सामाजिक न्याय
भारत में गर्भपात संबंधी जटिलताएँ
- 29 Mar 2025
- 9 min read
प्रिलिम्स के लिये:सर्वोच्च न्यायालय, भारतीय न्याय संहिता, अनुच्छेद 21, गर्भ का चिकित्सीय समापन अधिनियम, 1971 मेन्स के लिये:भारत में गर्भपात कानून, महिलाओं की स्वायत्तता और प्रजनन अधिकार |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
सर्वोच्च न्यायालय (SC) द्वारा सीमांत भ्रूण व्यवहार्यता मामलों (24-30 सप्ताह) में देर से गर्भपात की अनुमति न दिये जाने से भारत में प्रजनन अधिकारों पर विमर्श को फिर से बढ़ावा मिला है।
- विधिक सुधारों, नैतिक दुविधाओं और प्रक्रियागत देरी से गर्भपात में बाधा उत्पन्न हो रही है।
गर्भपात क्या है?
और पढ़ें: गर्भपात
भारत में गर्भपात हेतु विधिक ढाँचा क्या है?
- 1971 से पूर्व की विधिक स्थिति: भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 312 और 313 के तहत गर्भपात एक दांडिक अपराध था।
- शांतिलाल शाह समिति: बढ़ते असुरक्षित गर्भपात एवं मातृ मृत्यु दर की प्रतिक्रिया में इसने महिलाओं के स्वास्थ्य की रक्षा के क्रम में वर्ष 1966 में गर्भपात से संबंधित विधियों को व्यापक और युक्तिसंगत बनाने की सिफारिश की।
- MTP अधिनियम, 2021: गर्भ का चिकित्सकीय समापन (MPT) अधिनियम, 1971, जिसे अंतिम बार वर्ष 2021 में संशोधित किया गया था, एक पंजीकृत चिकित्सक (RMP) के अनुमोदन से 20 सप्ताह तक गर्भपात की अनुमति देता है।
- दो RMP के अनुमोदन से 20 से 24 सप्ताह के बीच गर्भपात की अनुमति है।
- 24 सप्ताह के बाद राज्य चिकित्सा बोर्ड विशिष्ट स्थितियों के आधार पर गर्भपात की पात्रता निर्धारित करता है, जैसे भ्रूण में विसंगतियाँ या माँ के शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य के लिये गंभीर खतरा।
- भारतीय न्याय संहिता: भारतीय न्याय संहिता (BNS) (पूर्व में IPC) के तहत MTP अधिनियम, 2021 में शामिल विधिक अपवादों को छोड़कर गर्भपात को अपराध माना गया है।
- न्यायिक हस्तक्षेप: न्यायमूर्ति केएस पुट्टास्वामी बनाम भारत संघ मामला, 2017 में पुष्टि की गई कि गर्भपात अनुच्छेद 21 के तहत महिला की निजता और स्वतंत्रता के अधिकार का हिस्सा है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि 20 से 24 सप्ताह के बीच की गर्भधारण अवधि वाली अविवाहित महिलाओं को भी विवाहित महिलाओं के समान गर्भपात के अधिकार प्राप्त हैं तथा इस बात की पुष्टि की कि प्रजनन स्वायत्तता के तहत सभी महिलाओं को गर्भावस्था जारी रखने का विकल्प चुनने का समान अधिकार प्राप्त है।
गर्भपात संबंधी बाधाएँ क्या हैं?
