मूल्य नियंत्रण के लिये पेट्रोलियम उत्पादों को जीएसटी के दायरे में लाने की कवायद | 30 May 2018
चर्चा में क्यों?
ऑटोमोबाइल ईंधन की बढ़ती कीमतों को ध्यान में रखते हुए सरकार पेट्रोलियम उत्पादों को वस्तु और सेवा कर (GST) के दायरे में लाने के लिये "समग्र रणनीति" के हिस्से के रूप में विचार कर रही है ताकि इस मुद्दे का समाधान हो सके। इस महीने के अंत में क्रूड आयल 80 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर पहुँच गया है|
यह कैसे मदद करेगा?
- जब भारत में पिछले जुलाई में जीएसटी लागू किया गया तब शराब, अचल संपत्ति और बिजली के साथ पेट्रोलियम उत्पादों को इससे बाहर रखा गया था।
- वर्तमान ढाँचे में केंद्र और राज्य सरकारें दोनों ही पेट्रोल, डीज़ल, कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस पर कर लगाते हैं।
- केंद्र सरकार उत्पाद शुल्क के रूप में कर लगाती है जबकि प्रत्येक राज्य का अपना मूल्य वर्द्धित कर (VAT) होता है।
- इससे डीलर कमीशन बढ़ता है जिससे कीमत बढ़ती है और उपभोक्ताओं को पेट्रोलियम उत्पादों के लिये अधिक भुगतान करना पड़ता है।
- पेट्रोलियम उत्पादों को जीएसटी के दायरे में लाने का मतलब होगा एक ही दर अर्थात् 18% या 28%| उत्पाद शुल्क और राज्य के मूल्य वर्द्धित कर समाप्त हो जाएंगे|
- इससे पेट्रोलियम उत्पादों के बढ़ते मूल्य के कारण सरकार पर राजनीतिक दबाव कम होगा और उत्पादन तथा प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा मिलेगा साथ ही उद्योग जगत को कम परिवहन लागत के कारण लाभ हो सकता है।
- यह 'एक राष्ट्र, एक कर' के विचार को ध्यान में रखेगा, जिसका उद्देश्य खपत पर कर लगाने के दौरान उत्पादन और रोज़गार में सुधार करना है।
- चूँकि इन उत्पादों को जीएसटी से बाहर रखा गया है, इसलिये कई फर्मों को नुकसान का सामना करना पड़ता है| वे परिवहन लागत, लाँजिस्टिक, सेवा, स्पेयर, या क्लेम इनपुट टैक्स क्रेडिट पर लागत मूल्य को नहीं रोक सकते। वे उत्पादकता लाभ से भी चूक जाते हैं।
चिंताएँ क्या हैं?
- केंद्र और राज्य सरकारों के लिये शराब की तरह पेट्रोलियम उत्पाद भी भारी राजस्व अर्जक हैं।
- वैश्विक रूप से तेल की कीमतें 2014-15 से 2016-17 तक गिरने के बावजूद केंद्र सरकार ने वित्त वर्ष 2018 में पेट्रोलियम उत्पादों से उत्पाद शुल्क के रूप में 1.60 लाख करोड़ रुपए अर्जित किये और वित्त वर्ष 2017 में 2.42 लाख करोड़ रुपए अर्जित किये|
- 2013-14 और 2016-17 के बीच केंद्र सरकार ने केवल उत्पाद शुल्क के रूप में 2,79,005 करोड़ रुपए एकत्र किये जिससे बेहतर राजकोषीय स्थिति प्राप्त करने में मदद मिली|
- इसी प्रकार राज्यों ने वित्त वर्ष 2018 में इन उत्पादों पर वैट लगाकर 1.66 लाख करोड़ रुपए अर्जित किये, उदाहरण के रूप में महाराष्ट्र ने वर्तमान में 22,000 करोड़ रुपए अर्जित किये हैं।
- इसलिये जीएसटी के तहत पेट्रोलियम उत्पादों को लाने के फैसले को गति देने के लिये राजस्व के पहलू पर विचार किये जाने की संभावना है।
- निर्णय जीएसटी परिषद द्वारा लिया जाना है जिसमें राज्यों का महत्त्वपूर्ण प्रभाव है।
- भले ही राज्य जीएसटी के तहत पेट्रोल, डीजल और अन्य उत्पादों को रखने के लिये सहमत हों फिर भी उन्हें अतिरिक्त या टॉप-अप कर लगाने की स्वायत्तता होगी जो सभी राज्यों में भिन्न हो सकती है।
- यह अधिभार "सिन टैक्स" (Sin Tax) के रूप में हो सकता है जो राज्यों के लिये शराब या तंबाकू जैसे कुछ उत्पादों की खपत को हतोत्साहित करने और वाहन प्रदूषण को कम करने का एक तरीका है।
- केंद्र सरकार के लिये चिंता का कारण न केवल पेट्रोलियम उत्पादों की वज़ह से विशाल राजस्व है बल्कि यह भी है कि पाँच वर्षों तक राजस्व में किसी भी कमी के लिये राज्यों की क्षतिपूर्ति करने हेतु वह प्रतिबद्ध है।
- इसके अलावा केंद्र सरकार को निजी वाहनों के लिये ईंधन खरीदने वाले उपभोक्ता प्रोफाइल और एक प्रभावी सार्वजनिक परिवहन प्रणाली के मुद्दे को देखते हुए साम्यता (equity) जैसे बड़े प्रश्नों को ध्यान में रखना होगा।