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टीबी के विरुद्ध आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित समाधान

  • 31 Aug 2019
  • 5 min read

चर्चा में क्यों?

तपेदिक (टीबी) के खिलाफ लड़ाई में आधुनिक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (Artificial Intelligence) प्रौद्योगिकी के प्रयोग के तरीके खोजने के लिये स्वास्थ्य मंत्रालय के केंद्रीय टीबी विभाग ने वाधवानी इंस्टीट्यूट फॉर ऑर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (Wadhwani Institute for Artificial Intelligence) के साथ समझौता ज्ञापन (Memorandum of Understanding-MoU) पर हस्ताक्षर किये हैं।

प्रमुख बिंदु

  • इस सहभागिता में वाधवानी AI राष्ट्रीय टीबी कार्यक्रम को ऑर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के लिये तैयार करेगा, जिसमें इसे विकसित करना, मार्गदर्शन करना और AI आधारित समाधान को विस्तार देना शामिल है।
  • यह इस कार्यक्रम को अतिसंवेदनशीलता और हॉट-स्पॉट मैपिंग में मदद देगा।
  • स्क्रीनिंग एवं डायग्नोस्टिक्स के नए तरीकों के प्रतिरूपण और ऑर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की अन्य प्रौद्योगिकियों को अपनाने में RNTCP (Revised National Tuberculosis Control Program) का साथ देने के साथ-साथ देखभाल करने वालों को फैसला लेने में सहायता उपलब्ध कराएगा।

तपेदिक (TB) क्या है?

  • इस रोग को ‘क्षय रोग’ या ‘राजयक्ष्मा’ के नाम से भी जाना जाता है। यह ‘माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस’ नामक बैक्टीरिया से फैलने वाला संक्रामक एवं घातक रोग है। सामान्य तौर पर यह केवल फेफड़ों को प्रभावित करने वाली बीमारी है, परंतु यह मानव-शरीर के अन्य अंगों को प्रभावित कर सकती है।

भारत की प्रतिबद्धता

  • भारत में तपेदिक उन्मूलन के लिये राष्ट्रीय रणनीतिक योजना के 4 स्तंभ हैं, जो तपेदिक नियंत्रण के लिये प्रमुख चुनौतियाँ हैं जिन्हें “पता लगाना, इलाज, रचना और रोकथाम” नाम दिया गया है।

संशोधित राष्ट्रीय टीबी नियंत्रण कार्यक्रम (RNTCP)

  • 26 मार्च, 1997 को संशोधित राष्ट्रीय टीबी नियंत्रण कार्यक्रम (RNTCP) को डॉट्स प्रणाली के साथ शुरू किया गया।
  • यह कार्यक्रम देश के लिये बहुत अच्छा रहा, इसमें इलाज का औसत 85 प्रतिशत रहा और मृत्युदर घटकर पाँच प्रतिशत से भी कम हो गई। 90 प्रतिशत नए स्मीयर रोगियों को डॉट्स (DOTS) के तहत निगरानी में रखा गया।
  • इस कार्यक्रम के तहत प्रतिमाह 1 लाख से भी अधिक रोगियों का इलाज कर, अब तक करीब 15.75 लाख से अधिक लोगों को इस रोग से बचाया जा सका है। वर्तमान में सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्रों पर सप्ताह में तीन दिन दी जाने वाली खुराक के स्थान पर इसे प्रतिदिन देना निर्धारित किया गया है जिसका लक्ष्य टीबी रोगियों को इथैन ब्यूटॉल की प्रतिदिन एक निश्चित खुराक देकर इस रोग पर नियंत्रण पाना है।
  • परंतु, इस कार्यक्रम की भी कुछ सीमाएँ हैं, जिनमें पहली, चूँकि खाँसी कई रोगों का एक बेहद सामान्य लक्षण है इसलिये चिकित्सक तब तक इसकी पहचान टीबी के रूप में नहीं करते जब तक अन्य उपचार विफल नहीं हो जाते हैं।
  • जब तक मरीज़ का परीक्षण होता है और वह उपचार लेता है तब तक रोग का संचरण और अधिक व्यक्तियों तक हो चुका होता है।
  • दूसरी, लोगों द्वारा इलाज में लापरवाही बरतना, जिस कारण रोगों के रोगाणु प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर लेते हैं और यह सामान्य टीबी से MDR और XDR तक बढ़ जाती है। इसी कारण अभी तक इस रोग पर पूर्ण नियंत्रण प्राप्त नहीं किया जा सका है।

स्वास्थ्य के क्षेत्र में नई तकनीक को अपनाने में संशोधित राष्ट्रीय टीबी नियंत्रण कार्यक्रम आगे आया है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) हेल्थकेयर क्षेत्र को एक अलग अवसर प्रदान कर रहा है, इसमें दक्षता ला रहा है। इससे संसाधनों की बचत हो रही है और गुणवत्ता वाली सेवाओं की आपूर्ति बढ़ाने एवं जाँच में सटीकता लाने में मदद मिल रही है। इस क्षेत्र में इसके उपयोग से काफी अच्छे नतीजे आने की संभावना है, खासकर ऐसे परिस्थिति में, जहाँ संसाधन सीमित हैं। भारत वैश्विक सतत् विकास लक्ष्य से पाँच साल पहले 2025 तक टीबी को खत्म करने के लिये प्रतिबद्ध है।

स्रोत: pib

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