विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
बीमा बाँस क्रैश बैरियर
- 19 Feb 2021
- 4 min read
चर्चा में क्यों?
विश्वेश्वरैया राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (Visvesvaraya National Institute of Technology- VNIT) नागपुर के विशेषज्ञ ‘बीमा’ बाँस और कॉयर (नारियल की जटा) से बने क्रैश बैरियर के डिज़ाइन पर काम कर रहे हैं।
- इन्हें राजमार्गों पर दुर्घटना से होने वाली मौतों को कम करने के लिये स्टील बैरियर की तुलना में कम लागत वाले विकल्प के रूप में विकसित किया जा रहा है।
प्रमुख बिंदु:
पृष्ठभूमि:
- सड़क दुर्घटना:
- भारत में हर वर्ष 5 लाख के करीब सड़क दुर्घटनाओं में लगभग डेढ़ लाख लोग मारे जाते हैं। उन दुर्घटनाओं में से लगभग एक-तिहाई राजमार्गों पर घटित होती हैं।
- वर्तमान में भारत एशियाई विकास बैंक और विश्व बैंक द्वारा प्रदत्त 14,000 करोड़ रुपए के ऋण के माध्यम से दुर्घटना संभावित "ब्लैक स्पॉट्स’ की समस्या को दूर करने और राजमार्गों पर सड़क के डिज़ाइन में सुधार के लिये एक परियोजना में संलग्न है।
- पारंपरिक क्रैश बैरियर की कीमत:
- क्रैश बैरियर आमतौर पर वाहनों को राजमार्गों पर जाने से रोकने के लिये होते हैं ताकि दुर्घटनाओं में कमी लाई जा सके।
- धातु और मिश्र धातु से बने पारंपरिक क्रैश बैरियर की कीमत लगभग 2,000 रुपए प्रति मीटर हो सकती है, भारत में राजमार्गों में लगने वाली कुल लागत का 5% भाग सड़क संबधी उपकरणों में व्यय हो जाता है।
बीमा बाँस क्रैश बैरियर
- क्रैश बैरियर:
- कंक्रीट के खंडों में बाँस की पाँच फीट बाड़ लगाने का कार्य किया जाएगा तथा उन्हें मज़बूत कॉयर रस्सियों से एक साथ बाँधा जाएगा।
- बीमा बाँस क्रैश बैरियर की अनुमानित लागत पारंपरिक क्रैश बैरियर की तुलना में एक-तिहाई है।
- बीमा बाँस:
- बीमा या भीमा बाँस का एक प्रकार है जो भारतीय उपमहाद्वीप विशेष रूप से उत्तर-पूर्व में पाए जाने वाले पारंपरिक बाँस, जो कि मज़बूत, टिकाऊ, तेज़ी से विकसित होने वाला और लंबा होता है , का प्रतिरूप है। बाँस की इस किस्म की दक्षिण भारत में अच्छी पैदावार है।
- यह मुख्य रूप से कर्नाटक और उसके आसपास के क्षेत्रों का स्थानीय उत्पाद है।
- बीमा या भीमा बाँस का एक प्रकार है जो भारतीय उपमहाद्वीप विशेष रूप से उत्तर-पूर्व में पाए जाने वाले पारंपरिक बाँस, जो कि मज़बूत, टिकाऊ, तेज़ी से विकसित होने वाला और लंबा होता है , का प्रतिरूप है। बाँस की इस किस्म की दक्षिण भारत में अच्छी पैदावार है।
कॉयर:
- कॉयर या ‘कोकोनट फाइबर’ एक प्राकृतिक फाइबर है जिसे नारियल की बाहरी जटा से प्राप्त किया जाता है और फर्शमैट, डोरमैट, ब्रश एवं गद्दे आदि उत्पादों के निर्माण में उपयोग किया जाता है।
- कॉयर शब्द तमिल और मलयालम में कॉर्ड या रस्सी के लिये प्रयुक्त होने वाले शब्द ‘कायर’ से लिया गया है।
महत्त्व:
- तन्यता (लचीलापन):
- बाँस में स्टील की तुलना में अधिक तन्यता होती है क्योंकि इसके फाइबर गतिशील होते हैं।
- अग्नि प्रतिरोधक:
- अग्नि प्रतिरोधक के रूप में बाँस की क्षमता बहुत अधिक होती है और यह 400 डिग्री सेल्सियस तापमान का सामना कर सकता है।
- लोचनीयता:
- बाँस अपनी लोचदार विशेषताओं के कारण भूकंप प्रवण क्षेत्रों में व्यापक रूप से पसंद किया जाता है।
- बाँस का भार:
- कम वज़न के कारण बाँस का आसानी से विस्थापन हो जाता है जो परिवहन और निर्माण क्षेत्र के लिये बहुत आवश्यक है।