बायो-डाइजेस्टर प्रौद्योगिकी | 30 Mar 2019
चर्चा में क्यों?
हाल ही में रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (Defence Research and Development Organisation- DRDO) द्वारा बायो-डाइजेस्टर प्रौद्योगिकी (Bio-Digester Technology) विकसित की गई है। इस तकनीकी से आने वाले वर्षों में स्वच्छता क्षेत्र में अभूतपूर्व परिवर्तन की संभावना है।
प्रमुख बिंदु
- हाल ही में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी कर्नाटक (National Institute of Technology Karnataka- NITK) के परिसर में दक्षिण कन्नड़ निर्मिथि केंद्र (Dakshina Kannada Nirmithi Kendra) में बायो डाइजेस्टर प्रौद्योगिकी का प्रदर्शन किया गया।
- एमएम इंडस्ट्रियल कंट्रोल्स प्राइवेट लिमिटेड (MM Industrial Controls Pvt Ltd.) के प्रबंध निदेशक ने इस बायो-डाइजेस्टर प्रौद्योगिकी से संबंधित महत्त्वपूर्ण जानकारी दी।
- इनके अनुसार, इस तकनीकी में बायो-डाइजेस्टर टैंक के साथ संलग्न एक जैव-शौचालय होता है जो मानव मल को बायोगैस और पुन: उपयोग किये जा सकने वाले जल में परिवर्तित करता है।
स्वदेशी तकनीक
- वर्तमान में DRDO द्वारा विकसित तकनीक का उपयोग भारतीय रेलवे और सशस्त्र बलों द्वारा सफलतापूर्वक किया जा रहा है।
- इसमें एनएरोबिक माइक्रोबियल इनोकुलम (Anaerobic Microbial Inoculum) तकनीकी का उपयोग किया गया है ताकि जीवों को बायोगैस और पानी में परिवर्तित किया जा सके। इसका उपयोग कृषि एवं बागवानी प्रयोजनों के लिये भी किया जा सकता है।
- इस प्रौद्योगिकी का उपयोग पारंपरिक शौचालयों में भी किया जा सकता है।
- इस प्रौद्योगिकी को स्थापित करने में पारंपरिक शौचालयों के टैंको की तुलना में कम स्थान की जरूरत होती है।
- बायो-डाइजेस्टर टैंक के रखरखाव और स्थापना की लागत भी कम होती हैं।
- टंकियों को स्थानीय परिस्थितियों के आधार पर अनुकूलित किया जा सकता है और माइनस (-) 20 डिग्री से लेकर 50 डिग्री तक के तापमान में संचालित किया जा सकता है।
- इस तकनीक का इस्तेमाल स्वतंत्र घरों, अपार्टमेंट ब्लॉक, स्कूलों और अन्य शैक्षणिक संस्थानों एवं छात्रावासों में किया जा सकता है।
मुफ्त रखरखाव
- अधिकांश शहरी क्षेत्रों में सेप्टिक टैंक और खुले कुएँ आसपास के क्षेत्र में स्थित होते हैं जो साफ पानी को प्रदूषित करते हैं।
- ऐसी समस्या को ख़त्म करने में बायो-डाइजेस्टर टैंक काफी उपयोगी हैं। बायो-डाइजेस्टर टैंक जीवनभर के लिये रखरखाव-मुक्त होते हैं, क्योंकि एनएरोबिक माइक्रोबियल इनोकुलम को टैंक में केवल एक ही बार डाला जाता है।
- यह माइक्रोब (Microb) स्व-बहुगुणन प्रक्रिया करता रहता है और मल का निस्तारण होता रहता है।
रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (Defence Research & Development Organization-DRDO)
- डीआरडीओ की स्थापना 1958 में रक्षा विज्ञान संगठन (Defence Science Organisation- DSO) के साथ भारतीय सेना के तकनीकी विकास प्रतिष्ठान (Technical Development Establishment- TDEs) और तकनीकी विकास और उत्पादन निदेशालय (Directorate of Technical Development & Production- DTDP) के संयोजन के बाद किया गया।
- DRDO रक्षा मंत्रालय के रक्षा अनुसंधान और विकास विभाग के तहत काम करता है।
- यह रक्षा प्रणालियों के डिज़ाइन एवं विकास के साथ-साथ तीनों क्षेत्रों के रक्षा सेवाओं की आवश्यकताओं के अनुसार विश्व स्तर की हथियार प्रणाली एवं उपकरणों के उत्पादन में आत्मनिर्भरता बढ़ाने की दिशा में काम कर रहा है।
- डीआरडीओ सैन्य प्रौद्योगिकी के विभिन्न क्षेत्रों में काम कर रहा है, जिसमें वैमानिकी, शस्त्र, युद्धक वाहन, इलेक्ट्रॉनिक्स, इंस्ट्रूमेंटेशन, इंजीनियरिंग प्रणालियाँ, मिसाइलें, नौसेना प्रणालियाँ, उन्नत कंप्यूटिंग, सिमुलेशन और जीवन विज्ञान शामिल है।
एनएरोबिक माइक्रोबियल इनोकुलम Anaerobic Microbial Inoculum- AMI
- AMI बैक्टीरियल संघ (Bacterial Consortium) है जो मल पदार्थ को गैस एवं जल में परिवर्तित करता है।
- ये अवायवीय वातावरण में काम करते हैं और बाहरी वातावरण के संपर्क में बहुत संवेदनशील होते हैं।
- ये बैक्टीरियल कंसोर्टियम बहुत शक्तिशाली होते हैं जो सामान्यतः 5 डिग्री सेल्सियस से 45 डिग्री सेल्सियस के बीच काम कर सकते हैं। एनएरोबिक डाइज़ेशन (Biomethanation) एक बहुत पुरानी तकनीक है और ज़्यादातर बायोगैस उत्पादन के लिये प्रचलित है।