जैव विविधता और पर्यावरण
जैविक विविधता (संशोधन) विधेयक, 2021
- 18 Dec 2021
- 10 min read
प्रिलिम्स के लिये:जैविक विविधता (संशोधन) विधेयक, 2021, जैविक विविधता पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय, नागोया प्रोटोकॉल मेन्स के लिये:जैविक विविधता (संशोधन) विधेयक, 2021 की मुख्य विशेषताएँ और संबंधित चिंताएँ। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ‘जैविक विविधता (संशोधन) विधेयक, 2021’ को संसद में प्रस्तुत किया गया है।
- ये संशोधन राष्ट्रीय हितों से समझौता किये बिना कुछ प्रावधानों को अपराध से मुक्त करने और अनुसंधान, पेटेंट और वाणिज्यिक उपयोग सहित जैविक संसाधनों की शृंखला में अधिक विदेशी निवेश लाने का प्रयास करते हैं।
- हालाँकि, विपक्षी दलों ने विधेयक पर चिंता ज़ाहिर करते हुए इसे एक प्रवर समिति के पास भेजने का प्रस्ताव दिया है। उन्होंने विधेयक को संसद की स्थायी समिति के पास भेजने की मांग की है।
नोट
- किसी विशेष विधेयक की जाँच के लिये एक प्रवर समिति का गठन किया जाता है और इसकी सदस्यता एक सदन के संसद सदस्यों तक सीमित होती है। इसकी अध्यक्षता सत्तारूढ़ दल के सांसद करते हैं।
प्रमुख बिंदु
- उद्देश्य: यह विधेयक ‘जैविक विविधता अधिनियम, 2002’ में कुछ नियमों को शिथिल करता है।
- वर्ष 2002 के अधिनियम ने भारतीय चिकित्सा व्यवसायियों, बीज क्षेत्र, उद्योग और शोधकर्त्ताओं पर भारी ‘अनुपालन बोझ’ अधिरोपित किया और सहयोगी अनुसंधान तथा निवेश को कठिन बना दिया।
- अनुसंधान प्रक्रिया को सरल बनाएँ: संशोधन पेटेंटिंग को प्रोत्साहित करने के लिये भारतीय शोधकर्त्ताओं के लिये पेटेंट की प्रक्रिया को भी कारगर बनाते हैं।
- इसके लिये देशभर में क्षेत्रीय पेटेंट केंद्र खोले जाएंगे।
- भारतीय चिकित्सा प्रणाली को बढ़ावा देना: यह ‘भारतीय चिकित्सा प्रणाली’ को बढ़ावा देना चाहता है, और भारत में उपलब्ध जैविक संसाधनों का उपयोग करते हुए अनुसंधान की ट्रैकिंग, पेटेंट आवेदन प्रक्रिया, अनुसंधान परिणामों के हस्तांतरण की सुविधा प्रदान करता है।
- यह स्थानीय समुदायों को विशेष रूप से औषधीय मूल्य जैसे कि बीज के संसाधनों का उपयोग करने में सक्षम होने के लिये सशक्त बनाना चाहता है।
- यह विधेयक किसानों को औषधीय पौधों की खेती बढ़ाने के लिये प्रोत्साहित करता है।
- जैवविविधता पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय के उद्देश्यों से समझौता किये बिना इन उद्देश्यों को प्राप्त किया जाना है।
- कुछ प्रावधानों को अपराध से मुक्त करना: यह जैविक संसाधनों की शृंखला में कुछ प्रावधानों को अपराध से मुक्त करने का प्रयास करता है।
- इन परिवर्तनों को वर्ष 2012 में भारत के नागोया प्रोटोकॉल (सामान्य संसाधनों तक पहुँच और उनके उपयोग से होने वाले लाभों का उचित तथा न्यायसंगत साझाकरण) के अनुसमर्थन के अनुरूप लाया गया था।
- विदेशी निवेश की अनुमति: यह जैवविविधता में अनुसंधान में विदेशी निवेश की भी अनुमति देता है हालाँकि यह निवेश आवश्यक रूप से जैवविविधता अनुसंधान में शामिल भारतीय कंपनियों के माध्यम से करना होगा।
- विदेशी संस्थाओं के लिये राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण से अनुमोदन आवश्यक है।
- आयुष चिकित्सकों को छूट: विधेयक पंजीकृत आयुष चिकित्सकों और संहिताबद्ध पारंपरिक ज्ञान का उपयोग करने वाले लोगों को कुछ उद्देश्यों के लिये जैविक संसाधनों तक पहुँचने हेतु राज्य, जैवविविधता बोर्डों को पूर्व सूचना देने से छूट देने का प्रयास करता है।
- जैवविविधता अधिनियम, 2002: इसे संसद द्वारा अधिनियमित किया गया था, जिसके तहत निम्नलिखित हेतु प्रावधान किया गया था:
- जैवविविधता का संरक्षण,
