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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

आसियान देशों की दक्षिण चीन सागर पर चेतावनी

  • 27 Jun 2020
  • 8 min read

प्रीलिम्स के लिये: 

आसियान, दक्षिण चीन सागर 

मेन्स के लिये: 

दक्षिण चीन सागर में चीन की गतिविधियों का वैश्विक परिदृश्य के साथ-साथ  भारत पर  प्रभाव 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘आसियान देशों’ (ASEAN Countries) द्वारा आसियान शिखर सम्मेलन में दक्षिण चीन सागर में चीन की आक्रामक गतिविधियों को लेकर चेतावनी दी गई है।

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मुख्य बिंदु

  • दक्षिण पूर्व एशिया में बढ़ती असुरक्षा को लेकर ऑनलाइन दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के सम्मेलन के माध्यम से एकजुटता दिखाते हुए वियतनाम और फिलीपींस ने चीन को कहा कि COVID-19 के संकट के दौरान कोई भी देश दक्षिण चीन सागर में खतरा पैदा करने वाली गतिविधियों को बढ़ावा न दे।
  • वियतनाम और फिलीपींस विवादित दक्षिण चीन सागर में चीन की एकतरफा कार्यवाही द्वारा द्वीपों पर नियंत्रण की कोशिश को लेकर पहले ही अपना विरोध दर्ज करा चुके हैं।
  • वियतनाम और फिलीपींस द्वारा भी अप्रैल में चीन की इस कार्यवाही के खिलाफ आपत्ति दर्ज़ की गई थी  क्योंकि चीन द्वारा एकतरफा रूप से  उन अशांत जलमार्गों में द्वीपों पर नए प्रशासनिक ज़िलों के निर्माण की घोषणा की गई थी, जिन पर वियतनाम और फिलीपींस के भी अपने दावे प्रस्तुत करते हैं।

दक्षिण चीन सागर की भौगोलिक स्थिति: 

  • दक्षिण चीन सागर प्रशांत महासागर के पश्चिमी किनारे से सटा हुआ और एशिया के दक्षिण-पूर्व में स्थित है।
  • यह चीन के दक्षिण में स्थित एक सीमांत सागर है जो सिंगापुर से लेकर ताइवान की खाड़ी तक लगभग 3.5 मिलियन वर्ग किमी क्षेत्र में विस्तृत है और इसमें स्पार्टली और पार्सल जैसे द्वीप समूह शामिल हैं।
  • इसके आस-पास इंडोनेशिया का करिमाता, मलक्का, फारमोसा जलडमरूमध्य और मलय व सुमात्रा प्रायद्वीप आते हैं। दक्षिण चीन सागर का दक्षिणी भाग चीन की मुख्य भूमि को स्पर्श करता है, तो वहीं इसके दक्षिण–पूर्वी हिस्से पर ताइवान की दावेदारी है।
  • दक्षिण चीन सागर का पूर्वी तट वियतनाम और कंबोडिया से सीमा बनता है। पश्चिम में फिलीपींस है, तो दक्षिण चीन सागर के उत्तरी इलाके में इंडोनेशिया के बंका व बैंतुंग द्वीप हैं। 

दक्षिण चीन सागर में विवाद के कारण: 

  • इस क्षेत्र में  विवाद का मुख्य कारण समुद्र पर विभिन्न क्षेत्रों का दावा और समुद्र का क्षेत्रीय सीमांकन है।
  • चीन दक्षिण-चीन सागर के 80% हिस्से को अपना मानता है। यह एक ऐसा समुद्री क्षेत्र जहाँ प्राकृतिक तेल और गैस प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है।
  • एक रिपोर्ट के अनुसार इसकी परिधि में करीब 11 अरब बैरल प्राकृतिक गैस और तेल तथा मूंगे के विस्तृत भंडार मौजूद हैं। 
  • मछली व्यापार में शामिल देशों के लिये यह जल क्षेत्र महत्त्वपूर्ण तो है ही साथ ही इसकी भौगोलिक स्थिति के कारण इसका सामरिक महत्त्व भी बढ़ जाता है। जिस कारण भी चीन  इस क्षेत्र में अपना प्रभुत्व कायम रखना चाहता है।  

