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भारतीय अर्थव्यवस्था

बैंक-NBFC सह-उधार

  • 14 Dec 2021
  • 6 min read

प्रिलिम्स के लिये:

सह-उधार मॉडल, NBFC, प्राथमिक क्षेत्र,

मेन्स के लिये:

सह-उधार मॉडल के उद्देश्य,सह-उधार में ज़ोखिम

चर्चा में क्यों?

हाल ही में कई बैंकों ने पंजीकृत गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFC) के साथ सह-उधार 'मास्टर समझौते' किये हैं। वर्ष 2020 में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने एक पूर्व समझौते के आधार पर सह-उधार मॉडल की अनुमति दी थी।

  • हालाँकि सह-उधार से जुड़ी कुछ आलोचनाएँ भी हैं।

प्रमुख बिंदु:

  • सह-उधार मॉडल:

    • पृष्ठभूमि: सितंबर 2018 में आरबीआई ने बैंकों और NBFC द्वारा प्राथमिकता क्षेत्रकों को ऋण देने के लिये ऋण की सह-उधार की घोषणा की थी।
      • इस व्यवस्था में क्रेडिट का संयुक्त योगदान और ज़ोखिमों तथा पुरस्कारों को साझा करना शामिल था। सह-उधार या सह-उत्पत्ति एक ऐसी व्यवस्था है जहाँ बैंक और गैर-बैंक प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र को ऋण देने के लिये ऋण के संयुक्त योगदान की व्यवस्था करते हैं।
      • इन दिशानिर्देशों को वर्ष 2020 में संशोधित किया गया और हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों तथा मॉडल में कुछ बदलावों को शामिल करके सह-उधार मॉडल (CLM) के रूप में फिर से नाम दिया गया।
      • प्राथमिकता क्षेत्रकों के मानदंडों के तहत बैंकों को अपने फंड का एक विशेष हिस्सा समाज के कमज़ोर वर्गों, कृषि, एमएसएमई और सामाजिक बुनियादी ढाँचे जैसे निर्दिष्ट क्षेत्रों को उधार देना अनिवार्य है।
    • उद्देश्य: 'सह-उधार मॉडल' (CLM) का प्राथमिक उद्देश्य अर्थव्यवस्था के असेवित और कम सेवा वाले क्षेत्र को ऋण के प्रवाह में सुधार करना है।
      • इसमें अंतिम लाभार्थी को वहनीय लागत पर धन उपलब्ध कराने की भी परिकल्पना की गई है।
    • अंतर्निहित/आधारभूत विचार: CLM एक सहयोगी प्रयास में बैंकों और NBFCs के संबंधित तुलनात्मक लाभों का बेहतर लाभ उठाने का प्रयास करता है।
      • बैंकों से धन की कम लागत।
      • NBFCs की अधिक पहुंँच।
      • उदाहरण के लिये, CLM अंत तक वित्तीय संवर्द्धन के माध्यम से MSMEs के लिये वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देगा।
    • CML का उदाहरण: देश के सबसे बड़े ऋणदाता SBI ने किसानों को ट्रैक्टर और कृषि उपकरण खरीदने में मदद करने हेतु सह-उधार देने के लिये एक बड़े कॉर्पोरेट घराने की एक छोटी NBFC अदानी कैपिटल के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किये।
  • सह-उधार में ज़ोखिम:

    • अधिकांश ज़िम्मेदारी बैंकों के पास: CLM के तहत, NBFCs को अपने खातों में व्यक्तिगत ऋण का कम से कम 20% हिस्सा रखना आवश्यक है।
      • इसका मतलब है कि 80% ज़ोखिम बैंकों को होगा जो डिफाॅल्ट के मामलों के लिये सर्वाधिक ज़िम्मेदार होगा।
      • वास्तव में जहांँ बेंकों द्वारा ऋण का बड़ा हिस्सा वितरित किया जाता है, वहीं NBFC द्वारा उधारकर्त्ता का निर्णय किया जाता है।
    • बैंकिंग में कार्पोरेट्स: आरबीआई ने आधिकारिक तौर पर बड़े कार्पोरेट घरानों को बैंकिंग क्षेत्र में प्रवेश की अनुमति नहीं दी है, लेकिन NBFC ज़्यादातर कॉरपोरेट घरानों द्वारा नियंत्रित की जाती हैं।
      • यह जोखिम भरा है, खासकर जब चार बड़ी निजी वित्त कंपनियाँ- IL&FS, DHFL, SREI और रिलायंस कैपिटा आरबीआई द्वारा कड़ी निगरानी के बावजूद पिछले तीन वर्षों में ध्वस्त हो गई हैं।
    • NBFC की सीमित पहुँच: जबकि आरबीआई ने "NBFC की अधिक पहुँच" का उल्लेख किया है, 100-शाखा नेटवर्क वाले छोटे NBFCs कम सेवा प्राप्त और असेवित क्षेत्रों में सेवा देने में कम हो जाएँगे।

आगे की राह

  • निर्णय लेने की प्रक्रिया के संचालन, समीक्षा करने और निरीक्षण करने के लिये बैंक के बोर्ड को अधिक अधिकार देने की आवश्यकता है तथा इसके लिये योग्य व्यक्तियों की भर्ती की जानी चाहिये।
    • साथ ही एक अधिक मज़बूत जोखिम प्रबंधन तंत्र की आवश्यकता है।
  • अब विदेशी बाजारों को देखने की और उपयुक्त व्यावसायिक नीतियाँ (वैश्विक स्थान और इन बैंकों द्वारा लक्षित उत्पाद के संदर्भ में) स्थापित करने की ज़रूरत है, जो इन बैंकों की दक्षता तथा उनके वैश्विक समकक्षों के साथ प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ाने में मदद करेगी।
  • निम्नलिखित के संबंध में निरंतर सुधार किये जाने चाहिये,
    • उत्पाद नवीनता,
    • प्रौद्योगिकियों में निवेश,
    • बेहतर बैक-एंड प्रक्रियाएँ,
    • टर्नअराउंड समय में कमी

स्रोत-इंडियन एक्सप्रेस

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