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जैव विविधता और पर्यावरण

आर्कटिक सागर की बर्फ में कमी

  • 24 Sep 2021
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

आर्कटिक समुद्र, लास्ट आइस एरिया, कार्बन डाइऑक्साइड 

मेन्स के लिये:

आर्कटिक बर्फ के पिघलने का कारण और प्रभाव 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में आर्कटिक समुद्र की बर्फ पिघलकर 4.72 मिलियन वर्ग मील की न्यूनतम सीमा तक पहुंँच गई है। यह अब तक रिकॉर्ड आर्कटिक समुद्री बर्फ का 12वांँ सबसे कम स्तर है, अभी तक वर्ष 2012 में बर्फ के पिघलने का न्यूनतम रिकॉर्ड दर्ज़ है।

  • सितंबर माह समुद्री बर्फ के पिघलने और आर्कटिक समुद्री बर्फ के न्यूनतम स्तर तक पहुँचने को चिह्नित करता है, जिसका अर्थ है कि इस समय उत्तरी गोलार्द्ध महासागर के ऊपर समुद्री बर्फ वर्ष के सबसे न्यूनतम स्तर पर होती है।
  • ग्रीनलैंड के उत्तर में आर्कटिक की बर्फ में स्थित 'लास्ट आइस एरिया' (Last Ice Area- LIA) भी वैज्ञानिकों की अपेक्षा से कहीं अधिक पिघलने लगा है।