- इसके घटकों का सतत् उपयोग
- जैविक संसाधनों और ज्ञान के उपयोग से होने वाले लाभों का उचित और न्यायसंगत बंटवारा।
- नागोया प्रोटोकॉल
- यह अनिवार्य है कि जैविक संसाधनों के उपयोग से प्राप्त लाभों को स्वदेशी और स्थानीय समुदायों के बीच निष्पक्ष और न्यायसंगत तरीके से साझा किया जाए।
- जब कोई भारतीय या विदेशी कंपनी या व्यक्ति औषधीय पौधों और संबंधित ज्ञान जैसे जैविक संसाधनों का उपयोग करता है, तो उसे राष्ट्रीय जैवविविधता बोर्ड (National Biodiversity Board) से पूर्व सहमति लेनी होती है।
- बोर्ड एक लाभ-साझाकरण शुल्क या रॉयल्टी लगा सकता है या शर्तें लगा सकता है ताकि कंपनी इन संसाधनों के व्यावसायिक उपयोग से होने वाले मौद्रिक लाभ को उन स्थानीय लोगों के साथ साझा करे जो क्षेत्र में जैवविविधता का संरक्षण कर रहे हैं।
विशेषज्ञों की चिंताएंँ:
- संरक्षण की तुलना में व्यापार को प्राथमिकता: यह जैविक संसाधनों के संरक्षण के अधिनियम के प्रमुख उद्देश्य की कीमत पर बौद्धिक संपदा और वाणिज्यिक व्यापार को प्राथमिकता देता है।
- बायो-पायरेसी का खतरा: आयुष प्रैक्टिशनर्स (AYUSH Practitioners) को छूट के लिए अब मंज़ूरी लेने की आवश्यकता नहीं है, इससे ‘बायो पायरेसी’ (Biopiracy) का मार्ग प्रशस्त होगा।
- बायोपायरेसी के व्यापार में स्वाभाविक रूप से होने वाली आनुवंशिक या जैव रासायनिक सामग्री का दोहन करने की प्रथा है।
- जैवविविधता प्रबंधन समितियों (BMCs) का हाशिये पर होना: प्रस्तावित संशोधन राज्य जैवविविधता बोर्डों को लाभ साझा करने की शर्तों को निर्धारित करने हेतु BMCs का प्रतिनिधित्व करने की अनुमति देते हैं।
- जैवविविधता अधिनियम 2002 के तहत, राष्ट्रीय और राज्य जैवविविधता बोर्डों को जैविक संसाधनों के उपयोग से संबंधित कोई भी निर्णय लेते समय जैवविविधता प्रबंधन समितियों (प्रत्येक स्थानीय निकाय द्वारा गठित) से परामर्श करना आवश्यक है।
- स्थानीय समुदाय को दरकिनार करना: विधेयक खेती वाले औषधीय पौधों को अधिनियम के दायरे से भी छूट देता है। हालांँकि यह पता लगाना व्यावहारिक रूप से असंभव है कि किन पौधों की खेती की जानी चाहिये और कौन-से पौधे जंगली हैं।
- यह प्रावधान बड़ी कंपनियों को अधिनियम के दायरे और बेनिफिट-शेयरिंग प्रावधानों के तहत पूर्व अनुमोदन की आवश्यकता से बचने या स्थानीय समुदायों के साथ लाभ साझा करने की अनुमति दे सकता है।
आगे की राह
- वन अधिकार अधिनियम (FRA) का प्रभावी कार्यान्वयन: सरकार को क्षेत्र में अपनी एजेंसियों और इन वनों पर निर्भर लोगों के बीच विश्वास बनाने का प्रयास करना चाहिये, उन्हें देश में हर किसी की तरह समान नागरिक माना जाना चाहिये।
- FRA की खामियों की पहचान पहले ही की जा चुकी है; बस ज़रूरत है इसमें संशोधन पर काम करने की।
- अंतर्राष्ट्रीय संधियों का एकीकरण: नागोया प्रोटोकॉल का कार्यान्वयन अलग-अलग काम नहीं कर सकता है और इस प्रकार अन्य अंतरराष्ट्रीय संधियों के अनुरूप होना चाहिये।
- इसलिये नागोया प्रोटोकॉल और खाद्य और कृषि के लिये पादप आनुवंशिक संसाधनों पर अंतर्राष्ट्रीय संधि (ITPGRFA) के बीच एकीकरण को एक दूसरे के पथ को पार करने वाले विधायी, प्रशासनिक और नीतिगत उपायों पर विचार करने की आवश्यकता है।
- पीपल्स बायोडायवर्सिटी रजिस्टर (PBR): PBR का उद्देश्य संसाधनों की स्थिति, उपयोग, इतिहास, चल रहे परिवर्तनों और जैवविविधता संसाधनों में बदलाव लाने वाली ताकतों और इन संसाधनों को कैसे प्रबंधित किया जाए, इस बारे में लोगों की धारणाओं के लोक ज्ञान का दस्तावेज़ीकरण करना चाहिये।
- PBR पारंपरिक ज्ञान पर किसानों या समुदायों के अधिकारों को संरक्षित करने के लिये उपयोगी हो सकते हैं जो वे एक विशेष किस्म पर धारण कर सकते हैं।