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आर्कटिक पर्माफ्रॉस्ट पर जलवायु परिवर्तन का दुष्प्रभाव

  • 07 Mar 2018
  • 4 min read

चर्चा में क्यों?

  • नासा के अध्ययन में चेतावनी दी गई है कि उत्तरी आर्कटिक में धीरे-धीरे गर्म होता पर्माफ्रॉस्ट वातावरण में कार्बन उत्सर्जन का स्थायी स्रोत बन जाएगा।
  • पहले यह माना जाता था कि यह क्षेत्र कम-से-कम अस्थायी तौर पर ग्लोबल वार्मिंग से परिरक्षित है।

पर्माफ्रॉस्ट (Permafrost) क्या है?

  • पर्माफ्रॉस्ट अथवा स्थायी तुषार-भूमि वह मिट्टी है जो 2 वर्षों से अधिक अवधि के लिये शून्य डिग्री सेल्सियस (32o F) से कम तापमान पर है।
  • ऐसा अलास्का, कनाडा और साइबेरिया जैसे उच्च अक्षांशीय अथवा पर्वतीय क्षेत्रों में होता है जहाँ ऊष्मा पूर्णतया मिट्टी की सतह को गर्म नहीं कर पाती है। 
  • पर्माफ्रॉस्ट मिट्टी में पत्तियाँ, टूटे हुए वृक्ष आदि बिना क्षय हुए पड़े रहते है। इस कारण यह जैविक कार्बन से समृद्ध होती है।
  • जब मिट्टी जमी हुई होती है, तो कार्बन काफी हद तक निष्क्रिय होता है, लेकिन जब पर्माफ्रॉस्ट का ताप बढ़ता है तो सूक्ष्मजीवों की गतिविधियों के कारण कार्बनिक पदार्थ का अपघटन तेज़ी से बढ़ने लगता है। फलस्वरूप वातावरण में कार्बन की सांद्रता बढ़ने लगती है। 

प्रमुख बिंदु

  • इस अध्ययन में यह आकलित किया गया है कि वर्ष 2300 तक पिघलन से इस क्षेत्र में कुल कार्बन उत्सर्जन 2016 के सभी मानव-उत्पादित जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन की तुलना में 10 गुना ज़्यादा होगा।
  • दक्षिणी आर्कटिक का पर्माफ्रॉस्ट क्षेत्र 22वीं शताब्दी के अंत तक एक कार्बन स्रोत नहीं बन पाएगा। हालाँकि यह भी पिघलना शुरू हो चुका है। ऐसा इसलिये है क्योंकि अन्य परिवर्तनशील आर्कटिक प्रक्रियाएँ इन क्षेत्रों में मिट्टी के विघटन के प्रभाव का सामना कर सकती हैं।
  • ठंडा क्षेत्र, गर्म क्षेत्रों की अपेक्षा जल्दी संक्रमण की अवस्था में होगा। उदाहरणस्वरूप दक्षिणी अलास्का और दक्षिणी साइबेरिया में पर्माफ्रॉस्ट पहले से ही पिघल रहा है। 
  • आर्कटिक में वायु के बढ़ते तापमान से पर्माफ्रॉस्ट का गलन प्रारंभ होने से कार्बनिक पदार्थ विघटित होकर कार्बन को ग्रीनहाउस गैसों कार्बन-डाइऑक्साइड और मीथेन के रूप में वायुमंडल में उत्सर्जित कर देते है। 
  • सिमुलेशन अध्ययन में शोधकर्त्ताओं ने यह पाया कि उत्तरी पर्माफ्रॉस्ट, दक्षिणी पर्माफ्रॉस्ट की तुलना में प्रतिवर्ष पाँच गुना अधिक कार्बन वातावरण में मुक्त करता है। क्योंकि दक्षिण में पौधों की वृद्धि अपेक्षा से अधिक बढ़ गई है।
  • पौधे प्रकाश संश्लेषण के दौरान वातावरण से कार्बन-डाइऑक्साइड को हटा देते हैं अर्थात पौधों की अधिक वृद्धि का मतलब है वातावरण में कम कार्बन।
  • सिमुलेशन मॉडल के अनुसार वर्ष 2100 के अंत तक जैसे-जैसे दक्षिणी आर्कटिक का क्षेत्र गर्म होता जाएगा, प्रकाश संश्लेषण की बढ़ती दर पर्माफ्रॉस्ट उत्सर्जन में वृद्धि को संतुलित करेगी।
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