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भारतीय विरासत और संस्कृति

शांति के लिये एशियाई बौद्ध सम्मेलन

  • 25 Jan 2024
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये:

शांति के लिये एशियाई बौद्ध सम्मेलन की 12वीं महासभा, ABCP का मुख्यालय, भारत अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध संस्कृति केंद्र, चार आर्य सत्य, बुद्ध के अष्टांगिक मार्ग, गौतम बुद्ध

मेन्स के लिये:

सुशासन के सिद्धांतों और बौद्ध शिक्षाओं का अभिसरण, वर्तमान चुनौतियों से निपटने में बुद्ध की शिक्षाओं का महत्त्व

स्रोत: पी.आई.बी

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में एशिया में बौद्ध अनुयायियों के एक स्वैच्छिक जनआंदोलन, शांति के लिये एशियाई बौद्ध सम्मेलन (Asian Buddhist Conference for Peace- ABCP) ने नई दिल्ली में अपनी 12वीं महासभा का आयोजन किया।

12वीं ABCP महासभा की प्रमुख झलकियाँ विशेषताएँ क्या हैं? 

    • थीम/विषयवस्तु: ABCP- द बुद्धिस्ट वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ, यह थीम यह भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाती है, जैसा कि इसकी G20 अध्यक्षता और वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ समिट के माध्यम से पता चलता है।
    • बुद्ध की विरासत के प्रति भारत की प्रतिबद्धता: महासभा में भारत को बुद्ध के सिद्धांतों द्वारा निर्देशित राष्ट्र के रूप में चित्रित किया गया।
    • बुद्ध के प्रभाव की संवैधानिक मान्यता: भारतीय संविधान की कलाकृति में भगवान बुद्ध के चित्रण को महत्त्व दिया गया है, विशेष रूप से भाग V में, जहाँ उन्हें संघ शासन से संबंधित अनुभाग में चित्रित किया गया है।

    शांति के लिये एशियाई बौद्ध सम्मेलन (ABCP) क्या है? 

    • परिचय: ABCP की स्थापना वर्ष 1970 में मंगोलिया के उलानबटार में बौद्ध धर्म के अनुयायियों [मठवासी (भिक्षुओं) और आम जन दोनों) के एक स्वैच्छिक आंदोलन के रूप में की गई थी।
      • तब ABCP भारत, मंगोलिया, जापान, मलेशिया, नेपाल, तत्कालीन USSR, वियतनाम, श्रीलंका, दक्षिण और उत्तर कोरिया के बौद्ध गणमान्य व्यक्तियों के एक सहयोगात्मक प्रयास के रूप में उभरा।
    • मुख्यालय: उलानबटार, मंगोलिया में गंडानथेगचेनलिंग (Gandanthegchenling) मठ।
      • मंगोलियाई बौद्धों के सर्वोच्च प्रमुख ABCP के वर्तमान अध्यक्ष हैं।
    • ABCP के उद्देश्य: 
      • एशिया के लोगों के बीच सार्वभौमिक शांति, सद्भाव और सहयोग को मज़बूती प्रदान करने हेतु बौद्ध अनुयायियों के प्रयासों को एक साथ लाना।
      • उनकी आर्थिक और सामाजिक उन्नति को प्रोत्साहित करना तथा न्याय एवं मानवीय गरिमा के प्रति सम्मान को बढ़ावा देना।
      • बौद्ध संस्कृति, परंपरा और विरासत का प्रसार करना।

    किस प्रकार बौद्ध शिक्षाएँ सुशासन के सिद्धांतों के अनुरूप हैं?

    • नीति निर्माण में सम्यक् दृष्टि: विकृति और भ्रम से दूर रहते हुए, सम्यक् दृष्टि पर बुद्ध का ज़ोर, पारदर्शिता, निष्पक्षता तथा साक्ष्य-आधारित निर्णय लेने के सुशासन सिद्धांतों के अनुरूप है।
      • उदाहरण के लिये, बौद्ध धर्म के मूल्यों से प्रेरित भूटान का सकल राष्ट्रीय प्रसन्नता सूचकांक (Gross National Happiness index), केवल आर्थिक संकेतकों से परे सार्वजनिक कल्याण को मापने का उद्देश्य रखता है।
    • नेतृत्व में सम्यक् आचरण: बुद्ध के पंचशील सिद्धांतों– अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य और नशा न करना, की व्याख्या सार्वजनिक अधिकारियों के लिये नैतिक दिशा-निर्देशों के रूप में की जा सकती है।. 
    • करुणाशील शासन: बुद्ध की करुणा की मूल शिक्षा नेतृत्वकर्त्ताओं को केवल कुछ समूहों की नहीं, बल्कि सभी नागरिकों की आवश्यकताओं व पीड़ा पर विचार करने के लिये प्रोत्साहित करती है।
      • उदाहरण के लिये, सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल या निष्पक्ष कराधान नीतियों जैसी पहल मन में करुणा के साथ शासन करने के प्रयास को दर्शाती हैं।
    • संवाद और अहिंसक संघर्ष समाधान: सम्यक् भाषण और सम्यक् कार्रवाई पर बुद्ध का ज़ोर सम्मानजनक संचार एवं संघर्ष के अहिंसक समाधान को बढ़ावा देता है।
      • इसे अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति, अंतर-धार्मिक संवाद और यहाँ तक कि आंतरिक राजनीतिक चर्चाओं में भी लागू किया जा सकता है।