आसियान देशों द्वारा दक्षिण चीन सागर में चीन के विरोध का कारण : 

  • अप्रैल, 2020 में चीन द्वारा विवादित दक्षिण चीन सागर में पैरासेल आइलैंड के पास वियतनाम के एक  मछली पकड़ने वाले पोत को डुबो दिया है।
  • पारसेल को वियतनाम और ताइवान दोनों अपना हिस्सा मानते हैं। चीन के इस कदम पर प्रतिक्रिया देते हुए वियतनाम द्वारा इसे ‘अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन’ बताया गया। 
  • इसके आलावा चीन द्वारा फिलीपींस के अधिकार क्षेत्र में आने वाले हिस्से को अपने हैनान प्रांत का ज़िला घोषित कर दिया गया था।

दक्षिण चीन सागर में भारत की भूमिका: 

  • भारत स्पष्ट रूप से ‘यूनाइटेड नेशंस कन्वेंशन ऑफ द लॉ ऑफ द सी , 1982’ (United Nations Convention on the Law of the Sea) के सिद्धांतो के आधार पर दक्षिण चीन सागर में स्वतंत्र व निर्बाध जल परिवहन का समर्थन करता है। 
  • भारत का यह भी मानना है कि दक्षिण चीन सागर विवाद में शामिल क्षेत्र के सभी देशों को किसी भी प्रकार की धमकी और बल प्रयोग किये बिना आपसी विवादों को हल करना चाहिये, क्योंकि यदि ऐसा नहीं होता है तो न चाहते हुए भी जटिलताएँ पैदा हो जाएंगी और क्षेत्र की शांति व स्थिरता को खतरा पैदा हो जाएगा। 
  • भारत, वियतनाम और फिलीपींस जैसे देशों के साथ सैन्य साज़ो सामान के आयात-निर्यात की गतिविधियों को बढ़ा रहा है। इस प्रकार भारत पूर्वी एशिया खासतौर पर चीन के साथ विवाद में उलझे हुए देशों के महत्त्वपूर्ण सैन्य भागीदार के रूप में उभर सकता है। 
  • दक्षिण चीन सागर विवाद को भारत के लिये पूर्वी एशियाई पड़ोसियों के साथ रिश्ते सुधारने के महत्त्वपूर्ण मौके के रूप में देखा जा रहा है।
  • अमेरिका के साथ मिलकर भारत इस क्षेत्र के लोगों की क्षमताओं में वृद्धि करने में सहायता कर  सकता है तथा इस प्रकार इस क्षेत्र में चीन की बढ़ रही आक्रामक भूमिका को संतुलित करने में भारत-अमेरिका का महत्त्वपूर्ण भागीदार बन सकता है।   

निष्कर्ष:

वर्तमान वैश्विक परिदृश्य में चीन के इस कार्य को राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से आसियान देशों द्वारा गैर ज़िम्मेदार कदम बताकर आलोचना की गई है। पूरा विश्व जब महामारी के खिलाफ एकजुट खड़ा है, ऐसे में दक्षिण चीन सागर में कोई भी कार्यवाही अंतर्राष्ट्रीय कानून के उल्लंघन के साथ-साथ कुछ क्षेत्रों में सुरक्षा और स्थिरता को और अधिक बढ़ा सकती है। ऐसे समय में चीन पर सामरिक एवं आर्थिक कूटनीतिक दवाब बनाकर विवाद को बढ़ने से रोकने की आवश्यकता है । इन सबके साथ ही अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का सख्ती से पालन करने की भी आवश्यक है।   

स्रोत: द हिंदू

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