महिलाओं के लिये जमानत संबंधी प्रावधान | 05 Sep 2022
प्रिलिम्स के लिये:CRPC में जमानत का प्रावधान, जमानत के प्रकार। मेन्स के लिये:महिलाओं के मामले में गिरफ्तारी की प्रक्रिया, CRPC और इसके प्रावधान, जमानत के प्रकार। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने कार्यकर्त्ता तीस्ता सीतलवाड़ को अंतरिम जमानत देते हुए कहा कि "अपीलकर्त्ता (तीस्ता) को इस तथ्य सहित कि अपीलकर्त्ता एक महिला है, असाधारण तथ्यों में अंतरिम जमानत की राहत दी जाती है"।
- भारत के मुख्य न्यायाधीश ने दंड प्रक्रिया संहिता CRPC में जमानत प्रावधान का भी संदर्भ दिया, जिसमें कहा गया है कि "एक महिला होने के नाते जमानत देने का एक संभावित आधार है, भले ही अन्यथा इस पर विचार नहीं किया जा सकता है।"
महिलाओं के लिये जमानत संबंधी उपलब्ध प्रावधान:
- आपराधिक प्रक्रिया संहिता:
- CRPC की धारा 437 गैर-जमानती अपराधों के मामले में जमानत से संबंधित है। इसके अनुसार, व्यक्ति को जमानत पर रिहा नहीं किया जाएगा यदि:
- यह मानने का उचित आधार है कि उसने मृत्यु या आजीवन कारावास से दंडनीय अपराध किया है; या
- उसे पहले मौत, आजीवन कारावास, या सात वर्ष या उससे अधिक की अवधि के लिये दंडनीय अपराध के लिये दोषी ठहराया गया है; या
- उसे दो या दो से अधिक अवसरों पर अन्य अपराधों में तीन से सात वर्ष के बीच की अवधि के साथ दोषी ठहराया गया है।
- हालाँकि, CRPC की धारा 437 में अपवाद भी शामिल हैं जैसे कि न्यायालय इन मामलों में भी जमानत दे सकती है, अगर ऐसा व्यक्ति 16 वर्ष से कम उम्र का है या महिला है या बीमार या कमज़ोर है।
- CRPC की धारा 437 गैर-जमानती अपराधों के मामले में जमानत से संबंधित है। इसके अनुसार, व्यक्ति को जमानत पर रिहा नहीं किया जाएगा यदि:
- अन्य प्रावधान:
- जब एक पुलिस अधिकारी को किसी ऐसे व्यक्ति की उपस्थिति की आवश्यकता होती है जिसे वह मानता है कि जाँच के तहत मामले से परिचित है, तो उस व्यक्ति को अधिकारी (धारा 160) के सामने पेश होना पड़ता है।
- हालाँकि किसी भी महिला को अपने निवास स्थान के अलावा किसी अन्य स्थान पर ऐसा करने की आवश्यकता नहीं होगी।
- वर्ष 1980 और 1989 में अपनी 84वीं और 135वीं रिपोर्ट में, विधि आयोग ने सुझाव दिया कि 'स्थान' शब्द अस्पष्ट है, और इसे 'निवास स्थान' में संशोधित करना बेहतर होगा।
- जब एक पुलिस अधिकारी को किसी ऐसे व्यक्ति की उपस्थिति की आवश्यकता होती है जिसे वह मानता है कि जाँच के तहत मामले से परिचित है, तो उस व्यक्ति को अधिकारी (धारा 160) के सामने पेश होना पड़ता है।
महिलाओं की गिरफ्तारी पर CRPC के प्रावधान:
- गिरफ्तारी की प्रक्रिया:
- एक पुलिस अधिकारी किसी ऐसे व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकता है जिसने न्यायिक आदेश या वारंट के बिना संज्ञेय अपराध किया है। (धारा 41)
- यदि व्यक्ति पुलिस की कहने या कार्रवाई के आधार पर वह गिरफ्तारी नहीं देता है, तो धारा 46 पुलिस अधिकारी को गिरफ्तारी को प्रभावी करने के लिये व्यक्ति को शारीरिक रूप से सीमित करने में सक्षम बनाती है।
- वर्ष 2009 में CrPC में इस आशय से एक प्रावधान जोड़ा गया कि जब किसी महिला को गिरफ्तार किया जाना हो तो, केवल एक महिला पुलिस अधिकारी ही महिला को छू सकती है, जब तक कि ऐसी परिस्थितियाँ न हों।
- यदि व्यक्ति पुलिस की कहने या कार्रवाई के आधार पर वह गिरफ्तारी नहीं देता है, तो धारा 46 पुलिस अधिकारी को गिरफ्तारी को प्रभावी करने के लिये व्यक्ति को शारीरिक रूप से सीमित करने में सक्षम बनाती है।
- वर्ष 2005 में एक संशोधन के माध्यम से, सूर्यास्त के बाद या सूर्योदय से पहले एक महिला की गिरफ्तारी पर रोक लगाने के लिये धारा 46 में एक उपधारा जोड़ी गई।
- असाधारण परिस्थितियों में गिरफ्तारी के लिये एक महिला पुलिस अधिकारी न्यायिक मजिस्ट्रेट की पूर्व अनुमति प्राप्त कर सकती है।
- एक पुलिस अधिकारी किसी ऐसे व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकता है जिसने न्यायिक आदेश या वारंट के बिना संज्ञेय अपराध किया है। (धारा 41)
- गैर-उपस्थिति के मामलों में:
- पुलिस ऐसे किसी भी परिसर में प्रवेश की मांग कर सकती है जहाँ संदेह हो कि जिस व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाना है, वह वहाँ मौजूद है।
