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असम मवेशी संरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2021

  • 07 May 2022
  • 6 min read

प्रिलिम्स के लिये:

राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत (अनुच्छेद 48)

मेन्स के लिये:

गाय संरक्षण कानून, असम मवेशी संरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2021

चर्चा में क्यों?

हाल ही में एक गाय संरक्षण कानून (असम मवेशी संरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2021) जिसे असम ने एक साल पहले लागू किया था, ने मेघालय में एक तीव्र बीफ संकट पैदा कर दिया है।

  • यह ध्यान रखना महत्त्वपूर्ण है कि अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, मिज़ोरम और नगालैंड जैसे उत्तर-पूर्वी राज्यों में मवेशियों के वध को नियंत्रित करने वाला ऐसा कोई कानून नहीं है।

अधिनियम से जुड़ी प्रमुख विशेषताएँ और चुनौतियाँ:

प्रमुख विशेषताएँ प्रमुख चुनौतियाँ
  • यह अधिनियम गायों के वध पर रोक लगाता है।
  • यह अन्य मवेशियों (बैल, साँड़ और भैंस) के वध की अनुमति देता है, यदि मवेशी 14 वर्ष से अधिक उम्र के हैं या चोट या विकृति के कारण स्थायी रूप से अक्षम हो गए हैं।
  • यह अनुमति वाले स्थानों को छोड़कर मवेशियों के अंतर-राज्य और अंतर-राज्यीय परिवहन तथा गोमांस की बिक्री को भी प्रतिबंधित करता है।
  • संबंधित प्राधिकरण अधिनियम के तहत अपराधों के लिये इस्तेमाल किये गए मवेशियों और वाहनों का निरीक्षण व ज़ब्ती कर सकता है
  • दोष सिद्ध होने पर ज़ब्त किये गए मवेशियों और वाहनों को राज्य सरकार को सौंप दिया जाएगा।
  • अधिनियम असम के माध्यम से परिवहन पर प्रतिबंध के कारण भारत के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में मवेशियों के परिवहन को अनुचित रूप से सीमित करता है।
  • अधिनियम असम से उन राज्यों में पशु परिवहन को प्रतिबंधित करता है जहाँ पशु वध को विनियमित नहीं किया गया है।
  • अभियुक्त के लिये सुनवाई के दौरान ज़ब्त मवेशियों के रखरखाव की लागत का भुगतान करने की आवश्यकता कठिन हो सकती है।
  • उन जगहों पर प्रतिबंध जहांँ गोमांस बेचा जा सकता है, वास्तव में पूरे राज्य में गोमांस की बिक्री पर प्रतिबंध के समान और बहुत व्यापक हो सकता है ,

गौ वध पर प्रतिबंध क्यों?

  • संविधान के तहत राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत (अनुच्छेद 48) में प्रावधान है कि राज्य कृषि और पशुपालन को आधुनिक और वैज्ञानिक तर्ज पर संगठित करने का प्रयास करेगा, नस्लों में सुधार के लिये कदम उठाएगा और गायों, बछड़ों तथा अन्य दुधारू पशुओं के वध पर रोक लगाएगा व पशु मसौदा तैयार करेगा।
  • इसी क्रम में 20 से अधिक राज्यों ने मवेशियों (गायों, बैल तथा साँड़) तथा भैंसों के वध को विभिन्न स्तर तक सीमित करने वाले कानून पारित किये हैं।

न्यायपालिका की राय:

  • समय के साथ इन राज्य कानूनों के तहत निषेध की सीमा सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों द्वारा निर्देशित की गई है।
    • इससे पहले मध्य प्रदेश (1949), बिहार (1955) और उत्तर प्रदेश (1955) जैसे राज्यों के कानूनों ने मवेशियों के वध पर पूरी तरह से रोक लगा दी थी।
  • वर्ष 1958 में इन तीन कानूनों की जाँच करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि मवेशियों के वध पर पूर्ण प्रतिबंध कसाई के अपने व्यापार या पेशे का अभ्यास करने के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है।
    • यह माना गया कि जबकि गायों के वध पर पूर्ण प्रतिबंध संवैधानिक रूप से मान्य था, बैल, साँङ और भैंस के वध पर प्रतिबंध केवल एक निश्चित सीमा तक ही हो सकता है, या उनकी उपयोगिता (दूध, प्रजनन के लिये) पर आधारित हो सकता है। 
  • वर्ष 1994 में गुजरात ने सभी उम्र के साँङ और बैलों के वध पर रोक लगाने के लिये एक संशोधित कानून पारित किया।
  • वर्ष 2005 में सुप्रीम कोर्ट की सात न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने न्यायालयों के पूर्व के निर्णयों के विपरीत गुजरात संशोधन कानून के तहत साँड़ों (Bulls) और बैलों (Bullocks) के वध पर पूर्ण प्रतिबंध को बरकरार रखा।
  • हाल के वर्षों में छत्तीसगढ़ (2004), मध्य प्रदेश (2004), महाराष्ट्र (2015), हरियाणा (2015) और कर्नाटक (2021) जैसे राज्यों ने भी सभी उम्र के साँड़ों और बैलों के वध पर प्रतिबंध लगा दिया है।

गाय संरक्षण हेतु पहल:

स्रोत: द हिंदू

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