असिस्टेड सुसाइड और यूथनेशिया | 17 Sep 2022
मेन्स के लिये:असिस्टेड सुसाइड और यूथनेशिया तथा संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में फ्रांँसीसी न्यू वेव सिनेमा के दिग्गजों में से एक जीन-ल्यूक गोडार्ड की 91 वर्ष की आयु में असिस्टेड सुसाइड के कारण मृत्यु हो गई।
असिस्टेड सुसाइड:
- परिचय:
- असिस्टेड सुसाइड और यूथनेशिया/इच्छा मृत्यु दोनों ऐसी प्रथाएँ हैं जिनके तहत एक व्यक्ति जान-बूझकर दूसरों की सक्रिय सहायता से अपना जीवन समाप्त करता है।
- कई यूरोपीय राष्ट्र, ऑस्ट्रेलिया के कुछ राज्य और दक्षिण अमेरिका में कोलंबिया कुछ परिस्थितियों में असिस्टेड सुसाइड एवं यूथनेशिया की अनुमति देते हैं।
- प्रकार:
- सक्रिय/एक्टिव:
- सक्रिय यूथनेशिया, जो केवल कुछ देशों में वैध है, रोगी के जीवन को समाप्त करने के लिये पदार्थों के उपयोग पर ज़ोर देती है।
- निष्क्रिय/पैसिव:
- इसमें रोगी या परिवार के किसी सदस्य या रोगी का प्रतिनिधित्व करने वाले करीबी दोस्त की सहमति से जीवन रक्षक उपचार या चिकित्सा हस्तक्षेप को रोकना शामिल है।
- सक्रिय/एक्टिव:
असिस्टेड सुसाइड के पक्ष और विपक्ष में तर्क:
- पक्ष:
- चयन का अधिकार:
- लोगों का तर्क है कि व्यक्ति को अपनी पसंद/चयन बनाने में सक्षम होना चाहिये।
- जीवन स्तर:
- केवल व्यक्ति ही वास्तव में जानता है कि वह कैसा महसूस करता है और बीमारी व लंबी मृत्यु का शारीरिक तथा भावनात्मक दर्द उसके जीवन की गुणवत्ता को कैसे प्रभावित करता है।
- गरिमा:
- प्रत्येक व्यक्ति को गरिमा के साथ मरने में सक्षम होना चाहिये।
- साधन:
- यह अत्यधिक कुशल कर्मचारियों, उपकरणों, अस्पताल के बिस्तरों, और दवाओं जैसे संसाधन जीवन रक्षक उपचारों की दिशा में उन लोगों के लिये अधिक उपयुक्त है जो जीवित रहना चाहते हैं, न कि उन लोगों के लिये जो जीना नहीं चाहते हैं।
- मानवीय:
- यह अधिक मानवीय है कि किसी व्यक्ति को उस पीड़ा को समाप्त करने के लिये चुनने की अनुमति दी जाए या उसे असाध्य पीड़ा हो।
- प्रियजन:
- यह प्रियजनों के दुख और पीड़ा को कम करने में मदद कर सकता है।
- चयन का अधिकार:
- विपक्ष:
- नैतिक और धार्मिक तर्क:
- कई धर्म यूथनेशिया को हत्या और नैतिक रूप से अस्वीकार्य के रूप में देखते हैं। कुछ धर्मों में आत्महत्या भी "अवैध" है। नैतिक रूप से, एक तर्क है कि यूथनेशिया जीवन की पवित्रता के लिये समाज के सम्मान को कमज़ोर कर देगी।
- रोगी क्षमता:
- यूथनेशिया केवल स्वैच्छिक है यदि रोगी उपलब्ध विकल्पों और परिणामों की स्पष्ट समझ के साथ मानसिक रूप से सक्षम है तथा उस समझ को व्यक्त करने की क्षमता एवं अपने स्वयं के जीवन को समाप्त करने की उसकी इच्छा है। क्षमता का निर्धारण या इसे परिभाषित करना सरल नहीं है।
- अपराध बोध:
- मरीज़ो को लग सकता है कि वे संसाधनों पर बोझ हैं और मनोवैज्ञानिक रूप से सहमति के लिये दबाव डाला जाता है। उन्हें लग सकता है कि उनके परिवार पर आर्थिक, भावनात्मक और मानसिक बोझ बहुत अधिक है।
- जोखिम:
- यहाँ एक जोखिम है कि चिकित्सक असिस्टेड सुसाइड उन लोगों के लिये उपयोग करते हैं जो गंभीर रूप से बीमार हैं और असहनीय पीड़ा के कारण, यूथनेशिया चाहते हैं, लेकिन बाद में इसका दुर्पयोग भी किया जा सकता है।
- विनियमन: यूथनेशिया को ठीक से विनियमित नहीं किया जा सकता है।
- नैतिक और धार्मिक तर्क:
भारत असिस्टेड सुसाइड या यूथनेशिया की अनुमति:
- एक ऐतिहासिक फैसले में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने 2018 में निष्क्रिय/पैसिव यूथनेशिया को यह कहते हुए वैध कर दिया कि यह 'जीवित इच्छा' का मामला था।
- निर्णय के अनुसार, अपने चेतन मन में एक वयस्क को चिकित्सा उपचार से इनकार करने या कुछ शर्तों के तहत प्राकृतिक तरीके से मृत्यु को प्राप्त करने के लिये स्वेच्छा से चिकित्सा उपचार नहीं लेने का निर्णय करने की अनुमति है।
- न्यायालय ने 'लिविंग विल' के लिये दिशा-निर्देशों का एक सेट निर्धारित किया और निष्क्रिय यूथनेशिया तथा यूथनेशिया को भी परिभाषित किया।
- इसने मानसिक रूप से बीमार रोगियों द्वारा बनाए गए 'लिविंग विल' के लिये दिशा-निर्देश भी निर्धारित किये, जो पहले से ही स्थायी वेजेटेटिव स्टेट (vegetative state) में जाने की संभावना के बारे में जानते हैं।
- न्यायालय ने विशेष रूप से कहा कि ऐसे मामलों में रोगी के अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार) के दायरे से बाहर नहीं होंगे।
- सर्वोच्च न्यायालय का फैसला मार्च 2011 में एक अलग याचिका पर अपने फैसले के अनुसार था।
- अरुणा शानबाग की ओर से दाखिल एक याचिका पर फैसला सुनाते हुए न्यायालय ने उस नर्स के लिये निष्क्रिय यूथनेशिया की अनुमति दी थी, जिसने दशकों तक एक वनस्पति अवस्था में बिताया था। शानबाग केस भारत में मरने के अधिकार और यूथनेशिया की वैधता पर बहस का केंद्र बन गया था।
- एक वेजेटेटिव स्टेट तब होती है जब कोई व्यक्ति जाग रहा होता है लेकिन जागरूकता के कोई लक्षण नहीं दिखाई देते हैं।
- हालाँकि वर्ष 2014 में सर्वोच्च न्यायालय की एक अन्य पीठ ने निष्क्रिय यूथनेशिया पर पहले के फैसलों में विसंगतियों का हवाला दिया, जिसमें शानबाग मामले में दिये गए कुछ निर्णय भी शामिल था और इन मामले को एक संविधान पीठ के पास भेज दिया।