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जैव विविधता और पर्यावरण

जैव विविधता ढाँचा और आदिवासी समुदाय

  • 09 Dec 2022
  • 12 min read

प्रिलिम्स के लिये:

जैव विविधता पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन, आदिवासी, 2020 के बाद वैश्विक जैव विविधता फ्रेमवर्क, जैव विविधता पर अंतर्राष्ट्रीय स्वदेशी मंच

मेन्स के लिये:

आदिवासी और उनकी कठिनाइयाँ 2020 के बाद वैश्विक जैव विविधता फ्रेमवर्क, जैव विविधता पर अंतर्राष्ट्रीय स्वदेशी मंच

चर्चा में क्यों?

हाल ही में जैविक विविधता पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय (CBD) के पक्षकारों के 15वें सम्मेलन (COP-15) में आदिवासी लोगों का प्रतिनिधित्त्व करने वाले एक समूह ने ज़ोर देकर कहा कि वर्ष 2020 के बाद ग्लोबल बायोडायवर्सिटी फ्रेमवर्क (GBF) को आदिवासी लोगों और स्थानीय समुदायों (IPCL) के अधिकारों का सम्मान, संवर्द्धन और समर्थन करने पर काम करना चाहिये।

  • जैव विविधता पर अंतर्राष्ट्रीय आदिवासी मंच (IIFB) के सदस्यों ने भी आदिवासी समुदायों के अधिकारों के लिये बल दिया गया है।

आदिवासी लोगों द्वारा तनावग्रस्त प्रमुख क्षेत्र:

  • आदिवासी समुदाय, जो हमेशा जैव विविधता के प्रमुख संरक्षक रहे हैं, उनके अधिकारों को भी पहचानने और संरक्षित करने की आवश्यकता है।
  • GBF को आदिवासी समुदायों के लिये, "मानवाधिकार-आधारित दृष्टिकोण अपनाते हुए, विशेष रूप से आदिवासियों के सामूहिक अधिकारों, लैंगिक समानता, सुरक्षा और पूर्ति व इसके अतिरिक्त उनके अधिकारों की रक्षा के लिये नवीन तरीकों की तलाश करनी चाहिये।
  • 2020 के बाद GBF के कार्यान्वयन में स्वतंत्रता, पूर्व और सूचित सहमति के सिद्धांतों का सम्मान करते हुए पारंपरिक ज्ञान, प्रथाओं और तकनीकों को शामिल किया जाना चाहिये।

जैव विविधता संरक्षण में आदिवासी समुदायों की क्या भूमिका है?

  • प्राकृतिक वनस्पतियों का संरक्षण:
    • आदिवासी समुदायों द्वारा पेड़ों को देवी-देवताओं के निवास स्थान के रूप में देखे जाने से जुड़ा धार्मिक विश्वास वनस्पतियों के प्राकृतिक संरक्षण को बढ़ावा देता है।
    • इसके अलावा, कई फसलों, जंगली फलों, बीज, कंद-मूल आदि विभिन्न प्रकार के पौधों का जनजातीय और आदिवासी लोगों द्वारा संरक्षण किया जाता है क्योंकि वे अपनी खाद्य ज़रूरतों के लिये इन स्रोतों पर निर्भर हैं।
  • पारंपरिक ज्ञान का अनुप्रयोग:
    • आदिवासी लोग और जैव विविधता एक-दूसरे के पूरक हैं।
    • समय के साथ ग्रामीण समुदायों ने औषधीय पौधों की खेती और उनके प्रचार के लिये आदिवासी लोगों के स्वदेशी ज्ञान का उपयोग किया है।
    • इन संरक्षित पौधों में कई साँप और बिच्छू के काटने या टूटी हड्डियों व आर्थोपेडिक उपचार के लिये प्रयोग में लाए जाने पौधे भी शामिल हैं।

आदिवासी समुदाय की चुनौतियाँ:

