जैव विविधता और पर्यावरण
ग्लोबल वार्मिंग के कारण 30 फीट तक बढ़ सकता है समुद्र का औसत स्तर
- 18 Jul 2018
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चर्चा में क्यों?
नए शोध के मुताबिक यदि मानव द्वारा लगातार जीवाश्म ईंधन जलाया जाता है तो यह पूर्व-औद्योगिक स्तर से 2 डिग्री सेल्सियस अधिक तापमान का कारण बनेगा जो अगले हज़ार वर्षों में समुद्र के औसत जल स्तर को 30 फीट तक बढ़ा सकता है।
प्रमुख बिंदु:
- पेरिस समझौते के तहत देशों को अपने कार्बन उत्सर्जन को सीमित करने के लिये पृथ्वी के समग्र तापमान को पूर्व-औद्योगिक स्तर से 1.5 डिग्री सेल्सियस तक रखने की आवश्यकता है।
- दुनिया भर में तटीय क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की संख्या एक अरब से अधिक है, ऐसे में समुद्र के स्तर में वृद्धि तटीय क्षेत्रों में निवास करने वाले लोगों के लिये अपेक्षा से भी अधिक भयावह हो सकती है। खासकर उन गरीब और विकासशील देशों में, जहाँ लाखों लोग अपरोक्ष या परोक्ष रूप से अपनी आजीविका के लिये महासागरों पर निर्भर हैं।
- अध्ययन के अनुसार, समुद्र स्तर में हुई अब तक की वृद्धि बहुत बड़े हिमशैल की केवल नोक के बराबर है। बड़ा सवाल यह है कि क्या हम प्रणाली को स्थिर कर सकते हैं और ऊर्जा के नए विकल्पों को ढूंढ सकते है। यदि इन प्रश्नों का उत्तर नहीं है तो यह कहा जा सकता है कि हम निश्चित ही आपदा की राह पर अग्रसर हैं।
- शोधकर्त्ताओं ने इस बात को उजागर किया है कि वर्तमान में दुनिया भर में 10 अरब टन कार्बन उत्सर्जित किया जा रहा है जिसका तात्पर्य यह है कि अगले 60 वर्षों में यह 2 डिग्री की सीमा पहुँच जाएगा।
- समुद्र वैज्ञानिकों के अनुसार, दक्षिण-एशियाई देशों मे बांग्लादेश सबसे सुभेद्य है लेकिन पूर्व उअर पश्चिम में 7516 किलोमीटर की विशाल तटीय सीमा होने के कारण भारत को भी सतर्क रहने की अवश्यकता है, क्योंकि यह न केवल निचले स्तर पर है बल्कि यहाँ भूमि भी डूब रही हैं।
- वैज्ञानिकों और शोधकर्त्ताओं ने भारत के पूरे तट का भेद्यता सूचकांक तैयार किया है जो न केवल समुद्र स्तर में वृद्धि के कारण खतरे को कवर करता है बल्कि सुनामी को भी कवर करता है।
- समुद्र के बढ़ते स्तर ने अभी तक लोगों को वास्तव में चिंतित नहीं किया है क्योंकि उन प्रतिक्रिया अवधि तापमान से काफी अधिक है। रिपोर्ट में भविष्य में कार्बन उत्सर्जन को सीमित करने और समुद्र स्तर के बढ़ते कारक को नीति निर्माण में महत्त्वपूर्ण स्थान देने पर ज़ोर दिया गया है।
- वर्तमान समुद्र स्तर अब तक का सबसे ज़्यादा है और इस शताब्दी के अंत तक इसमें एक मीटर से भी कम की वृद्धि होने की उम्मीद है, जो भारत के मुंबई जैसे स्थान के लिये महत्त्वपूर्ण है क्योंकि उसे 2005 की स्थिति का सामना करना पड़ सकता है।
- सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि यह केवल समुद्र के स्तर में वृद्धि का कारक ही नहीं है अपितु बढ़ता ज्वार तूफान के साथ मिलकर निम्न क्षेत्रों को आप्लावित कर सकता है। ऐसे क्षेत्र जो समुद्र तल से बहुत अधिक ऊँचाई पर नहीं हैं, अधिकतम जोखिम वाले हैं।
- शोधकर्त्ताओं ने उभरते खतरे से निपटने के लिये तटीय शहरों को तैयार रहने की तत्काल आवश्यकता की ओर इंगित किया है। विशेषकर देश की अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका पर विचार के मामले में।
- शोधकर्त्ताओं के अनुसार, 2005 में दुनिया के बड़े तटीय शहरों में बाढ़ से वैश्विक आर्थिक नुकसान 6 अरब डॉलर तक पहुँच गया था, जो 2050 तक 1 ट्रिलियन डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है।
- वैज्ञानिक इस तथ्य के बारे में भी चिंतित हैं कि हिंद महासागर अन्य महासागरों की तुलना में तेज़ी से गर्म हो रहा है। बढ़ी हुई गर्मी की मात्रा तटीय क्षेत्रों में मज़बूत तूफान को बढ़ावा दे सकती है, जो भयावह हो सकती है और व्यापक क्षेत्रों में अनावश्यक खतरे का कारण बन सकती है। साथ ही ऊँची लहरों की आवृत्ति में भी वृद्धि हो सकती है।
- कई हज़ार वर्षों में समुद्री जल स्तर की वृद्धि 3-9 मीटर या लगभग 10 से 30 फीट तक बनाए रखने की संभावना बहुत आशावादी है जब तक कि समाज शून्य उत्सर्जन और वातावरण में न्यून कार्बन डाइऑक्साइड के तरीकों को नहीं अपना लेता है।
- इस तरह हम यह जानते हैं कि वातावरण को एक निश्चित तापमान से नीचे रखने के लिये हम कितना कार्बन उत्सर्जित कर सकते हैं। इस संदर्भ में नीतिगत दृष्टिकोण से यह सवाल पूछना कि- हम समुद्र स्तर में कितनी वृद्धि सहन कर सकते हैं?- भी एक तरीका हो सकता है।