदर्श ईंधन है। 
  • देश में बायोमास की प्रचुरता को देखते हुए आगामी वर्षों में ऑटोमोटिव, औद्योगिक और वाणिज्यिक उपयोगों में जैव-सीएनजी को बायोगैस से प्रतिस्थापित किया जा सकता  है। 

बायो-एथेनॉल

  • यह बायोमास से उत्पन्न इथेनॉल है जिसे सामान्यतः बायो-एथेनॉल के रूप में जाना जाता है। बायो-एथेनॉल रासायनिक रूप से व्युत्पन्न एथेनॉल के समान है।
  • बायो-एथेनॉल के सामान्य फीडस्टॉक्स में मक्का , स्विचग्रास, गन्ना, शैवाल और अन्य बायोमास शामिल हैं।
  • इसे नवीकरणीय और पर्यावरण अनुकूल ईंधन के  रूप में परिवहन में उपयोग किया जा सकता है।

आगे की राह:

  • इन संयंत्रों में पराली का वर्तमान उपयोग पराली के कुल उत्पादन की तुलना में बहुत कम है। इसमें वृद्धि करने के लिये राज्य को पराली आधारित उद्योग स्थापित करने की आवश्यकता है। इसके लिये बड़े व्यापारियों, NRIs, युवा इंजीनियरों और विज्ञान प्रौद्योगिकी में स्नातकों को स्टार्ट-अप्स की स्थापना के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये। इसके लिये सरकार ऋण और बाज़ार प्रदान कर मदद कर सकती है। 
  • पंजाब में लगभग 13,000 गाँव और लगभग 150 ब्लॉक हैं। किसी ब्लॉक के अपशिष्ट प्रबंधन के लिये ब्लॉक-स्तर पर पराली आधारित परियोजनाएँ स्थापित की जा सकती हैं। 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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