- राज्य द्वारा अनिवार्य नीतियाँ: हरियाणा जैसे राज्यों में अनिवार्य गर्भावस्था पंजीकरण से MTP अधिनियम की धारा 5A का उल्लंघन होने का खतरा है (जो गर्भपात कराने वाली महिलाओं के लिये सख्त गोपनीयता सुनिश्चित करता है), जिससे महिलाओं की गोपनीयता से समझौता कर संभवतः उन्हें असुरक्षित गर्भपात की ओर धकेला जा सकता है।
- गर्भपात स्वायत्तता: भारत में गर्भपात सशर्त है, जबकि अन्य देशों (जैसे अमेरिका) में प्रजनन स्वायत्तता सर्वोपरि है।
- भ्रूण की व्यवहार्यता: भ्रूण की व्यवहार्यता चिकित्सकीय और नैतिक रूप से अनिश्चित है, आमतौर पर 24 सप्ताह में मान लिया जाता है, लेकिन यह चिकित्सकीय बुनियादी ढाँचे और गर्भकालीन स्वास्थ्य पर निर्भर करता है।
- नवजात शिशु देखभाल में प्रगति से यह सीमा और भी कम हो सकती है, जिसका असर गर्भपात कानूनों पर पड़ सकता है।
- न्यायालय भ्रूण के अधिकारों को महिला की स्वायत्तता के विरुद्ध मापा जाता हैं, विशेष रूप से सीमांत व्यवहार्यता मामलों (24-30 सप्ताह) में, अक्सर मानसिक या भावनात्मक कल्याण की अनदेखी करते हैं।
- भ्रूण की व्यवहार्यता: भ्रूण की व्यवहार्यता चिकित्सकीय और नैतिक रूप से अनिश्चित है, आमतौर पर 24 सप्ताह में मान लिया जाता है, लेकिन यह चिकित्सकीय बुनियादी ढाँचे और गर्भकालीन स्वास्थ्य पर निर्भर करता है।
- मेडिकल बोर्ड द्वारा विलंब: निर्णय मामला-दर-मामला आधार पर लिये जाते हैं, जिसके कारण अक्सर विलंब होता है, जिससे गर्भधारण की संभावना और भी अधिक बढ़ जाती है।
- बोर्डों में मानकीकृत प्रोटोकॉल का अभाव है तथा वे नैदानिक साक्ष्य की अपेक्षा व्यक्तिपरक नैतिक विचारों (भ्रूण जीवन की धारणा) को लागू कर सकते हैं।
- विशेषज्ञों की कमी: गर्भपात कानूनों के तहत स्त्री रोग विशेषज्ञों या प्रसूति विशेषज्ञों की आवश्यकता होती है, लेकिन वर्ष 2019-20 के ग्रामीण स्वास्थ्य सांख्यिकी के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में 70% कमी है तथा नवजात गहन देखभाल इकाइयों (NICU) का अभाव है।
- कानूनी भय: चूँकि गर्भपात एक गारंटीकृत अधिकार के बजाय एक अपवाद है, इसलिये, विशेष रूप से जटिल मामलों में, स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं को कानूनी दायित्व का भय रहता है।
- अस्पताल कभी-कभी अविवाहित महिलाओं से पुलिस को रिपोर्ट करने को कहते हैं, जिससे कानूनी जटिलताएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
- आलोचनात्मक दृष्टिकोण: देर से गर्भपात करवाने वाली महिलाओं को अक्सर आलोचनात्मक दृष्टिकोण और दखलंदाजी भरे सवालों का सामना करना पड़ता है। अविवाहित महिलाओं, नाबालिगों या विधवाओं को और भी अधिक जाँच का सामना करना पड़ता है।
गर्भपात देखभाल तक पहुँच में सुधार के लिये क्या किया जा सकता है?
- स्वास्थ्य देखभाल अधिकार के रूप में गर्भपात: अनुमति-आधारित दृष्टिकोण से अधिकार-आधारित ढाँचे की ओर बदलाव, कानूनी गर्भावधि सीमाओं के भीतर गर्भपात को आवश्यक स्वास्थ्य देखभाल के रूप में मान्यता प्रदान करता है।
- गोपनीयता सुरक्षा को बढ़ाएँ: अनिवार्य गर्भावस्था पंजीकरण से बचना, MTP अधिनियम की धारा 5A के अनुसार गोपनीयता को सुदृढ़ करना।
- चिकित्सीय गर्भपात (MTP) दवाएँ: नियामक निगरानी के साथ फार्मेसियों और स्वास्थ्य केंद्रों में MTP दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करना।
- प्रदाता आधार का विस्तार करना: प्रारंभिक चरण के MTP के लिये सामान्य चिकित्सकों और मध्य-स्तरीय प्रदाताओं को प्रशिक्षित करना। सुरक्षित और समय पर पहुँच सुनिश्चित करने के लिये ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा के बुनियादी ढाँचे को मज़बूत करना।
- यौन शिक्षा में सुधार: अवांछित गर्भधारण और असुरक्षित प्रक्रियाओं को रोकने के लिये गर्भनिरोधक और गर्भपात पर सटीक, आलोचना-मुक्त जानकारी के साथ यौन संबंधी शिक्षा को बढ़ावा देना।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: भारत में विभिन्न सामाजिक-आर्थिक संदर्भों में गर्भपात तक पहुँच में क्या बाधाएँ हैं, तथा प्रजनन न्याय सुनिश्चित करने के लिये क्या किया जा सकता है? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नमेन्सQ. भारत में समय और स्थान के विरुद्ध महिलाओं के लिये निरंतर चुनौतियाँ क्या हैं? (2019) |