  • प्रकृति और स्थानीय लोगों के बीच व्यवधान: जैव विविधता की रक्षा हेतु स्थानीय लोगों को उनके प्राकृतिक आवास से अलग करने से जुड़ा दृष्टिकोण ही उनके और संरक्षणवादियों के बीच संघर्ष का मूल कारण है।
    • किसी भी प्राकृतिक आवास को एक विश्व धरोहर स्थल (World Heritage Site) के रूप में चिह्नित किये जाने के साथ ही यूनेस्को (United Nations Educational, Scientific and Cultural Organization- UNESCO) उस क्षेत्र के संरक्षण का प्रभार ले लेता है।
    • यह संबंधित क्षेत्रों में बाहरी लोगों और तकनीकी उपकरणों के प्रवेश (संरक्षण के उद्देश्य से) को बढ़ावा देता है, जो स्थानीय लोगों के जीव को बाधित करता है।
  • वन अधिकार अधिनियम का शिथिल कार्यान्वयन: वन अधिकार अधिनियम (Forest Rights Act- FRA) को लागू करने में भारत के कई राज्यों का प्रदर्शन बहुत ही निराशाजनक रहा है।
    • इसके अलावा विभिन्न संरक्षण संगठनों द्वारा FRA की संवैधानिकता को कई बार सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती भी दी गई है।
      • एक याचिकाकर्त्ता द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में यह तर्क दिया गया कि क्योंकि संविधान के अनुच्छेद-246 के तहत भूमि को राज्य सूची का विषय माना गया है, ऐसे में FRA को लागू करना संसद के अधिकार क्षेत्र के बाहर है।
  • विकास बनाम संरक्षण: अधिकांशतः ऐसा देखा गया है कि सरकार द्वारा विकास के नाम पर बाँध, रेलवे लाइन, सड़क विद्युत संयंत्र आदि के निर्माण के लिये आदिवासी समुदाय के पारंपरिक प्रवास क्षेत्र की भूमि का अधिग्रहण कर लिया जाता है।
    • इसके अलावा इस प्रकार के विकास कार्यों के लिये आदिवासी लोगों को उनकी भूमि से ज़बरन हटाने से पर्यावरण को क्षति होने के साथ-साथ मानव अधिकारों का उल्लंघन होता है।

पोस्ट-2020 ग्लोबल बायोडायवर्सिटी फ्रेमवर्क

  • परिचय:
    • पोस्ट-2020 ग्लोबल बायोडायवर्सिटी फ्रेमवर्क जैव विविधता के लिये रणनीतिक योजना 2011-2020 पर आधारित है।
  • लक्ष्य और उद्देश्य:
    • वर्ष 2050 तक नए फ्रेमवर्क के निम्नलिखित चार लक्ष्यों को प्राप्त किया जाना है:
      • जैव विविधता के विलुप्त होने तथा उसमें गिरावट को रोकना।
      • संरक्षण द्वारा मनुष्यों के लिये प्रकृति की सेवाओं को बढ़ाने और उन्हें बनाए रखना।
      • आनुवंशिक संसाधनों के उपयोग से सभी के लिये उचित और समान लाभ सुनिश्चित करना।
      • वर्ष 2050 के विज़न को प्राप्त करने हेतु उपलब्ध वित्तीय और कार्यान्वयन के अन्य आवश्यक साधनों के मध्य अंतर को कम करना।
    • 2030 कार्य-उन्मुख लक्ष्य: 2030 के दशक में तत्काल कार्रवाई के लिये इस फ्रेमवर्क में 21 कार्य-उन्मुख लक्ष्य हैं।
      • उनमें से एक है संरक्षित क्षेत्रों के तहत विश्व के कम- से-कम 30% भूमि और समुद्र क्षेत्र को लाना।
      • आक्रामक विदेशी प्रजातियों की शुरूआत की दर में 50% से अधिक कमी और उनके प्रभावों को खत्म करने या कम करने के लिये ऐसी प्रजातियों का नियंत्रण या उन्मूलन।
      • पर्यावरण के लिये नुकसानदेह पोषक तत्वों को कम से कम आधा और कीटनाशकों को कम से कम दो तिहाई कम करना, और प्लास्टिक कचरे के निर्वहन को समाप्त करना।
      • प्रति वर्ष कम से कम 10 GtCO2e (गीगाटन समतुल्य कार्बन डाइऑक्साइड) के वैश्विक जलवायु परिवर्तन शमन प्रयासों में प्रकृति-आधारित योगदान और सभी शमन तथा अनुकूलन प्रयास जैवविविधता पर नकारात्मक प्रभावों से बचाते हैं।

