अंतर्राष्ट्रीय संबंध
अच्छी स्वास्थ्य सुविधाओं की समस्याएँ
- 02 Aug 2017
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संदर्भ
गौरतलब है कि हाल ही में चार्ली गार्ड (ब्रिटेन में 11 माह का एक अस्वस्थ बच्चा, जिसकी 28 जुलाई को मृत्यु हो गई) की स्वास्थ्य देखभाल के संबंध में उत्पन्न हुए विवाद ने समस्त संसार को न केवल इस बच्चे की स्वास्थ्य देखभाल से संबंधित जटिलताओं के मुद्दे से रूबरू कराया बल्कि इस मुद्दे से जुड़ी नैतिक विवशताओं के विषय में भी गंभीर रूप से विचार विमर्श को विवश कर दिया है| ध्यातव्य है कि जन्म से ही इस शिशु में एक गंभीर माइटोकॉन्ड्रियल डिसऑर्डर (mitochondrial disorder) बीमारी थी, जिसके कारण इसकी मांसपेशीया और मस्तिष्क कमज़ोर हो रहे थे| इस बीमारी का कोई निश्चित उपचार उपलब्ध नहीं होने के कारण इस बच्चे को अक्तूबर 2016 से जीवन रक्षक प्रणाली (life support system) पर रखा गया था
मुद्दे से संबंधित कुछ विशेष बिंदु
- ध्यातव्य है कि इस बच्चे के माता-पिता इसे अमेरिका ले जाना चाहते थे जहाँ नुक्लियोसाइड की प्रायोगिक चिकित्सा पद्धति (experimental therapy of nucleosides) के द्वारा इस बच्चे का इलाज़ किया जाता| हालाँकि इस प्रायोगिक चिकित्सा पद्धति के माध्यम से इसकी बीमारी के ठीक होने की संभावना मात्र 10% ही थी|
- परंतु, लंदन स्थित ग्रेट औरमोंड स्ट्रीट हॉस्पिटल के चिकित्सकों का कहना था कि इस पद्धति से उसे कोई लाभ प्राप्त नहीं होगा| अत: ऐसी स्थिति में इस छोटे से बच्चे से इतनी लंबी यात्रा कराना पूर्णतया अनैतिक है|
- बच्चे के स्वास्थ्य संबंधी एक जाँच से प्राप्त जानकारी के अनुसार, उसका मस्तिष्क गंभीर खतरे की स्थिति में था| अत: डॉक्टरों को अब उसके जीवित रह सकने की उम्मीद नहीं थी, इसलिये उसे और अधिक कष्ट न देते हुए इस बात पर सहमती व्यक्त की गई कि अब इस बच्चे को सम्मान से मरने दिया जाए|
- हालाँकि चार्ली के माता–पिता इस प्रायोगिक चिकित्सा का पूर्व परीक्षण करना चाहते थे, अतः उन्होंने न्यायालय में याचिका दायर की परंतु, वे ब्रिटिश और यूरोपीय मानवाधिकार न्यायालयों को अपना पक्ष समझाने में असमर्थ रहे|
- तत्पश्चात् अमेरिकी कॉन्ग्रेस के द्वारा इस मामले में हस्तक्षेप करते हुए चार्ली को विशेष नागरिकता प्रदान करने की पहल करते हुए उसे इलाज़ के लिये अमेरिका आमंत्रित किया गया परंतु, ब्रिटिश न्यायालय द्वारा इससे इनकार कर दिया गया|
- परंतु, हाल ही में अमेरिकी डॉक्टरों के एक समूह द्वारा किये गए चार्ली के एक अन्य परीक्षण में यह पाया गया कि उसकी वर्तमान स्थिति में उसे उक्त पद्धति से कोई लाभ प्राप्त नहीं होगा| अत: चार्ली के माता-पिता को उसकी सम्मान पूर्ण मृत्यु के विकल्प पर विचार करना चाहिये|
मामले से जुड़े नैतिक एवं अनैतिक पक्ष
- इस मामले का सबसे पेचीदा पक्ष यह है कि इसमें न केवल कानूनी चुनौतियाँ हैं बल्कि यह मामला नैतिक पक्षों से भी जुड़ा हुआ है| यहाँ जहाँ एक ओर लोगों की भावनाएँ बच्चे के माता-पिता से संबद्ध थीं, वहीं दूसरी ओर न्यायालय द्वारा डॉक्टरों द्वारा प्रस्तुत चिकित्सकीय प्रमाणों एवं बच्चे की वास्तविक स्थिति के संदर्भ में निर्णय लिया गया|
- वस्तुतः इससे जो अंतिम बात निकलकर आई वह यह कि प्रश्न चाहे बच्चे के जीवन के सही फैसले से संबंधित हो अथवा माता-पिता की भावनाओं से, अंततः किसी भी बच्चे के हितों की रक्षा करने का दायित्व समाज का ही होता है|
