बंगाल के औषधीय पौधे संकट में | 17 Jul 2017
संदर्भ
पश्चिम बंगाल के वन विभाग द्वारा प्रकाशित 600 पन्नों की एक अनूठी पुस्तक में राज्य के दक्षिण भाग में पाई जाने वाली 581 औषधीय पौधों का विस्तार से उल्लेख किया गया है। इनमें से अनेक संकट में हैं।
प्रमुख बिंदु
- इन औषधीय पौधों को राज्य के दक्षिणी भाग में स्थित चार इन-सीटू (in situ) औषधीय पौध संरक्षण क्षेत्रों में तथा दो अन्य एक्स-सीटू (ex-situ) संरक्षण क्षेत्रों में संरक्षित किया जा रहा है ।
- इस पुस्तक में शामिल अधिकांश पौधे आमलाचटी औषधीय पौध उद्यान के हैं, जो कि देश का सबसे बड़ा औषधीय पौध संग्रह क्षेत्र है।
- यह प्रकाशन न केवल देश में पौधों के लिये एक महत्त्वपूर्ण डाटा बैंक का कार्य करेगा बल्कि आम लोगों में अपने–अपने घर के आंगन या बगीचों में इन औषधीय पौधों के संरक्षण के बारे में दिलचस्पी पैदा करेगा।
- गौरतलब है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की 20,000 औषधिय पौधों की सूची में भारत की 5000 औषधियों की प्रजातियाँ शामिल हैं।
संकट का कारण
- इनमें से अनेक पौधों के विलुप्त होने का कारण विभिन्न फार्मा कंपनियों द्वारा उनका कच्चे माल के रूप में इस्तेमाल करना है।
कुछ महत्त्वपूर्ण उपयोगी पौधे एवं उनका उपयोग
- ग्लोरियोसा सुपर्बा (Gloriosa superba ) - इस पौधे की जड़ें जहरीली होती हैं परन्तु इसमें एंटी-कार्सिनोजेनिक एवं एंटी- मलेरिया के गुण पाए जाते हैं।
- सारका असोका (Saraca asoca ) – इसका प्रयोग ह्रदय रोग में किया जाता है।
- कैसिया फिस्टुला (Cassia fistula ) – पेट दर्द एवं त्वचा रोगों में।
- एस्परागस ओफिसिनालिस (Asparagus officinalis ) – पीलिया एवं गठिया में।
- हेलिओट्रोपियम इंडीकम (Heliotropium indicum) – सर्प के काटने पर।
- अदेनन्थेरा पैवोनिना ( Adenenthera pavonina ) – यह कामोद्दीपक औषधि है।
इन-सीटू एवं एक्स-सीटू संरक्षण क्या है ?
- जैव विविधता का संरक्षण दो तरीकों से किया जाता है। इन-सीटू एवं एक्स-सीटू।
- इन-सीटू संरक्षण वह है जिसमें पौधों अथवा जीवों का संरक्षण वहीं किया जाता है जहाँ वे प्राकृतिक रूप से पाए जाते हैं।
- जबकि एक्स-सीटू संरक्षण में पौधों अथवा जीवों का संरक्षण किसी अन्य सुरक्षित स्थान पर ले जाकर किया जाता है।
- जैव विविधता संरक्षण की दृष्टि से इन-सीटू को संरक्षण का बेहतर तरीका माना जाता है।