भारतीय इतिहास
असम का जेरेंगा पोथर और ढेकियाजुली टाउन
- 09 Feb 2021
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चर्चा में क्यों?
हाल ही में प्रधानमंत्री ने असम में दो महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थानों का दौरा किया है।
- पहला ऐतिहासिक स्थान असम के शिवसागर का जेरेंगा पोथर है, जहाँ 17वीं शताब्दी में अहोम राजकुमारी जॉयमती ने अपने जीवन का बलिदान दिया था।
- दूसरा ऐतिहासिक स्थान असम का ढेकियाजुली टाउन है, जो कि वर्ष 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन से संबंधित है।
प्रमुख बिंदु
जेरेंगा पोथर
- शिवसागर शहर का एक खुला मैदान जेरेंगा पोथर, 17वीं शताब्दी की अहोम राजकुमारी जॉयमती की वीरता के लिये काफी लोकप्रिय है।
- पूर्व में रंगपुर के नाम से प्रसिद्ध, शिवसागर शक्तिशाली अहोम वंश का प्रतिनिधित्व करता है, जिसने छह शताब्दियों (1228-1826) तक असम पर शासन किया था।
- अहोम राज्य वंश की स्थापना छो लुंग सुकफा ने की थी।
- वर्ष 1671 से वर्ष 1681 तक अहोम साम्राज्य राजनैतिक उथल-पुथल के दौर से गुज़र रहा था, इसी समय अहोम साम्राज्य के राजकुमार गोदापानी (जॉयमती के पति) दुश्मनों के हाथों पकड़े जाने से पूर्व ही नागा हिल्स भाग गए थे।
- हालाँकि राजकुमार गोदापानी के दुश्मनों ने उनकी पत्नी राजकुमारी जॉयमती को इस उम्मीद में पकड़ लिया कि वह राजकुमार गोदापानी के ठिकाने का पता बता देगी, लेकिन कई दिनों तक एक खुले मैदान में कांटेदार पौधे से बाँधे जाने और यातना के बावजूद राजकुमारी जॉयमती ने दुश्मनों को किसी भी प्रकार की सूचना देने से इनकार कर दिया।
- अंततः उन्होंने पति के लिये अपने जीवन का बलिदान कर दिया, राजकुमार गोदापानी असम के राजा बने और असम में स्थिरता और शांति के युग की शुरुआत हुई।
- राजकुमारी जॉयमती की मृत्यु शिवसागर शहर के जेरेंगा पोथर मैदान में हुई थी।
- स्थान का महत्त्व
- जेरेंगा पोथर स्वयं में एक संरक्षित पुरातात्त्विक स्थल नहीं है, हालाँकि इसके आसपास के क्षेत्र में कई संरक्षित स्थल हैं, इसके पूर्व में ना पुखुरी टैंक स्थित है, जबकि पश्चिम में पोहु गढ़ है, जिसे अहोम युग के दौरान बनाया गया एक प्राकृतिक चिड़ियाघर है।
- इसके पास ही एक बड़ा जोयसागर तालाब है, जिसे वर्ष 1697 में अहोम राजा स्वर्गदेव रूद्र सिंहा ने बनवाया था, साथ ही यहाँ विष्णु डोल मंदिर भी है।
- वर्ष 2017 में इस क्षेत्र का उपयोग शीर्ष और प्रभावशाली साहित्यिक निकाय, असम साहित्य सभा के शताब्दी समारोह के लिये भी किया गया था।
ढेकियाजुली टाउन
- कई जानकार मानते हैं कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सबसे कम उम्र के शहीद संभवतः असम के ढेकियाजुली टाउन से ही थे।
- 20 सितंबर, 1942 को भारत छोड़ो आंदोलन के हिस्से के रूप में असम के स्वतंत्रता सेनानियों के जुलूसों ने असम के कई शहरों में विभिन्न पुलिस स्टेशनों तक मार्च का आह्वान किया था।
- ‘मृत्यु बाहिनी’ के नाम से प्रसिद्ध इन समूहों में महिलाओं और बच्चों सहित लोगों की व्यापक भागीदारी रही और ये लोग औपनिवेशिक सत्ता के प्रतीक के रूप में देखे जाने वाले पुलिस स्टेशनों पर तिरंगा फहराने के उद्देश्य से आगे बढ़ रहे थे।
- हालाँकि ब्रिटिश प्रशासन ने उन लोगों के विरुद्ध हिंसा का प्रयोग किया, जिसमें अकेले ढेकियाजुली टाउन में कम-से-कम 15 लोगों की गोली से मृत्यु हो गई, इनमें तीन महिलाएँ थीं, जिसमें 12 वर्षीय तिलेश्वरी बरुआ भी शामिल थीं।
- तिलेश्वरी बरुआ को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सबसे कम उम्र के शहीदों में से एक के रूप में जाना जाता है।
- यही कारण है कि ढेकियाजुली टाउन में 20 सितंबर को शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है।