कृत्रिम वर्षा | 11 Mar 2019
चर्चा में क्यों?
कर्नाटक के लगभग 176 ताल्लुका क्षेत्रों में सूखा पड़ने के पश्चात् इस वर्ष हाल ही में कर्नाटक सरकार के ग्रामीण विकास और पंचायत राज विभाग ने मानसून 2019 और 2020 के लिये राज्य में कृत्रिम वर्षा करवाने हेतु निविदाएँ आमंत्रित की है।
प्रमुख बिंदु
- कर्नाटक में सूखे की स्थिति को ध्यान में रखते हुए सरकार कृत्रिम वर्षा के लिये पूर्व में चलाई गई ‘वर्षाधारी’ परियोजना को अपनाएगी।
- क्लाउड सीडिंग मौसम में बदलाव लाने की एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें बादलों से इच्छानुसार वर्षा कराई जा सकती है।
- क्लाउड सीडिंग (Cloud Seeding) के लिये सिल्वर आयोडाइड (Silver Iodide) या ठोस कार्बन डाइऑक्साइड (ड्राई आइस) को विमानों का उपयोग कर बादलों के बहाव के साथ फैला दिया जाता है।
- विमान में सिल्वर आयोडाइड के दो बर्नर या जनरेटर लगे होते हैं, जिनमें सिल्वर आयोडाइड का घोल उच्च दाब (हाई प्रेशर) के साथ भरा होता है।
- जहाँ बारिश करानी होती है वहाँ पर हवा की विपरीत दिशा में इसका छिड़काव किया जाता है।
- कहाँ और किस बादल पर इसे छिड़कने से बारिश की संभावना ज़्यादा होगी, इसका फैसला मौसम वैज्ञानिक करते हैं। इसके लिये मौसम के आँकड़ों का सहारा लिया जाता है।
- कृत्रिम वर्षा की इस प्रक्रिया में बादल के छोटे कण हवा से नमी सोखते हैं और संघनन से उसका द्रव्यमान बढ़ जाता है। इससे जल की भारी बूँदें बनने लगती हैं और वे बरसने लगती हैं।
- क्लाउड सीडिंग का उपयेाग वर्षा में वृद्धि करने, ओलावृष्टि के नुकसान को कम करने, कोहरा हटाने तथा तात्कालिक रूप से वायु प्रदूषण कम करने के लिये भी किया जाता है।
वर्षाधारी परियोजना
- 22 अगस्त, 2017 को कर्नाटक सरकार ने बंगलूरू में कृत्रिम वर्षा के लिये वर्षाधारी परियोजना को आरंभ किया था।
- 2018 में राज्य सरकार को सौंपी गई रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि इस परियोजना से बारिश में 27.9% की वृद्धि हुई है और लिंगमनाकी जलाशय में 2.5 tmcft (Thousand Mllion Cubic Feet) का अतिरिक्त प्रवाह रहा है।
- एक स्वतंत्र मूल्यांकन समिति द्वारा इसे सफल परियोजना घोषित किया गया।