जैव विविधता पर अंतर्राष्ट्रीय आदिवासी मंच (IIFB):

  • IIFB आदिवासी सरकारों, आदिवासी गैर-सरकारी संगठनों, आदिवासी विद्वानों और कार्यकर्त्ताओं के प्रतिनिधियों का एक समूह है जो CBD और अन्य महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरणीय बैठकों में संगठित होते हैं।
  • इसका उद्देश्य बैठकों में आदिवासी रणनीतियों के समन्वय में मदद करना, सरकारी दलों को सलाह प्रदान करना और ज्ञान तथा संसाधनों के आदिवासी अधिकारों को पहचानने एवं सम्मान करने के लिये सरकारी दायित्त्वों को प्रभावित करना है।।
  • IIFB का गठन नवंबर 1996 में अर्जेंटीना के ब्यूनस आयर्स में कन्वेंशन ऑन बायोलॉजिकल डायवर्सिटी (CoP III) के पक्षकारों के तीसरे सम्मेलन के दौरान किया गया था।

आगे की राह:

  • स्वदेशी लोगों के अधिकारों को मान्यता देना:
    • संबद्ध क्षेत्र की समृद्ध जैव विविधता को संरक्षित करने के लिये, वनों पर निर्भर रहने वाले वनवासियों के अधिकारों की मान्यता उतनी ही महत्त्वपूर्ण है जितनी कि विश्व विरासत स्थल के रूप में प्राकृतिक आवास की घोषणा।
  • FRA का प्रभावी कार्यान्वयन:
    • देश के अन्य सभी लोगों की तरह समान नागरिक जैसा व्यवहार करते हुए सरकार को इस क्षेत्र में अपनी एजेंसियों और वनों पर निर्भर रहने वाले उन लोगों के बीच विश्वासपूर्ण संबंध स्थापित करने का प्रयास करना चाहिये।
  • संरक्षण के लिये जनजातीय लोगों से संबद्ध पारंपरिक ज्ञान:
    • जैव विविधता अधिनियम, 2002 स्थानीय समुदायों के साथ जैविक संसाधनों के उपयोग और ज्ञान से उत्पन्न होने वाले लाभों के न्यायसंगत साझाकरण का उल्लेख करता है।
      • अतः सभी हितधारकों को यह समझना चाहिये कि स्वदेशी लोगों का पारंपरिक ज्ञान जैव विविधता के अधिक प्रभावी संरक्षण हेतु बहुत महत्त्वपूर्ण है।
  • आदिवासी, वन वैज्ञानिक:
    • आदिवासी आमतौर पर सर्वश्रेष्ठ संरक्षणवादी माने जाते हैं क्योंकि वे प्रकृति से आध्यात्मिक रूप से जुड़े होते हैं।
    • उच्च जैव विविधता वाले क्षेत्रों के संरक्षण का सबसे सस्ता और तेज़ तरीका जनजातीय लोगों के अधिकारों का सम्मान करना है।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न: 

प्रश्न. मुख्यधारा के ज्ञान और सांस्कृतिक प्रणालियों की तुलना में आदिवासी ज्ञान प्रणाली की विशिष्टता की जाँच कीजिये। (2021)

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