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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

अमरीका के टीपीपी को नकारते हुए कनाडा द्वारा भारत के साथ समझौतों पर ज़ोर

  • 28 Feb 2017
  • 5 min read

पृष्ठभूमि

हाल ही में कनाडा द्वारा भारत को एक प्रस्तावित द्विपक्षीय मुक्त व्यापार समझौते (Free Trade Agreement - FTA) के संबंध में तेज़ी लाने को कहा गया है| वस्तुतः यह कनाडा के एशिया के साथ अपने संबंधों को बढ़ावा देने की नीति का ही एक भाग है| विदित हो कि अमेरिका के नव नियुक्त राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने सत्तासीन होते ही टीपीपी (Trans Pacific Partnership - TPP), जैसी महत्त्वाकांक्षी साझेदारी को खत्म करने का निर्णय लिया था| ध्यातव्य है कि कनाडा इस साझेदारी का एक अहम भाग था|    

प्रमुख बिंदु

  • गौरतलब है कि एफटीए को बढ़ावा देने के उद्देश्य से कनाडाई सरकार ने भारत के साथ वार्ता की पहल आरम्भ की हैं जिसे सीईपीए (Comprehensive Economic Partnership Agreement – CEPA) कहा गया है| 
  • हालाँकि बीआईटी मॉडल में निहित प्रावधानों में कनाडा द्वारा प्रस्तावित सुधारों को लागू करने के संबंध में भारतीय खेमे में अभी शंका का माहौल बना हुआ है| 
  • कनाडा चाहता है कि बीआईटी में निहित प्रावधानों को निवेशकों के लिये और अधिक सुविधाजनक बनाया जाए|
  • हालाँकि यहाँ स्पष्ट कर देना अत्यंत आवश्यक है कि बीआईटी सीईपीए से पूरी तरह से अलग है| कनाडाई सरकार चाहती है कि इन दोनों को एक साथ संबद्ध करके हस्ताक्षरित किया जाए| 
  • इसमें कोई संदेह नहीं कि कनाडा का यह रुख इस बात की ओर इशारा करता है कि कनाडा सरकार अमेरिका द्वारा टीपीपी को वापस लेने के उपरांत इस संबंध में अधिक गंभीर हो गई हैं|
  • ध्यातव्य है कि टीपीपी के विफल होने के उपरांत कनाडाई सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि यह एक खुली अर्थव्यवस्था है| एक ऐसी अर्थव्यवस्था जो कि चीन, भारत तथा जापान के साथ व्यापार करने के लिये पूरी तरह से तैयार है|

निवेश के स्रोत

  • ध्यातव्य है कि भारत कनाडा के साथ व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौते (CEPA) करने में अत्यधिक रुचि रखता है क्योंकि इस समझौते पर हस्ताक्षर होते ही कनाडा भारत के लिये निवेश का एक बड़ा स्रोत साबित होगा|
  • हालाँकि अभी इस संबंध में शंका बनी हुई है कि आधुनिक द्विपक्षीय निवेश समझौते के प्रावधानों में किस सीमा तक बदलाव किये जाएंगे|
  • वहीं दूसरी ओर कनाडा के समक्ष आधुनिक द्विपक्षीय निवेश समझौते में सबसे बड़ी समस्या आईएसडीएस (Investor-State Dispute Settlement-ISDS) तंत्र से निपटने की है|
  • ध्यातव्य है कि भारत के वित्त मंत्रालय द्वारा इस तंत्र की स्थापना भारत को अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता के विरुद्ध संरक्षण प्रदान करने के लिये की गई है| 
  • उल्लेखनीय है कि आईएसडीएस के अनुसार, विदेशी कम्पनियाँ अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता की ओर रुख तभी कर सकती हैं जब उनकी समस्याओं का समाधान करने के सभी घरेलू मार्ग उनके लिये बंद हो जाएँ|

वृहद क्षमता  

  • स्पष्ट रूप से यह भारत के लिये एक मुश्किल स्थिति है क्योंकि भविष्य में भारत को अन्य देशों के साथ भी व्यापार और निवेश समझौतों पर हस्ताक्षर करने हैं| ऐसे में किसी एक की मांग को स्वीकार किया जाना भविष्य में अनेक चुनौतियों को आधार प्रदान करेगा|
  • ध्यातव्य है कि विगत दो वर्षों में अकेले कनाडा की कम्पनियों द्वारा 12 बिलियन डॉलर से अधिक का निवेश किया जा चुका है|
  • एक अनुमान के अनुसार, कनाडा की भारत के लिये बहुत उपयोगिता है क्योंकि वर्ष 2015 में इस देश से होने वाले निर्गत निवेशों की राशि 750 बिलियन डॉलर से अधिक थी|
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