    बुद्ध की शिक्षाएँ वर्तमान चुनौतियों से निपटने में कैसे मदद कर सकती हैं?

    • नैतिक अनिश्चितता के लिये दिशा-निर्देश: नैतिक अनिश्चितता से भरे युग में, बुद्ध की शिक्षाएँ सभी जीवों के लिये स्थिरता/धारणीयता, सरलता, संयम और श्रद्धा का मार्ग प्रदान करती हैं।
      • चार आर्य सत्य और अष्टांगिक मार्ग एक परिवर्तनकारी रोडमैप के रूप में कार्य करते हैं, जो व्यक्तियों एवं राष्ट्रों का मार्गदर्शन कर उन्हें आंतरिक शांति, करुणा और अहिंसा की ओर प्रेरित करते हैं।
    • विचलित होते विश्व में सचेतना: डिजिटल रूप से निरंतर परिवर्तनशील युग में, बुद्ध का सचेतन मन पर ज़ोर पूर्व की तुलना में कहीं अधिक मार्मिक है।
      • ध्यान-योग जैसे अभ्यास हमें सूचना के अधिभार से बाहर निकलने, तनाव को कम करने और बिखरी हुई दुनिया में ध्यान केंद्रित करने में मदद करते हैं।
    • एक ध्रुवीकृत समाज में करुणा: बढ़ते सामाजिक और राजनीतिक तनाव के साथ, करुणा एवं प्रज्ञा (Understanding) पर बुद्ध की शिक्षाएँ एक महत्त्वपूर्ण प्रतिकार प्रदान करती हैं।
      • सभी प्राणियों के बीच अंतर्संबंध को मान्यता देने पर उनका ज़ोर सहानुभूतिपूर्ण संचार और रचनात्मक संघर्ष समाधान को प्रोत्साहित करता है।
    • सब कुछ या कुछ भी नहीं संस्कृति में मध्यम मार्ग: भोग और इनकार की चरम सीमा से बचने के लिये बुद्ध की मध्यम मार्ग की अवधारणा, हमारे उपभोक्तावादी समाज में प्रतिध्वनित होती है।
      • यह व्यक्तिगत इच्छाओं औउत्तरदायी जीवन के बीच संतुलन स्थापित कर, समुचित उपभोग को प्रोत्साहित करता है।

      UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

    प्रिलिम्स:

    प्रश्न. भारत के धार्मिक इतिहास के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)

    1. स्थाविरवादी महायान बौद्ध धर्म से संबद्ध हैं।  
    2. लोकोत्तरवादी संप्रदाय बौद्ध धर्म के महासंघिक संप्रदाय की एक शाखा थी।  
    3. महासंधिकों द्वारा बुद्ध के देवत्वारोपण ने महायान बौद्ध धर्म को प्रोत्साहित किया। 

    उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? 

    (a) केवल 1 और 2
    (b) केवल 2 और 3
    (c) केवल 3
    (d) 1, 2 और 3

    उत्तर: (b)


    प्रश्न. भारत के धार्मिक इतिहास के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2016)

    1. बोधिसत्व, बौद्ध मत के हीनयान संप्रदाय की केंद्रीय संकल्पना है। 
    2. बोधिसत्व अपने प्रबोध के मार्ग पर बढ़ता हुआ करुणामय है। 
    3. बोधिसत्व समस्त सचेतन प्राणियों को उनके प्रबोध के मार्ग पर चलने में सहायता करने के लिये स्वयं की निर्वाण प्राप्ति विलंबित करता है।

    उपर्युक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं? 

    (a) केवल 1
    (b) केवल 2 और 3
    (c) केवल 2
    (d) 1, 2 और 3

    उत्तर: (b)


    मेन्स

    प्रश्न. भारत में बौद्ध धर्म के इतिहास में पाल काल अति महत्त्वपूर्ण चरण है। विश्लेषण कीजिये। (2020)

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