PFI पर बैन | 30 Sep 2022
प्रिलिम्स के लिये:पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया, गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम मेन्स के लिये:आंतरिक सुरक्षा के प्रबंधन एवं आतंकवाद से निपटने में सरकारी हस्तक्षेप |
चर्चा में क्यों?
भारत सरकार ने गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम, 1967 के तहत पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया और उससे जुड़े संगठनों पर आतंकी संबंध रखने की वजह से पाँच साल के लिये प्रतिबंध लगा दिया है।
पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया:
- PFI का गठन वर्ष 2007 में दक्षिण भारत में तीन मुस्लिम संगठनों के विलय द्वारा किया गया था। ये संगठन केरल में नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट, कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी और तमिलनाडु में मनिथा नीथी पासराय हैं।
- PFI के गठन की औपचारिक घोषणा 16 फरवरी, 2007 को “एम्पॉवर इंडिया कॉन्फ्रेंस” के दौरान बंगलूरू में आयोजित एक रैली में की गई थी।
केंद्र ने PFI पर क्या प्रतिबंध लगाए हैं?
- विषय:
- गृह मंत्रालय ने PFI और उसके सहयोगियों को "गैरकानूनी संगठन" घोषित किया है जिसमें निन्मलिखित शामिल हैं:
- रिहैब इंडिया फाउंडेशन (RIF), कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया (CFI), ऑल इंडिया इमाम काउंसिल (AIIC), नेशनल कन्फेडरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स ऑर्गनाइजेशन (NCHRO), नेशनल वीमेंस फ्रंट, जूनियर फ्रंट, एम्पॉवर इंडिया फाउंडेशन तथा रिहैब फाउंडेशन, केरल।
- गृह मंत्रालय ने PFI और उसके सहयोगियों को "गैरकानूनी संगठन" घोषित किया है जिसमें निन्मलिखित शामिल हैं:
- प्रतिबंध का कारण:
- भारत सरकार के अनुसार, PFI के कुछ संस्थापक सदस्य स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (SIMI) के नेता हैं और जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश (JMB) के साथ भी उनकेे संबंध हैं तथा ये दोनों ही प्रतिबंधित संगठन हैं।
- इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया (ISIS) जैसे वैश्विक आतंकवादी समूहों के साथ PFI के अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के कई उदाहरण हमें देखने को मिलते हैं।
गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (Unlawful Activities Prevention Act-UAPA):
- परिचय:
- मूल रूप से UAPA को वर्ष 1967 में लागू किया गया था। इसे वर्ष 2004 और वर्ष 2008 में आतंकवाद विरोधी कानून के रूप में संशोधित किया गया था।
- अगस्त 2019 में संसद ने कुछ आधारों पर व्यक्तियों को आतंकवादी के रूप में नामित करने के लिये UAPA (संशोधन) बिल, 2019 को मंज़ूरी दी।
- आतंकवाद से संबंधित अपराधों से निपटने के लिये यह सामान्य कानूनी प्रक्रियाओं से अलग है और इसके नियम सामान्य अपराधों के नियमों से अलग हैं। जहाँ अभियुक्तों के संवैधानिक सुरक्षा उपायों को कम कर दिया गया है।
- प्रावधान:
- धारा 7:
- UAPA की धारा 7 सरकार को "गैरकानूनी संगठन" द्वारा "धन के उपयोग पर रोक लगाने" की शक्ति देती है।
- इसमें कहा गया है कि किसी संगठन के प्रतिबंधित होने के बाद यदि केंद्र सरकार जाँच के बाद संतुष्ट हो जाती है कि "ऐसे किसी भी व्यक्ति/संगठन के पास उपलब्ध धन, प्रतिभूतियाँ या क्रेडिट हैं जो गैरकानूनी संगठन के उद्देश्य के लिये उपयोग किये जा रहे हैं या उपयोग किये जाने की संभावना है तो केंद्र सरकार लिखित आदेश द्वारा उस व्यक्ति/संगठन को ऐसे धन, प्रतिभूतियों के भुगतान करने, वितरित करने, स्थानांतरित करने या अन्यथा किसी भी तरीके से व्यवहार करने से रोक सकती है।
- यह कानून प्रवर्तन एजेंसियों को ऐसे संगठनों के परिसरों की तलाशी लेने और उनकी लेखा पुस्तकों की जाँच करने का अधिकार भी देती है।
- धारा 8:
- UAPA की धारा 8 केंद्र सरकार को “किसी भी स्थान को अधिसूचित करने का अधिकार देती है, जो उसकी राय में इस तरह के गैरकानूनी संगठन के उद्देश्य के लिये उपयोग किया जाता है”।
- यहाँ “स्थान” में घर या इमारत, या इसका हिस्सा, या यहाँ तक कि एक तम्बू भी शामिल है।
- धारा 10 :
- UAPA की धारा 10 प्रतिबंधित संगठन की सदस्यता को अपराध बनाती है।
- इसमें कहा गया है कि प्रतिबंधित संगठन का सदस्य होने पर दो साल की कैद की सज़ा हो सकती है और कुछ परिस्थितियों में इसे आजीवन कारावास तथा यहाँ तक कि मृत्युदंड तक बढ़ाया जा सकता है।
- यह प्रतिबंधित संगठन के उद्देश्यों की सहायता करने वाले किसी भी व्यक्ति पर लागू होता है।
- धारा 7:
- UAPA न्यायाधिकरण:
- परिचय:
- UAPA, सरकार द्वारा गठित उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के तहत न्यायाधिकरण का प्रावधान करता है, ताकि उसके प्रतिबंध लंबे समय तक कानूनी रूप से सुरक्षित रहे।
- UAPA की धारा 3 के तहत केंद्र द्वारा किसी संगठन को "गैरकानूनी" घोषित करने के आदेश जारी किये जाते हैं।
- प्रावधान के अनुसार "इस तरह की कोई भी अधिसूचना तब तक प्रभावी नहीं होगी जब तक कि न्यायाधिकरण ने धारा 4 के तहत किये गए आदेश द्वारा उसमें की गई घोषणा की पुष्टि नहीं कर दी हो और आदेश आधिकारिक राजपत्र में प्रकाशित नहीं हो गया हो"।
- सरकारी आदेश तब तक प्रभावी नहीं होगा जब तक न्यायाधिकरण इसकी पुष्टि नहीं कर देता।
- असाधारण परिस्थितियों में इसके कारणों को लिखित रूप में दर्ज करने के बाद अधिसूचना तुरंत प्रभाव में आ सकती है। न्यायाधिकरण इसका समर्थन या अस्वीकार कर सकता है।
- शक्तियाँ:
- न्यायाधिकरण के पास अपनी स्वयं की प्रक्रिया को विनियमित करने की शक्ति है, जिसमें वह स्थान भी शामिल है जहाँ वह अपनी बैठकें आयोजित करता है। इस प्रकार यह उन राज्यों से संबंधित आरोपों के लिये विभिन्न राज्यों में सुनवाई कर सकता है।
- पूछताछ करने के लिये न्यायाधिकरण के पास वही शक्तियाँ हैं जो सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के तहत सिविल कोर्ट में निहित हैं।
- परिचय:
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न: भारत सरकार ने हाल ही में गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम, (UAPA), 1967 और NIA अधिनियम में संशोधन करके आतंकवाद विरोधी कानूनों को मज़बूत किया है। मानवाधिकार संगठनों द्वारा UAPA का विरोध करने की संभवना और कारणों पर चर्चा करते हुए प्रचलित सुरक्षा वातावरण के संदर्भ में परिवर्तनों का विश्लेषण कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2019) |