इसका मौद्रिक पक्ष
- इस मामले ने बच्चों के हितों से संबंधित एक अन्य को पक्ष भी उभारा है वह है, हृदय की बीमारी या अन्य उपचार योग्य रोग, जैसे- ल्यूकेमिया (leukaemia) जैसी गंभीर स्थिति से त्रस्त किसी बच्चे के उपचार हेतु भुगतान करने संबंधी पक्ष|
- ध्यातव्य है कि बहुत से देशों में सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज (Universal Health Coverage - UHC) प्रणाली के तहत उच्च स्तर के उपचार को भी समाहित किया गया है| परंतु, बहुत से देशों में उच्च स्तरीय उपचारों विशेषकर वे जिनकी लागत अधिक होती है को इसके अंतर्गत शामिल नहीं किया गया है| बहुत से देशों में यदि किसी बच्चे का उच्च स्तरीय उपचार कराना है तो उस बच्चे के माता-पिता आर्थिक रूप से इतने सक्षम होने चाहिये अन्यथा उपचार कराना एक कठिन कार्य होता है|
- विश्व के कुछ ऐसे देशों में जहाँ कि सामाजिक सेवाएँ बच्चों के प्रति काफी संवेदनशील होती हैं, वहाँ यदि बच्चे के साथ मार-पीट अथवा उसे नज़रअंदाज किया जाता है तो उस बच्चे को उसके माता-पिता से अलग कर दिया जाता है| इस प्रकार बच्चे के संरक्षण की ज़िम्मेदारी वहाँ के समाज की सामूहिक ज़िम्मेदारी बन जाती है| संभवतः ऐसे समाज में किसी बच्चे की चिकित्सकीय समस्या मात्र उसके माता-पिता द्वारा की जाने वाली देखभाल पर ही निर्भर नहीं होती है वरन् वह उस समाज की सामूहिक ज़िम्मेदारी का अंश बन जाती है|
- इस संबंध में अर्थशास्त्रियों का मत यह है कि यू.एच.सी के अंतर्गत सभी प्रकार के उपचारों को शामिल नहीं किया जा सकता है क्योंकि इसका सीधा संबंध संसाधनों की उपलब्धता से है, कुछ सीमा तक इनकी बात भी सही है| तथापि, इस तर्क को किसी बच्चे को बेहतर स्वास्थ्य उपलब्ध कराने की उस समाज की ज़िम्मेदारी से कैसे पृथक् किया जा सकता है?
- संभवतः इस संबंध में यह कहना बिल्कुल अप्रासंगिक नहीं होगा कि स्वास्थ्य क्षेत्र में संसाधनों के आवंटन के विषय में बात करते समय अर्थशास्त्रियों को निजी हित के स्थान पर सार्वजनिक हित को अधिक वरीयता देनी चाहिये| उदाहरण के लिये, टीकाकरण कार्यक्रम लोगों को संक्रामक बीमारियों से बचाते हैं जो वृहत स्तर पर फैलती हैं| अतः इसे सामाजिक हित की संज्ञा दी जाती है, न कि व्यक्तिगत हित की| परंतु, किसी बच्चों के मामले में यह तर्क प्रस्तुत करना उतना सार्थक प्रतीत नहीं होता है|
भारतीय परिदृश्य
- उपरोक्त मामले के मद्देनज़र यदि भारतीय संदर्भ में बात की जाए तो वैसे महंगे उपचार जो बच्चों के लिये लाभप्रद हो सकते हैं, उन्हें परोपकारों अथवा सरकार द्वारा संचालित सीमित सामाजिक बीमा योजनाओं के माध्यम से कवर किया जाता है| यह और बात है कि इस सबके बावजूद ये प्रयास स्वास्थ्य सुविधाओं तक सभी की पहुँच और वहनीयता संबंधी अवरोधों को समाप्त नहीं कर पाए हैं| अत: ऐसे समय में सबसे महत्त्वपूर्ण यह है कि बच्चों के स्वास्थ्य संबंधी सभी प्रकार की सामाजिक ज़िम्मेदारियों का निर्वहन करने के लिये स्वास्थ्य पेशेवरों, नीति निर्माताओं, अर्थशास्त्रियों, नीतिशास्त्रियों, कानून विशेषज्ञों, प्रधान प्रतिनिधियों एवं सामुदायिक नेताओं को एक - साथ मिलकर कार्य करना होगा ताकि देश के भविष्य को सुरक्षित रखा जा सके|