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शासन व्यवस्था

अनुच्छेद 35A और 370

  • 06 Mar 2019
  • 6 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में प्रधानमंत्री की अध्‍यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने संविधान (जम्‍मू और कश्‍मीर में लागू) संशोधन आदेश, 2019 [Constitution (Application to Jammu & Kashmir) Amendment Order, 2019] को मंज़ूरी दे दी है।
राष्‍ट्रपति द्वारा अनुच्‍छेद 370 की धारा (1) के अंतर्गत संविधान (जम्‍मू और कश्‍मीर में लागू) संशोधन आदेश, 2019 जारी किये जाने के बाद संविधान (77वाँ संशोधन) अधिनियम, 1995 तथा संविधान (103वाँ संशोधन) अधिनियम, 2019 के माध्यम से भारतीय संविधान के संशोधित तथा प्रासंगिक प्रावधान लागू होंगे।

अनुच्छेद 370

  • 17 अक्तूबर, 1949 को संविधान में शामिल, अनुच्छेद 370 भारतीय संविधान से जम्मू-कश्मीर को छूट देता है (केवल अनुच्छेद 1 और अनुच्छेद 370 को छोड़कर) और राज्य को अपने संविधान का मसौदा तैयार करने की अनुमति देता है।
  • यह तब तक के लिये एक अंतरिम व्यवस्था मानी गई थी जब तक कि सभी हितधारकों को शामिल करके कश्मीर मुद्दे का अंतिम समाधान हासिल नहीं कर लिया जाता।
  • यह राज्य को स्वायत्तता प्रदान करता है और इसे अपने स्थायी निवासियों को कुछ विशेषाधिकार देने की अनुमति देता है।
  • राज्य की सहमति के बिना आंतरिक अशांति के आधार पर राज्य में आपातकालीन प्रावधान पर लागू नहीं होते हैं|
  • राज्य का नाम और सीमाओं को इसकी विधायिका की सहमति के बिना बदला नहीं जा सकता है।
  • राज्य का अपना अलग संविधान, एक अलग ध्वज और एक अलग दंड संहिता (रणबीर दंड संहिता) है।
  • राज्य विधानसभा की अवधि छह साल है, जबकि अन्य राज्यों में यह अवधि पाँच साल है।
  • भारतीय संसद केवल रक्षा, विदेश और संचार के मामलों में जम्मू-कश्मीर के संबंध में कानून पारित कर सकती है। संघ द्वारा बनाया गया कोई अन्य कानून केवल राष्ट्रपति के आदेश से जम्मू-कश्मीर में तभी लागू होगा जब राज्य विधानसभा की सहमति हो।
  • राष्ट्रपति, लोक अधिसूचना द्वारा घोषणा कर सकते हैं कि इस अनुच्छेद को तब तक कार्यान्वित नहीं किया जा सकेगा जब तक कि राज्य विधानसभा इसकी सिफारिश नहीं कर देती है|

अनुच्छेद 35A

  • अनुच्छेद 35A, जो कि अनुच्छेद 370 का विस्तार है, राज्य के स्थायी निवासियों को परिभाषित करने के लिये जम्मू-कश्मीर राज्य की विधायिका को शक्ति प्रदान करता है और उन स्थायी निवासियों को विशेषाधिकार प्रदान करता है तथा राज्य में अन्य राज्यों के निवासियों को कार्य करने या संपत्ति के स्वामित्व की अनुमति नहीं देता है।
  • इस अनुच्छेद का उद्देश्य जम्मू-कश्मीर की जनसांख्यिकीय संरचना की रक्षा करना था।
  • अनुच्छेद 35A की संवैधानिकता पर इस आधार पर बहस की जाती है कि इसे संशोधन प्रक्रिया के माध्यम से नहीं जोड़ा गया था। हालाँकि, इसी तरह के प्रावधानों का इस्तेमाल अन्य राज्यों के विशेष अधिकारों को बढ़ाने के लिये भी किया जाता रहा है।

अनुच्छेद 35A और 370 को रद्द करने से संबंधित मुद्दे

  • वर्तमान में इन अनुच्छेदों से मिले अधिकारों को कश्मीरियों द्वारा धारित एकमात्र महत्त्वपूर्ण स्वायत्तता के रूप में माना जाता है। अत: इससे छेड़छाड़ से व्यापक प्रतिक्रिया की संभावना है।
  • यदि अनुच्छेद 35A को संवैधानिक रूप से निरस्त कर दिया जाता है तो जम्मू-कश्मीर 1954 के पूर्व की स्थिति में वापस आ जाएगा। उस स्थिति में केंद्र सरकार की राज्य के भीतर रक्षा, विदेश मामलों और संचार से संबंधित शक्तियाँ समाप्त हो जाएंगी।
  • यह भी तर्क दिया गया है कि अनुच्छेद 370 के तहत राज्य को दी गई कई प्रकार की स्वायत्तता वैसे भी कम हो गई है और संघ के अधिकांश कानून जम्मू-कश्मीर राज्य पर भी लागू होते हैं।

आगे की राह

  • अनुच्छेद 370 को एकतरफा निरस्त नहीं किया जा सकता है। यह ज़रूरी है कि जम्मू-कश्मीर और केंद्र इस मामलें में सर्वसम्मति से आगे आएँ। यह कार्य सहकारी संघवाद को बढ़ावा देकर और आत्मविश्वास के बल पर ही संभव हो सकता है।
  • कश्मीर के युवाओं तथा निवासियों को इस तथ्य से आश्वस्त होना चाहिये कि कश्मीर देश की आर्थिक प्रगति का हिस्सा है और भारत का अभिन्न अंग है।
  • राज्य सरकार को आम सहमति से लोकतंत्र का मार्ग भी अपनाना चाहिये। यह महत्त्वपूर्ण है कि इसमें निर्णय लेने के विकल्पों की विस्तृत श्रृंखला शामिल हो और उन्हें ध्यान में रखा जाए|

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