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कृषि

GM फसलों पर रोक

  • 03 Jul 2019
  • 4 min read

चर्चा में क्यों?

कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय (Ministry of Agriculture & Farmers Welfare) द्वारा लोकसभा में प्रस्तुत जानकारी के अनुसार, कृषि, सहकारिता और किसान कल्याण विभाग (Department of Agriculture, Cooperation and Farmers Welfare) ने राज्यों को BT बैंगन और HT कपास के प्रसार को नियंत्रित करने के लिये निर्देश जारी किये हैं।

प्रमुख बिंदु

  • BT कपास,पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (Genetic Engineering Appraisal Committee) द्वारा वाणिज्यिक खेती के लिये अनुमोदित एकमात्र आनुवंशिक रूप से संशोधित फसल है।
  • इसके अतिरिक्त अन्य GM फसलों की खेती पर प्रतिबंध है। हाल ही में BT बैंगन और HT कपास की खेती के कुछ मामले महाराष्ट्र, हरियाणा, पंजाब, गुजरात और आंध्र प्रदेश में सामने आये हैं ।
  • पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 (Environment Protection Act 1986) के तहत वर्ष 1989 में बनाये गये सूक्ष्मजीवों, आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों से संबंधित नियमों द्वारा GM फसलों को मंज़ूरी प्रदान की जाती है।
  • GM फसलों का मूल्यांकन स्वास्थ्य, पर्यावरण, भोजन पर प्रभाव के आधार पर 1989 के नियमो के तहत जैव सुरक्षा समिति और आनुवंशिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति द्वारा किया जाता है।

जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति

(Genetic Engineering Appraisal Committee)

  • जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MOEFCC) के अंतर्गत स्थापित किया गया है।
  • इसका कार्य अनुवांशिक रूप से संशोधित सूक्ष्म जीवों और उत्पादों के कृषि में उपयोग को स्वीकृति प्रदान करना है।
  • विदित हो कि जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति आनुवंशिक रूप से संशोधित बीजों के लिये स्थापित भारत का सर्वोच्च नियामक है |

बीटी (Bt) तथा बीटी फसलें (Bt crops) क्या हैं ?

  • बेसिलस थुरिनजेनेसिस (Bacillus Thuringiensis– Bt) एक जीवाणु है जो प्राकृतिक रूप से क्रिस्टल प्रोटीन उत्पन्न करता है| यह प्रोटीन कीटों के लिये हानिकारक होता है।
  • बीटी फसलों का नाम बेसिलस थुरिनजेनेसिस (bacillus thuringiensis -Bt) के नाम पर रखा गया है|
  • बीटी फसलें ऐसी फसलें होती है जो बेसिलस थुरिनजेनेसिस नामक जीवाणु के समान ही विषाक्त पदार्थ उत्पन्न करती हैं ताकि फसलों का कीटों से बचाव किया जा सके।
  • जैव प्रौद्योगिकी विभाग और पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों और उत्पादो के लिये निम्न प्रोटोकॉल जारी किये हैं-
    • DNA सुरक्षा हेतु दिशा-निर्देश, 1990
    • संशोधित फसलो पर अनुसंधान हेतु दिशा-निर्देश, 1998
    • GM पौधों से उत्पन्न खाद्य पदार्थों के सुरक्षा मूल्यांकन के लिये दिशा-निर्देश, 2008
    • GM फसलो के सीमित क्षेत्रो में परीक्षण के लिये दिशा-निर्देश, 2008
    • जैव सुरक्षा समिति के दिशा-निर्देश, 2011
    • GM फसलो के पर्यावरण जोखिम मूल्यांकन पर दिशा-निर्देश, 2016
    • जोखिम विश्लेषण फ्रेमवर्क, 2016

स्रोत : pib

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