महासागरों की निगरानी करने हेतु जल्द ही ‘स्वचालित लंगरों’ का निर्माण | 13 May 2017

संदर्भ
भारत महासागरीय प्रदूषण के स्वतः अवलोकन की प्रणाली स्थापित कर रहा है ताकि इससे उसे वे आँकड़े प्राप्त हो सकें जो भारत के पर्यटन उद्योग में बाधा उत्पन्न कर सकते हैं| विदित हो कि भारत को प्रमुख प्रदूषणकारी राष्ट्र की श्रेणी में शामिल किया गया है जिस कारण इसे विकसित राष्ट्र की आलोचनाओं का सामना भी करना पड़ता है|

प्रमुख बिंदु

  • भारतीय राष्ट्रीय महासागर सूचना सेवा केंद्र (INCOIS) के निदेशक शेनोई के अनुसार, उन्होंने महासागरों के प्रदूषण का स्वतः अवलोकन करने के लिये एक पूर्णतः नए प्रोजेक्ट को प्रस्तावित किया है| इसके अतिरिक्त, वे यह भी देखना चाहते हैं कि एक गणितीय मॉडल का उपयोग करके वे इन अवलोकनों का अनुकरण कर सकते हैं अथवा नहीं? इन अवलोकनों का उपयोग तटीय क्षेत्रों के जल में होने वाली प्रक्रियाओं और जल की गुणवत्ता का मापन करने के लिये किया जाएगा| 
  • भारतीय राष्ट्रीय महासागर सूचना सेवा केंद्र पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अंतर्गत स्थापित एक स्वायत्त निकाय है| यह प्रस्ताव पहले से ही पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के समक्ष रखा जा चुका है तथा इसके लिये आरंभिक स्वीकृति भी प्राप्त हो चुकी है|
  • महासागरीय जल में इस स्वचालित प्रणाली के होने से कई लाभ होंगे| ऐसा माना जा रहा है कि यह मानव द्वार उत्सर्जित किये लगभग आधे कार्बन डाई ऑक्साइड को समाप्त कर देगी|
  • सबसे पहले यह जानने का प्रयास किया जाएगा कि जल में किस प्रकार का परिवर्तन हो रहा है| ये कुछ ऐसे मुद्दे हैं जो सदैव ही विवाद का विषय रहे हैं तथा इनके समाधान के लिये जल में प्रदूषण स्तर के उचित मापन की आवश्यकता है|
  • चूँकि भारतीय तटों पर पर्यटन उद्योग का विस्तार हो रहा है अतः यह प्रदूषण भविष्यवाणी जल में जाने वाले अपशिष्ट पदार्थों की एक न्यूनतम सीमा का निर्धारण करने में सहायता करेगी| 
  • इसके पश्चात वैज्ञानिक महासागरों में प्रदूषण के स्तर की भविष्यवाणी करने में सक्षम होंगे| यह पर्यटन उद्योग के लिये लाभकारी सिद्ध होगा क्योंकि इससे सरकारी विनियामक प्राधिकरणों को यह पता चल सकेगा कि आखिर महासागर में कितनी गहराई तक के प्रदूषण का पता इस प्रणाली के माध्यम से लगाया जा सकता है|
  • इस प्रोजेक्ट को सफल बनाने के लिये INCOIS ‘महासागरीय आँकड़ा अधिग्रहण प्रणालियों’(ocean data acquisition systems) को तैनात करेगा| इन्हें ‘स्वचालित लंगर’(automated moorings) भी कहा जाता है|
  • वैज्ञानिक उन स्वचालित लंगरों का उपयोग करने की योजना बना रहे हैं जिन्हें कुछ चुनिन्दा स्थानों पर लगाया जाएगा तथा वे आँकड़ों को रिकॉर्ड करके प्रतिदिन उन्हें भारतीय राष्ट्रीय महासागर सूचना सेवा केंद्र में भेजेंगे| 
  • भारतीय तट के सहारे 6 उपकरणों को लगाया जाएगा| इसमें से पहला पश्चिम बंगाल, दूसरा विज़ाग (विशाखापत्तनम) के समीप, एक चेन्नई और तीन पश्चिमी तट पर लगाए जाएंगे| प्रत्येक लंगर की लागत 4 करोड़ रुपए होगी तथा इनके आरंभिक प्रोजेक्ट की अवधि 3 वर्ष होगी| इसमें किया जाने वाला कुल निवेश 160 करोड़ रुपए का होगा|
  • ये लंगर जहाज़ पर लगी कंप्यूटर प्रणाली और सेंसर हैं जो यह बताते हैं कि किस प्रकार विभिन्न महासागरों की स्थितियाँ समय के साथ परिवर्तित होती रहती हैं|
  • ये अवलोकन बताते हैं कि वे कौन से महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हैं जो तटीय जल में हो रहे हैं|