- इस धारा में यह माना गया है कि पुलिस अधिकारी या कोई अन्य व्यक्ति, जो भी गिरफ्तारी वारंट निष्पादित कर रहा है, को पता चलता है कि जिस परिसर की तलाशी ली जानी है, वह महिलाओं का मूल निवास स्थान है, जो प्रथा के अनुसार सार्वजनिक रूप से पता नहीं होता है। तो ऐसा पुलिस अधिकारी या व्यक्ति तलाशी शुरू करने से पहले उस महिला को तलाशी रद्द करने के अधिकार के बारे में एक नोटिस जारी करेगा। (धारा 47 का प्रावधान)।
- इसमें यह भी जोड़ा गया है कि वे परिसर में प्रवेश करने एवं उसे गिरफ्तार कर वापस लाने के दौरान उचित सुविधा प्रदान करेंगे।
- इस धारा में यह माना गया है कि पुलिस अधिकारी या कोई अन्य व्यक्ति, जो भी गिरफ्तारी वारंट निष्पादित कर रहा है, को पता चलता है कि जिस परिसर की तलाशी ली जानी है, वह महिलाओं का मूल निवास स्थान है, जो प्रथा के अनुसार सार्वजनिक रूप से पता नहीं होता है। तो ऐसा पुलिस अधिकारी या व्यक्ति तलाशी शुरू करने से पहले उस महिला को तलाशी रद्द करने के अधिकार के बारे में एक नोटिस जारी करेगा। (धारा 47 का प्रावधान)।
- एक अन्य अपवाद के तहत में एक महिला जो मानहानि का मामला दर्ज करने का इरादा रखती है, लेकिन वह सार्वजनिक रूप से उपस्थति नहीं होना चाहती है, वह अपनी ओर से किसी और को शिकायत दर्ज करने के लिये कह सकती है।
- पुलिस ऐसे किसी भी परिसर में प्रवेश की मांग कर सकती है जहाँ संदेह हो कि जिस व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाना है, वह वहाँ मौजूद है।
गिरफ्तारी से संरक्षण हेतु भारत में संवैधानिक प्रावधान
- अनुच्छेद 22:
- भारतीय संविधान का अनुच्छेद 22 गिरफ्तार या हिरासत में लिये गए व्यक्तियों को सुरक्षा प्रदान करता है।
- हिरासत दो प्रकार की होती है:
- दंडात्मक निरोध।
- निवारक निरोध।
- हिरासत दो प्रकार की होती है:
- दंडात्मक निरोध के तहत किसी व्यक्ति को उसके द्वारा किये गए अपराध के लिये न्यायालय में मुकदमे और दोषसिद्धि के बाद दंडित करना है।
- दूसरी ओर, निवारक निरोध का अर्थ है किसी व्यक्ति को बिना किसी मुकदमे और न्यायालय द्वारा दोषसिद्धि के हिरासत में रखना।
- अनुच्छेद 22 के दो भाग हैं- पहला भाग साधारण कानून के मामलों से संबंधित है और दूसरा भाग निवारक निरोध कानून के मामलों से संबंधित है।
- भारतीय संविधान का अनुच्छेद 22 गिरफ्तार या हिरासत में लिये गए व्यक्तियों को सुरक्षा प्रदान करता है।
दंडात्मक नजरबंदी के तहत प्रदान अधिकार |
निवारक निरोध के तहत प्रदान अधिकार |
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जमानत और उसके प्रकार:
- जमानत :
- जमानत कानूनी हिरासत में रखे गए व्यक्ति की सशर्त/अनंतिम रिहाई है (ऐसे मामलों में जो अभी तक न्यायालय द्वारा घोषित किये जाने हैं) और जब भी आवश्यक हो,न्यायालय में पेश होने का वादा करके यह रिहाई हेतु न्यायालय के समक्ष जमा की गई सुरक्षा/संपार्श्विक (Collateral) का प्रतीक है।
- जमानत के प्रकार:
- नियमित जमानत:
- यह न्यायालय (देश के भीतर किसी भी न्यायालय) द्वारा एक ऐसे व्यक्ति को रिहा करने का निर्देश है जो पहले से ही गिरफ्तार किया गया है और पुलिस हिरासत में रखा गया है।
- ऐसी जमानत के लिये व्यक्ति CrPC की धारा 437 और 439 के तहत आवेदन कर सकता है।
- यह न्यायालय (देश के भीतर किसी भी न्यायालय) द्वारा एक ऐसे व्यक्ति को रिहा करने का निर्देश है जो पहले से ही गिरफ्तार किया गया है और पुलिस हिरासत में रखा गया है।
- अंतरिम जमानत:
- न्यायालय द्वारा एक अस्थायी और अल्प अवधि के लिये ज़मानत दी जाती है जब तक कि अग्रिम जमानत या नियमित जमानत की मांग करने वाला आवेदन न्यायालय के समक्ष लंबित न हो।
- अग्रिम जमानत:
- किसी व्यक्ति को गिरफ्तार किये जाने से पहले ही जमानत पर रिहा करने का निर्देश जारी किया जाता है।
- ऐसे में गिरफ्तारी की आशंका बनी रहती है और जमानत मिलने से पूर्व व्यक्ति को गिरफ्तार नहीं किया जाता है।
- ऐसी जमानत के लिये कोई व्यक्ति CrPC की धारा 438 के तहत आवेदन दाखिल कर सकता है।
- यह केवल सत्र न्यायालय और उच्च न्यायालय द्वारा जारी किया जाता है।
- किसी व्यक्ति को गिरफ्तार किये जाने से पहले ही जमानत पर रिहा करने का निर्देश जारी किया जाता है।
- नियमित जमानत: