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जीभ कैंसर की पहचान करने वाला जैव-सूचक

  • 26 Aug 2017
  • 3 min read

संदर्भ 

मुंबई में टाटा मेमोरियल सेंटर के शोधकर्त्ताओं ने एक ऐसे जैव-सूचक की पहचान की है जो डॉक्टरों को यह तय करने में सहायता करेगा कि प्रारंभिक चरण वाले जीभ के कैंसर के मरीजों के मुख से 20 से 30 लसीका-पर्व को हटाने के लिये सर्जरी करना होगा या नहीं।

प्रमुख बिंदु

  • इस तरह का शोध 57 मरीजों पर किया गया था। इसमें पाया गया कि जीभ के कैंसर के प्रारंभिक चरण वाले 70% मरीजों  में ट्यूमर लसीका-पर्व तक नहीं फैलता है।
  • लेकिन एक विश्वसनीय जैव-सूचक के अभाव में, जो मरीजों में रोग पुनरावृत्ति को बताने में सक्षम है, डॉक्टरों को नियमित रूप से लसीका-पर्व और जीभ के प्रभावित हिस्से को हटाने के लिये सर्जरी करनी पड़ती है।
  • टाटा मेमोरियल सेंटर के डॉक्टरों के अनुसार यदि जीभ के कैंसर का पता शुरुआती चरणों में लग जाए तो लगभग 80% मरीजों को बचाया जा सकता है। 
  • लेकिन एक बार कैंसर लसीका-पर्व तक फैल गया तो, तो ऐसे मरीज़ के जीवित रहने की दर 40% तक कम हो जाती है।
  • वर्तमान में, जीभ में कैंसर फैला है या नहीं, उसे जानने का एक ही रास्ता है और वह है लसीका-पर्वों को काटकर हटाना और उनका अध्ययन करना। 

एमएमपी 10 प्रोटीन

  • एमएमपी 10 प्रोटीन (MMP10 protein) ही वह जैव-सूचक है, जो इस बात का पता लगाने में सहायता करता है। 
  • जिन मरीजों  में यह प्रोटीन अधिक पाया जाता हैं उनमें लसीका-पर्व तक कैंसर के फैलने की संभावना अधिक होती है। 
  • अतः जैव-सूचक डॉक्टरों को यह तय करने में मदद करेगा कि किस मरीज़ के लसीका-पर्व  को हटाने के लिये जटिल सर्जरी करने की आवश्यकता पड़ेगी और किसे नहीं। 
  • यद्यपि तंबाकू के सेवन से मुख का कैंसर होता है, लेकिन जीनोम के स्तर पर इन दोनों के संपर्क का कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं मिला है। 
  • इस अध्ययन में पहली बार तम्बाकू चबाने और जीभ कैंसर के बीच सीधा संबंध दिखाया गया है।
  • ये परिणाम ‘ओरल ऑनकोलॉजी’ में प्रकाशित हुए थे।
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