भारतीय इतिहास
बसव जयंती
- 04 May 2022
- 7 min read
प्रिलिम्स के लिये:बसवन्ना, अनुभव मंतपा मेन्स के लिये:दक्षिण भारत के सामाजिक-सांस्कृतिक सुधार आंदोलन। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में प्रधानमंत्री ने बसव जयंती (Basava Jayanti) के पावन अवसर पर जगद्गुरु बसवेश्वर (बसवन्ना) को श्रद्धांजलि दी।
- हिंदू कैलेंडर के अनुसार, बसवन्ना का जन्म वैशाख महीने के तीसरे दिन शुक्ल पक्ष में हुआ। यह आमतौर पर अंग्रेज़ी कैलेंडर के मई-अप्रैल माह के मध्य में पड़ता है।
बसव के बारे में:
- परिचय: बसवेश्वर का जन्म 1131 ई. में बागेवाड़ी (कर्नाटक का अविभाजित बीजापुर ज़िला) में हुआ था।
- ये 12वीं सदी के एक कवि और दार्शनिक थे जिन्हें विशेष रूप से लिंगायत समुदाय में विशेष महत्त्व एवं सम्मान प्राप्त है, क्योंकि वे लिंगायतवाद के संस्थापक थे।
- लिंगायत शब्द का आशय एक ऐसे व्यक्ति से है जो दीक्षा समारोह के दौरान प्राप्त लिंग को शरीर पर व्यक्तिगत रूप से धारण करता है जिसे भगवान शिव के एक प्रतिष्ठित रूप मानते हुए धारण किया जाता है।
- कल्याण में कलचुर्य राजा बिज्जल (1157-1167 ई.) ने अपने दरबार में बसवेश्वर को प्रारंभिक चरण में एक कर्णिका (लेखाकार) के रूप में और बाद में प्रधानमंत्री के रूप में नियुक्त किया।
- ये 12वीं सदी के एक कवि और दार्शनिक थे जिन्हें विशेष रूप से लिंगायत समुदाय में विशेष महत्त्व एवं सम्मान प्राप्त है, क्योंकि वे लिंगायतवाद के संस्थापक थे।
- मुख्य शिक्षाएँ: उनका आध्यात्मिक अनुशासन अरिवु (सच्चा ज्ञान), आचार (सही आचरण) और अनुभव (दिव्य अनुभव) के सिद्धांतों पर आधारित था जिसने 12वीं शताब्दी में एक सामाजिक, धार्मिक और आर्थिक क्रांति को जन्म दिया।
- यह मार्ग लिंगनगयोग (ईश्वर के साथ मिलन) के लिये एक समग्र दृष्टिकोण की वकालत करता है।
- यह व्यापक अनुशासन भक्ति, ज्ञान, और क्रिया को अच्छी तरह व संतुलित तरीके से शामिल करता है।
- सामाजिक सुधार: बसवेश्वर को कई सामाजिक सुधारों के लिये जाना जाता है।
- वह जाति व्यवस्था से मुक्त समाज में सभी के लिये समान अवसर की बात करते थे और शारीरिक परिश्रम का उपदेश देते थे।
- उन्होंने अनुभव मंडप की भी स्थापना की, जिसका अनुवाद अनुभव के मंच के रूप में किया गया, यह एक तरह की अकादमी थी जिसमें लिंगायत मनीषियों, संतों और दार्शनिकों को शामिल किया गया था।
- सामाजिक-आर्थिक सिद्धांत: बसवेश्वर ने दो बहुत महत्त्वपूर्ण सामाजिक-आर्थिक सिद्धांत दिये।
- कायाक (ईश्वरीय कार्य):
- इसके अनुसार समाज के प्रत्येक व्यक्ति को अपनी पसंद के कार्य को पूरी ईमानदारी के साथ करना चाहिये।
- दसोहा (समान वितरण):
- समान काम के लिये समान आय होनी चाहिये।
- कार्यकर्त्ता (कायाकजीवी) अपनी मेहनत की कमाई से अपना दैनिक जीवन व्यतीत कर सकता है लेकिन उसे धन या संपत्ति को भविष्य के लिये सुरक्षित नहीं रखना चाहिये और अधिशेष धन का उपयोग समाज और गरीबों के हित में करना चाहिये।
- कायाक (ईश्वरीय कार्य):
अनुभव मंडप:
- बसवेश्वर ने अनुभव मंडप की स्थापना की, जो व्यक्तिगत समस्याओं के साथ-साथ धार्मिक और आध्यात्मिक सिद्धांतों सहित सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक स्तर की मौजूदा समस्याओं पर चर्चा करने हेतु सभी के लिये एक सामान्य मंच था।
- इस प्रकार यह भारत की पहली और सबसे महत्त्वपूर्ण संसद थी, जहांँ शरणों (कल्याणकारी समाज के नागरिक) के साथ एक लोकतांँत्रिक व्यवस्था के समाजवादी सिद्धांतों पर चर्चा की।
- शरणों की वे सभी चर्चाएँ वचनों के रूप में लिखी गई थीं।
- वचन सरल कन्नड़ भाषा में लिखे गए एक अभिनव साहित्यिक रूप थे।
- उनके व्यावहारिक दृष्टिकोण और 'कल्याणकारी राज्य' (कल्याण राज्य) की स्थापना के कार्य ने वर्ग, जाति, पंथ एवं लिंग के बावजूद समाज के सभी नागरिकों को एक नई स्थिति और परिस्तिथि प्रदान की।
- हाल ही में कर्नाटक के मुख्यमंत्री ने बसव कल्याण में 'नए अनुभव मंडप' की आधारशिला रखी है।
विगत वर्ष के प्रश्न:प्रश्न. मध्यकालीन भारत के सांस्कृतिक इतिहास के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2016)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (C)
|