प्रमुख बिंदु 

  • मानव गतिविधियों के चलते कार्बन डाइऑक्साइड में वृद्धि के प्रत्यक्ष परिणाम के रूप में 1980 के दशक से समुद्री बर्फ का आवरण पिघलकर लगभग आधा हो गया है।
  • अंतर-सरकारी जलवायु परिवर्तन पैनल (Intergovernmental Panel on Climate Change- IPCC) के अनुसार, हाल के वर्षों में आर्कटिक समुद्री बर्फ का वार्षिक औसत स्तर वर्ष 1850 के बाद सबसे कम है और यह पिछले 1,000 वर्षों में गर्मियों के अंत में सबसे कम स्तर पर है।
    • इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि आर्कटिक में व्यावहारिक रूप से सितंबर 2050 से पहले कम-से-कम एक बार समुद्री बर्फ मुक्त होने की संभावना है।
  • बर्फ के पिघलने के इस चरण में सी आइस पैक (Sea Ice Pack) सबसे कमज़ोर होता है और किसी निश्चित  दिन या सप्ताह की मौसम की स्थिति के प्रति अत्यधिक प्रतिक्रियाशील होता है। इसमें सूक्ष्म परिवर्तनों का बड़ा प्रभाव हो सकता है।
  • बर्फ के तेज़ी से पिघलने का कारण:
    • अल्बेडो फीडबैक लूप:
      • बर्फ, भूमि या पानी की सतहों की तुलना में अधिक परावर्तक (उच्च एल्बिडो) होती है, यह आर्कटिक के पूरे ग्रह की तुलना में लगभग तीन गुना तेज़ी से गर्म होने के कई कारणों में से एक है।
        • इसलिये जैसे-जैसे वैश्विक बर्फ का आवरण घटता जाता है, पृथ्वी की सतह की परावर्तनशीलता कम होती जाती है, अधिक आने वाली सौर विकिरण सतह द्वारा अवशोषित होने के कारण सतह और अधिक गर्म होती है।
    • अंधेरी/गहरी समुद्र सतह:
      • आर्कटिक की चमकीली बर्फ गहरे खुले समुद्र में परिवर्तित हो रही है जिससे सूर्य विकिरण की कम मात्रा अंतरिक्ष में वापस परावर्तित होती है तथा अतिरिक्त ताप उत्पन्न होने के कारण बर्फ पिघलती है। 
    •  वामावर्त बर्फ परिसंचरण:
      • साइबेरिया से आर्कटिक में प्रवेश करने वाले चक्रवातों ने वामावर्त हवाओं और बर्फ के बहाव की क्रिया को उत्पन्न की है।
      • यह पैटर्न आमतौर पर ग्रीनलैंड के पूर्व में फ्रैम स्ट्रेट के माध्यम से आर्कटिक से बाहर निकलने वाली समुद्री बर्फ की मात्रा को कम करता है। इसने ग्रीनलैंड सागर में गर्मी के समय कम समुद्री बर्फ की स्थिति को रिकॉर्ड करने में योगदान दिया।
    • निम्न दबाव प्रणाली:
      • निम्न दबाव प्रणाली आर्कटिक के ऊपर बादल निर्माण की प्रक्रिया को बढ़ाती है। 
      • बादल आमतौर पर सौर विकिरण जिससे समुद्री बर्फ पिघलती है, को रोकने का कार्य करते हैं लेकिन ये सतह के अंदर विद्यमान ऊष्मा को भी रोकने का कार्य करते हैं जिससे समुद्री बर्फ के पिघलने पर इनका मिला-जुला/मिश्रित प्रभाव होता है।
  • आर्कटिक बर्फ के पिघलने का प्रभाव:
    • वैश्विक जलवायु परिवर्तन:
      • आर्कटिक और अंटार्कटिक विश्व के रेफ्रिजरेटर की तरह काम करते हैं। ये विश्व के अन्य हिस्सों में अवशोषित गर्मी के सापेक्ष एक संतुलन प्रदान करते हैं। बर्फ का क्षरण और समुद्री जल का गर्म होना समुद्र स्तर, लवणता स्तर, समुद्री धाराओं और वर्षा पैटर्न को प्रभावित करेगा।    
    • तटीय समुदायों के लिये खतरा: 
      • वर्तमान में औसत वैश्विक समुद्री जल स्तर वर्ष 1900 की तुलना में 7 से 8 इंच बढ़ चुका है और यह स्थिति लगातार गंभीर होती जा रही है।
      • बढ़ता समुद्री जल स्तर तटीय बाढ़ और तूफान के मामलों में तीव्रता लाते हुए तटीय शहरों एवं छोटे द्वीपीय देशों के समक्ष अस्तित्व खोने का खतरा उत्पन्न करता है।
    • खाद्य सुरक्षा:
      • हिमनदों के क्षेत्रफल में गिरावट के कारण ध्रुवीय चक्रवात, लू की तीव्रता और मौसम की अनिश्चितता में वृद्धि के कारण फसलों को काफी नुकसान पहुँच रहा है, जिस पर वैश्विक खाद्य प्रणालियाँ निर्भर हैं। 
    • मीथेन गैस संरक्षित करने के नुकसान:
      • आर्कटिक क्षेत्र में पर्माफ्रॉस्ट के नीचे बड़ी मात्रा में मीथेन गैस संरक्षित है जो कि ग्रीनहाउस गैस होने के साथ ही जलवायु परिवर्तन के प्रमुख कारकों में से एक है। 
      • जितनी जल्दी आर्कटिक बर्फ के क्षेत्रफल में कमी होगी, उतनी ही तेज़ी से पर्माफ्रॉस्ट भी पिघलेगा और यह दुष्चक्र जलवायु को गंभीर रूप से प्रभावित करेगा।  
    • जैव विविधता के लिये खतरा: 
      • आर्कटिक की बर्फ का पिघलना इस क्षेत्र की जीवंत जैव विविधता के लिये गंभीर खतरा उत्पन्न करता है। 

आगे की राह

  • आर्कटिक वैश्विक जलवायु प्रणाली का एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण घटक है। ठीक वैसे ही जैसे अमेज़न के जंगल दुनिया के फेफड़े हैं, आर्कटिक हमारे लिये संचालन तंत्र की तरह है जो हर क्षेत्र में वैश्विक जलवायु को संतुलन प्रदान करता है। इसलिये यह मानवता के हित में है कि आर्कटिक में पिघल रही बर्फ को एक गंभीर वैश्विक मुद्दा मानते हुए इससे निपटने के लिये मिलकर कार्य किया जाए।
  • इतनी उच्च दर पर समुद्री-बर्फ का नुकसान पृथ्वी पर सभी प्रकार के जीवन के लिये चिंता का विषय है। इस प्रकार मानवशास्त्रीय गतिविधियों और पर्यावरण की वहन क्षमता के बीच संतुलन बनाए रखना सबसे महत्त्वपूर्ण है, इसके लिये उचित कदम उठाए जाने की आवश्यकता है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ

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