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तापमान में वृद्धि होने से दक्षिण एशिया के लोगों पर अधिक खतरा

  • 13 Jul 2018
  • 3 min read

संदर्भ

हाल ही में विश्व बैंक की एक रिपोर्ट में कहा गया है  कि पिछले छह दशकों में औसत तापमान बढ़ गया है और दक्षिण एशिया में यह प्रवृत्ति लगातार जारी है। इसका प्रभाव विशेष रूप से भारत पर अधिक पड़ने की संभावना है,  जहाँ 75% आबादी कृषि पर निर्भर है और जो जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के लिये सबसे संवेदनशील क्षेत्रों में से एक है।

प्रमुख बिंदु 

  • इस रिपोर्ट के मुताबिक  800 मिलियन से अधिक लोग यानी दक्षिण एशिया की आधी से अधिक जनसंख्या, वर्तमान में उन क्षेत्रों में रहती है जिनका 2050 तक कार्बन-सघन परिदृश्य के अंतर्गत मध्यम हॉट स्पॉट के रूप में होने का अनुमान लगाया जाता है।
  • समुद्री जल स्तर के बढ़ने और उष्णकटिबंधीय तूफानों में बदलाव के चलते निम्न तटीय इलाकों के लिये अधिक जोखिमपूर्ण स्थिति होगी, जबकि बर्फ के पिघलने, हिमनद और प्राकृतिक आपदाओं के कारण पर्वतीय क्षेत्रों को भी अधिक जोखिमपूर्ण स्थिति का सामना करना पड़ सकता  है।
  • भारत का औसत वार्षिक तापमान वर्ष 2050 तक 1 डिग्री सेल्सियस से 2 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ने की उम्मीद है, भले ही वर्ष 2015 के पेरिस जलवायु परिवर्तन समझौते की सिफारिश के अनुसार निवारक उपाय किये जाएँ।
  • रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि कोई उपाय नहीं किये जाते हैं तो औसत तापमान के 1.5 डिग्री सेल्सियस से 3 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ने की उम्मीद है।
  • वैज्ञानिकों के हाल ही के शोध के मुताबिक, औसत तापमान में वृद्धि और मौसमी वर्षा पैटर्न में परिवर्तन पहले से ही संपूर्ण भारत की कृषि पर असर डाल रहा है।
  • तापमान और वर्षा में बदलाव की वजह से चावल और गेहूँ जैसी प्रमुख फसलों की उपज पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
  • नए अध्ययनों के मुताबिक, दक्षिण एशिया के क्षेत्रों पर इसका प्रभाव संभावित रूप से सब्जियों और फलियों के उत्पादन में पर भी पड़ रहा है।
  • सिंचाई पानी की खपत का एक प्रमुख कारक बनती है, जिससे पानी तक पहुँच अन्य उपयोगों के लिये सीमित हो जाती है।
  • इसीलिये कृषि पर नकारात्मक प्रभावों को दूर करने के उपायों में से एक जल की कमी की समस्या को कम करना होगा।
  • वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि जलवायु परिवर्तन से मौसम में चरम परिवर्तन हो सकते हैं और जो खाद्य सुरक्षा के प्रति संवेदनशीलता में वृद्धि करेगा।
  • उल्लेखनीय है कि भारत को वर्ष 2050 तक लगभग 394 मिलियन लोगों के भोजन संबंधी आवश्यकता की पूर्ति करनी होगी।
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